भारतीय मीडिया पिछले कई दशकों से समाज और राजनीति के बीच पुल बनाने का कार्य करता रहा है। तथ्यों का सही और निष्पक्ष प्रसार करना इसकी जिम्मेदारी है, लेकिन हालिया घटनाएं यह दर्शाती हैं कि कभी-कभी यही संस्थान जनता को भ्रमित करने और संवेदनशील धार्मिक प्रतीकों का गलत उपयोग करने का माध्यम भी बन जाते हैं। हाल ही में केरल के कोल्लम जिले की एक भयावह घटना ने इस असंतुलन को स्पष्ट कर दिया, जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति मोहम्मद साजीर ने अपनी पत्नी रेज़िला गफूर पर उबलती मछली करी डाल दी। घटना जितनी भयानक थी, उतनी ही ज्यादा चर्चा इस बात की हुई कि इस खबर के लिए न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने जिस छवि का प्रयोग किया, उसमें एक हिंदू महिला को तिलक और बिंदी के साथ दिखाया गया।
यह कोई मामूली गलती नहीं थी। यह दर्शाता है कि पत्रकारिता में तकनीकी उपकरणों जैसे AI के प्रयोग का किस तरह दुरुपयोग किया जा सकता है। AI तकनीक स्वयं कुछ भी उत्पन्न नहीं करती। यह वही करता है जो मानव संपादक और पत्रकार उससे निर्देशित करते हैं। जब संपादक जानबूझकर हिंदू प्रतीक वाले व्यक्ति की छवि को किसी मुस्लिम अपराध की घटना के साथ जोड़ देते हैं, तो यह न केवल वास्तविकता को तोड़-मरोड़ना है, बल्कि समाज में साम्प्रदायिक भ्रांतियों को फैलाने का तरीका भी है।
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल उठाया कि क्या भारतीय मीडिया अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है या वह संपादकीय पूर्वाग्रह और संवेदनाओं के प्रति लापरवाह हो गया है। अगर यही कहानी किसी मुस्लिम महिला के स्थान पर हिंदू महिला की होती, तो क्या संपादक इतनी निडरता के साथ हिंदू प्रतीकों का उपयोग कर पाते? इसका उत्तर स्पष्ट है। यह मीडिया में पक्षपात और दोहरे मानक की पहचान कराता है।
पहले भी देखा गया है ऐसा ही पैटर्न
यह केवल एक अकेली घटना नहीं है। समय-समय पर भारतीय मीडिया में यह पैटर्न देखा गया है कि हिंदू प्रतीकों का खुलकर इस्तेमाल किया जाता है जबकि अन्य समुदायों की पहचान को सावधानीपूर्वक छुपाया जाता है। उदाहरण के लिए, 2018 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक “गॉडमैन” केस को कवर किया, जिसमें आरोपी मुस्लिम था, लेकिन छवि में लंबी जटाओं और तिलक के साथ साधु दिखाया गया। इसी तरह, गुजरात में साम्प्रदायिक हत्या की रिपोर्ट में आरोपी मुसलमान और पीड़ित हिंदू था, लेकिन संपादकीय फ्रेमिंग ने आरोपी के समुदाय का उल्लेख नहीं किया और हिंदू प्रतीकों को प्रमुखता दी गई। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि मीडिया में संपादकीय निर्णय और धर्म-विशेष प्रतीकों के चयन में गहरी पक्षपातपूर्ण प्रवृत्ति है।
AI तकनीक का इस्तेमाल आजकल पत्रकारिता में तेजी से बढ़ रहा है। यह तकनीक सही ढंग से प्रयोग की जाए तो समाचार की प्रस्तुति और समझ को बेहतर बना सकती है, लेकिन जब इसका उपयोग संपादकीय पक्षपात के साथ किया जाता है, तो इसका प्रभाव समाज पर घातक होता है। न्यू इंडियन एक्सप्रेस की इस घटना में देखा गया कि AI के माध्यम से गलत संदेश और समुदायों के बीच भ्रम फैलाया गया। हालांकि, इसके लिए तकनीक स्वयं दोषी नहीं है, दोष संपादक और पत्रकारों के निर्णयों का है।
कमजोर होता है मीडिया के प्रति विश्वास
भारतीय समाज में यह घटना इसलिए भी संवेदनशील है, क्योंकि हिंदू पहचान पर लगातार गलत और पक्षपाती तरीके से हेरफेर किया जा रहा है। जब किसी समुदाय की सहनशीलता और शांतिपूर्ण स्वभाव का फायदा उठाकर उसे गलत ढंग से पेश किया जाता है, तो यह selective audacity कहलाती है। यह संकेत है कि संपादक और मीडिया संस्थान जानते हैं कि हिंदू समुदाय प्रतिशोध नहीं करेगा, और इसी भरोसे के साथ वे संवेदनशील प्रतीकों का उपयोग करते हैं।
समाज पर इस तरह के संपादकीय निर्णयों का असर गहरा होता है। इससे मीडिया के प्रति विश्वास कमजोर होता है और जनता के बीच यह धारणा बनती है कि समाचार केवल तथ्यों को पेश नहीं कर रहे, बल्कि किसी एजेंडा के तहत परोसे जा रहे हैं। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो पत्रकारिता की नैतिकता और भारतीय समाज की समरसता दोनों खतरे में पड़ती हैं।
भविष्य की पत्रकारिता के लिए आवश्यक है कि AI और अन्य तकनीकी उपकरणों का प्रयोग पारदर्शिता और जिम्मेदारी के साथ किया जाए। संपादकों को यह समझना होगा कि हर AI-जनित छवि का स्रोत और उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। किसी भी समुदाय की पहचान और धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग केवल तथ्यात्मक और संवेदनशील तरीके से होना चाहिए। पत्रकारिता का उद्देश्य कभी भी किसी समुदाय के खिलाफ संवेदनाओं को भड़काना नहीं होना चाहिए।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस का यह कदम केवल तकनीकी गलती नहीं, बल्कि संपादकीय पक्षपात और सामाजिक संवेदनाओं की अनदेखी का स्पष्ट उदाहरण है। AI तकनीक का दोषी ठहराना वास्तविक जिम्मेदारी से भागने जैसा है। मीडिया संस्थानों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और भारतीय समाज में विश्वास और एकता बनाए रखने के लिए निष्पक्ष और जिम्मेदार पत्रकारिता करनी होगी। तभी जनता का भरोसा कायम रहेगा और मीडिया का भविष्य सुरक्षित रहेगा।



























