19 दिसंबर केवल गोवा का ऐतिहासिक दिवस नहीं है, बल्कि यह भारत की उस दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक है, जिसने औपनिवेशिक शासन के अंतिम अवशेष को समाप्त किया। वर्ष 1961 में ऑपरेशन विजय के माध्यम से गोवा की मुक्ति ने यह स्पष्ट कर दिया कि स्वतंत्र भारत अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय सम्मान से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगा।
भारत को स्वतंत्र हुए 14 वर्ष बीत चुके थे, फिर भी गोवा पर पुर्तगाल का शासन बना हुआ था। लंबे समय तक कूटनीतिक और शांतिपूर्ण प्रयास किए गए, लेकिन जब हर रास्ता बंद हो गया, तब निर्णायक कदम उठाना अपरिहार्य हो गया। भारतीय थल, जल और वायु सेनाओं की संयुक्त कार्रवाई न केवल तेज़ और प्रभावी रही, बल्कि यह मानवीय दृष्टि से भी संतुलित थी। न्यूनतम समय और न्यूनतम जनहानि में गोवा की मुक्ति इस अभियान की विशेष उपलब्धि रही।
गोवा की आज़ादी यह संदेश देती है कि राष्ट्र केवल भौगोलिक सीमाओं से नहीं बनता, बल्कि आत्मसम्मान, एकता और न्याय से मजबूत होता है। यह घटना उस दौर में भी महत्वपूर्ण थी, जब विश्व राजनीति में भारत के निर्णयों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता था। गोवा मुक्ति ने भारत को एक आत्मविश्वासी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।
आज जब गोवा एक समृद्ध, शांत और विकसित राज्य के रूप में देश और दुनिया में पहचान बना चुका है, तब यह आवश्यक है कि हम उस संघर्ष और बलिदान को याद रखें, जिसने यह रास्ता बनाया। गोवा मुक्ति दिवस हमें सिखाता है कि इतिहास केवल स्मरण के लिए नहीं, बल्कि भविष्य के संकल्प के लिए भी होता है।
इस दिन का संदेश स्पष्ट है—राष्ट्र की एकता, संप्रभुता और सम्मान की रक्षा के लिए समय पर लिया गया साहसिक निर्णय ही इतिहास की दिशा तय करता है।





























