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Kanpur Holi: जब अंग्रेजों ने होली पर लगाया प्रतिबंध तो पूरे कानपुर ने कर दिया विद्रोह, झुक गए अंग्रेज

Kanpur Holi: 1942, द्वितीय विश्व युद्ध चरमोत्कर्ष पर था। जहां एक ओर अंग्रेज़ हिटलर को परास्त करने हेतु अमेरिकियों के साथ जोड़-तोड़ कर रहे थे, तो वहीं जापानी दूसरी ओर से एशिया के कोने-कोने पर अपना राज स्थापित करना ...

योगेंद्र शुक्ला और बैकुंठ शुक्ला: बिहार के वो महान लाल जिन्होंने अंग्रेजों की चूलें हिला दी थी

“हंस-हंस पड़ब फांसी, माँ देखबे भारतबासी, बिदाई दे माँ फिर आसी” अर्थात हँसते हँसते पड़ेंगे फांसी, माँ देखेंगे ये भारतवासी, अब बिदाई दे माँ, फिर आएंगे ये शब्द थे उस क्रांतिकारी के जिसने मृत्यु के पूर्व अपने स्वभाव से ...

क्रांति के चंदन में लिपटे हुए भुजंग की तरह थे यशपाल

“विश्वासघात की सबसे बुरी बात क्या है? वो शत्रु नहीं देते!” द गॉडफादर शृंखला में ये संवाद आज भी कई लोगों के मन मस्तिष्क में बैठ चुका है। इसका अर्थ स्पष्ट है और दुर्भाग्य की बात तो यह है ...

गुमनाम नायक: ‘वोहरा परिवार’ ने देश की स्वतंत्रता हेतु अपना सर्वस्व अपर्ण किया था, उन्हें कितना जानते हैं आप

पता है इस देश की सबसे बड़ी त्रासदी क्या रही है? यहां सभी चाहते हैं कि नायक निकलें और देश एवं समाज की रक्षा करें परंतु उनके हृदय में सदैव यही रहता है कि यह कार्य पड़ोसी के घर ...

गणेश शंकर विद्यार्थी :जिन्होंने क्रांति की ज्योत जलाई, उन्हें कट्टरपंथ के विषैले नाग ने डंस लिया!

“जो कलम सरीखे टूट गये पर झुके नहीं, उनके आगे यह दुनिया शीश झुकाती है जो कलम किसी कीमत पर बेची नहीं गई, वह तो मशाल की तरह उठाई जाती है” ये पंक्तियाँ उस पत्रकारिता का प्रतीक है, जिसके ...

जो भारत भूमि में पुनर्जन्म मांगे, ऐसे अशफाकुल्लाह अब कहाँ मिलेंगे?

“कभी वो दिन भी आएगा कि जब हम आज़ाद होंगे, ये ज़मीन अपनी होगी, ये आसमाँ अपना होगा, शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का, बाकी यही निशा होगा!” कुछ ऐसी ही पंक्तियों ...

मोहन भागवत ने वैश्विक मीडिया को समझाया संघ का पक्ष और उसका महत्व

हाल ही में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने वैश्विक मीडिया से संपर्क साधते हुए आरएसएस का पक्ष सामने रखा, और अपनी बातचीत में उन्होंने संघ के विरुद्ध फैलाये गए झूठ के विरुद्ध पर भी अपनी आवाज़ उठाई। मोहन ...

बटुकेश्वर दत्त: भगत सिंह के वो साथी जो आजादी के बाद बन गए थे टूरिस्ट गाइड, बेचनी पड़ी थी सिगरेट

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने अंग्रेजों के मन में खौफ पैदा करने के लिए दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका जिसके बाद लोग वहां अफरा-तफरी मच गई और लोग इधर-उधर भागने लगे। तभी वहां एक और ...

भारत की स्वतंत्रता की वास्तविक कहानी- अध्याय 4: दांडी मार्च का अनसुना सत्य, जिसे आप नहीं जानते

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक महत्वपूर्ण अध्याय हैं, लेकिन उनमें सबसे प्रमुख अध्याय निस्संदेह दांडी यात्रा (12 मार्च 1930 – 6 अप्रैल 1930) का है। आज भी कई वामपंथी इतिहासकार मोहनदास करमचंद गांधी की तारीफ करते नहीं थकते ...

सरदार उधम निस्संदेह ऑस्कर के योग्य नहीं, परंतु उसे हटाने के पीछे का कारण निंदनीय है

सरदार उधम एक बार फिर से विवादों के घेरे में हैं, परंतु इस बार फिल्म के कॉन्टेन्ट के कारण नहीं। शूजीत सरकार द्वारा निर्देशित ये फिल्म इस वर्ष ऑस्कर के लिए नामांकित की जाने वाली भारतीय फिल्मों की लिस्ट ...

लाला लाजपत राय: वो वीर पुरुष जिनके बलिदान ने स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा ही बदल दी!

जो नहीं होना चाहिए था, वो हो गया। सबकी आंखों के समक्ष उनके प्रिय नेता पर कुछ नीच, निकृष्ट अंग्रेज़ और उनके चाटुकार एक के बाद लाठी बरसाते रहे, लेकिन रक्त से लथपथ वह वीर अपने मार्ग पर अडिग ...

“सरदार उधम”- मार्क्सवादी ट्विस्ट के साथ ये फिल्म हमारे देश के इतिहास के नाम पर कलंक है

हाल ही में विजयदशमी के अवसर पर शूजीत सरकार की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘सरदार उधम’ Amazon Prime पर प्रदर्शित हुई। ये जलियाँवाला बाग नरसंहार को स्वीकृति देने वाले पंजाब के तत्कालीन उपराज्यपाल माइकल ओ ड्वायर का अंत करने वाले वीर ...

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