राजनाथ सिंह ने दिखाया आईना, यूनुस को लगी मिर्ची: बांग्लादेश की नई दिशा, भारत की नई नीति

मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में ढाका की सरकार ने सत्ता संभालने के बाद भारत के प्रति कठोर रुख अपनाया है। इस कठोरता का मुख्य संकेत चीन और पाकिस्तान के साथ गहरे संबंधों में निहित है। चीन ने बांग्लादेश में अपने समुद्री और आर्थिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए ढाका के साथ नज़दीकी स्थापित की है, जबकि पाकिस्तान अपनी पुरानी रणनीति के तहत भारत विरोधी तत्वों को सक्रिय कर रहा है।

राजनाथ सिंह ने दिखाया आईना, यूनुस को लगी मिर्ची: बांग्लादेश की नई दिशा, भारत की नई नीति

यूनुस सरकार की भारत-विरोधी गतिविधियों में धार्मिक और राजनीतिक संगठन भी शामिल हैं।

दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य में हालिया घटनाएं स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि पड़ोसी बांग्लादेश अब अपनी दिशा बदल चुका है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बयान, जिसमें उन्होंने मोहम्मद यूनुस को उनकी भाषा और बयानों में संयम रखने की सलाह दी, केवल कूटनीतिक टिप्पणी नहीं थी; यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक नीति का प्रतिबिंब था। ढाका की नाराज़गी, जो उन्होंने इसे असम्मानजनक कहा, दरअसल उनके लिए आईना है, एक ऐसा आईना जिसमें उनकी गलत दिशा और भारत-विरोधी झुकाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। यह बयान केवल शब्दों का खेल नहीं था, यह पूर्व चेतावनी और रणनीतिक संकेत था कि भारत अब चुप नहीं रहेगा।

मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में ढाका की सरकार ने सत्ता संभालने के बाद भारत के प्रति कठोर रुख अपनाया है। इस कठोरता का मुख्य संकेत चीन और पाकिस्तान के साथ गहरे संबंधों में निहित है। चीन ने बांग्लादेश में अपने समुद्री और आर्थिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए ढाका के साथ नज़दीकी स्थापित की है, जबकि पाकिस्तान अपनी पुरानी रणनीति के तहत भारत विरोधी तत्वों को सक्रिय कर रहा है। ऐसे में राजनाथ सिंह का बयान केवल कूटनीतिक संयम नहीं था, यह सुरक्षा चेतावनी, रणनीतिक संकेत और पड़ोसी राष्ट्र के लिए अस्वीकार्य स्थिति की ओर आगाह था।

यूनुस सरकार ने सत्ता संभालने के बाद कई ऐसे निर्णय लिए हैं, जिनसे भारत की सुरक्षा चिंताओं को चुनौती मिली है। सोनादिया बंदरगाह पर चीन का प्रभाव, चिटगांव में संभावित नौसैनिक गलियारे का विकास और पूर्वोत्तर भारत की संवेदनशील सीमाओं के प्रति भड़काऊ बयान। ये सभी संकेत हैं कि बांग्लादेश अब भारत के पारंपरिक मित्र राष्ट्र के रूप में नहीं रह गया। त्रिपुरा, असम, मेघालय और सिलहट के पास की सीमाएं केवल भौगोलिक रेखाएं नहीं हैं, यह भारत का सुरक्षा मेरुदंड हैं, जिन्हें कोई भी सरकार हल्के में नहीं ले सकती।

जानें क्या कहा था राजनाथ सिंह ने

राजनाथ सिंह ने केवल इतना कहा कि भारत तनाव नहीं चाहता, लेकिन बयानों में संयम जरूरी है। यह टिप्पणी प्रतीक है भारत की नई नीति की, जहां संयम के भीतर दृढ़ता और नीति की कठोरता दोनों शामिल हैं। अब भारत केवल उत्तरदायी पड़ोसी नहीं है, वह सक्रिय सुरक्षा नीति के साथ अपने हितों की रक्षा के लिए हर कदम उठाने को तैयार है। RAW और BSF द्वारा पूर्वोत्तर में किए जा रहे निगरानी और तैयारी कार्य यही दर्शाते हैं कि भारत अब अपने पड़ोसी की राजनीतिक अस्थिरता को नजरअंदाज नहीं करेगा।

यूनुस की नाराज़गी और ढाका की प्रतिक्रिया इस बात की पुष्टि करती है कि उन्हें अपनी स्थिति का अहसास है। उनकी सरकार बीजिंग और इस्लामाबाद की धुरी में शामिल होकर भारत की सुरक्षा और राजनीतिक हितों के खिलाफ काम कर रही है। यह स्थिति भारत के लिए केवल सीमा-संबंधी खतरा नहीं, बल्कि क्षेत्रीय सामरिक चुनौती भी है। भारत के पूर्वोत्तर के स्थिरता के लिए त्रिपुरा, असम, मिजोरम और मेघालय में तैयार की गई रणनीति अब केवल रक्षात्मक नहीं रही, वह सक्रिय और नियंत्रणकारी नीति में बदल चुकी है।

शेख हसीना की सरकार का भारत में शरण लेना भी इस रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यूनुस के शासन की वैधता पर भारत का नैतिक और राजनीतिक प्रभाव अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। शेख हसीना के दौर में भारत और बांग्लादेश के बीच आतंकवाद नियंत्रण, सीमा प्रबंधन और जल संसाधनों के समझौते कार्यशील थे। लेकिन यूनुस शासन ने इस संतुलन को तोड़ दिया। तिस्ता जल समझौते को रद्द करने की बात, चीन के साथ तकनीकी सहयोग प्रस्ताव और पाकिस्तान से समर्थन लेना इस बात का प्रमाण है कि ढाका अब भारत के हितों के प्रति संवेदनशील नहीं रह गया।

भारत की दृष्टि से यह बदलाव केवल पड़ोसी की राजनीतिक दिशा नहीं है, यह क्षेत्रीय रणनीतिक संकट है। पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा और हिंद महासागर में प्रभाव बनाए रखना अब भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता बन चुका है। चाबहार पोर्ट के माध्यम से भारत ने पहले ही अपनी समुद्री पकड़ मजबूत की है, जबकि BIMSTEC और IORA जैसे मंचों में सक्रिय भूमिका निभाकर भारत ने क्षेत्रीय सहयोग और स्थिरता सुनिश्चित की है। अब ढाका की दिशा और नीति इस संतुलन के लिए चुनौती बन रही है।

यूनुस सरकार की भारत-विरोधी गतिविधियों में धार्मिक और राजनीतिक संगठन भी शामिल हैं। हिफाजत-ए-इस्लाम और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन अब फिर से सक्रिय हो रहे हैं, और DGFI में लौटे अधिकारी ISI के संपर्क में रहे हैं। यह केवल भारत की सीमा की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं, बल्कि एक आंतरिक अस्थिरता और आतंकवाद का स्रोत भी है। राजनाथ सिंह का बयान इसलिए केवल कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि पूर्व-चेतावनी और रणनीतिक सख्ती का प्रतीक है।

भारत ने अपनी नीति बदल दी है। अब यह केवल कूटनीतिक दृष्टिकोण में सीमित नहीं है। पूर्वी कमान की तैयारियां, पूर्वोत्तर में नए गढ़ और गश्ती व्यवस्था, हिंद महासागर में नौसैनिक उपस्थिति और चाबहार पोर्ट के माध्यम से समुद्री गलियारों की सुरक्षा, यह सब संकेत हैं कि भारत अब अपने पड़ोसी की अस्थिरता पर प्रतिक्रिया करने को तैयार है। य ह नीति केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कदमों में दृढ़ता के रूप में दिखाई दे रही है।

यूनुस की नाराज़गी इस बात का प्रतीक है कि उन्होंने भारत की वास्तविक शक्ति और प्रभाव को समझा नहीं। ढाका के लिए यह संदेश स्पष्ट है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा संतुलन पर किसी भी परिस्थिति में समझौता नहीं करेगा। यह चेतावनी न केवल सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर है, बल्कि राजनीतिक और नैतिक प्रभाव की दृष्टि से भी है। शेख हसीना के भारत में शरण लेने से ढाका में यूनुस शासन की वैधता पर सवाल उठता है। भारत ने उसे अपने नैतिक और रणनीतिक प्रभाव से घेरा है, जिससे यूनुस सरकार की राजनीतिक ताकत पर भी असर पड़ा है।

भारत की नई नीति का मूल संदेश यही है कि अब संयम के भीतर दृढ़ता, शब्दों में चेतावनी और कदमों में सुरक्षा तीनों का संतुलन रहेगा। यह नीति केवल रक्षा या कूटनीति तक सीमित नहीं, बल्कि क्षेत्रीय प्रभुत्व, सामरिक संतुलन और दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक मानचित्र के लिए भी निर्णायक है। यूनुस सरकार के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अब चुप नहीं रहेगा; वह केवल सीमाओं की रक्षा नहीं करेगा, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और प्रभाव का नियंत्रण भी सुनिश्चित करेगा।

ढाका की प्रतिक्रिया और मिर्ची भरे बयानों से स्पष्ट है कि यूनुस और उनका प्रशासन अब तक भारत की गंभीरता को समझ नहीं पाए हैं। उन्हें लगता है कि भारत केवल शब्दों में संयम दिखाएगा, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत के कदम अब सक्रिय और निर्णायक होंगे। पूर्वोत्तर में गढ़ और गश्ती, हिंद महासागर में नौसैनिक अभ्यास और चाबहार पोर्ट की रणनीतिक स्थिति, सभी यह संकेत देते हैं कि भारत ने अपनी नीति में सख्ती और सक्रियता का मिश्रण कर लिया है।

इस पूरे परिदृश्य में स्पष्ट हो जाता है कि राजनाथ सिंह का बयान केवल एक साधारण राजनीतिक टिप्पणी नहीं था, यह भारत की राष्ट्रीय नीति, सामरिक दृष्टिकोण और पड़ोसी राष्ट्रों के लिए चेतावनी का संयोजन था। ढाका को आईना दिखाया गया, और वह आईना यूनुस को समझ में नहीं आया। बांग्लादेश के लिए यह मिर्ची जैसी प्रतिक्रिया है, लेकिन भारत के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि वह अब अपने हितों और सुरक्षा पर किसी भी समझौते की कीमत नहीं चुकाएगा।

अंततः, यह स्पष्ट है कि दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक नक्शे पर बांग्लादेश की नई दिशा और भारत की नई नीति अब आमने-सामने हैं। राजनाथ सिंह ने केवल शब्दों में संयम और चेतावनी का संदेश दिया, लेकिन उसकी गूंज अब पूरे क्षेत्र में सुनाई दे रही है। यूनुस शासन को समझ लेना चाहिए कि भारत की शक्ति केवल सैन्य में नहीं, बल्कि राजनीतिक, सामरिक और नैतिक प्रभाव में भी है। यह क्षेत्रीय संतुलन का समय है, और भारत ने इसे बनाए रखने के लिए अपनी नीति स्पष्ट कर दी है।

ढाका चाहे इसे असहमति कहे, नाराज़गी कहे या अपमान सच्चाई यही है कि भारत ने राष्ट्रवादी दृष्टिकोण, सामरिक तैयारी और नीति-संयम का संगम दिखा दिया है। यह चेतावनी केवल बांग्लादेश के लिए नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए है कि भारत अब अपने हितों की रक्षा के लिए हर कदम उठाने को तैयार है।

यूनुस सरकार को यह समझना होगा कि भारत का संयम कमजोरी नहीं, बल्कि रणनीतिक ताकत और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है। जब भारत कदम उठाता है, तब उपमहाद्वीप के भू-राजनीतिक समीकरण बदल जाते हैं। राजनाथ सिंह का बयान इस नए युग की शुरुआत है, जिसमें भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसके राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं और कोई भी पड़ोसी या शक्ति उसे चुनौती नहीं दे सकती।

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