दिलीप मंडल ने फातिमा शेख के ज़रिए दोहरा दिया ‘सोकल होक्स’?
सोशल मीडिया से लेकर पेड मीडिया तक एक नयी बहस छिड़ी हुई है। एक विख्यात दलित चिंतक माने जाने वाले पूर्व संपादक दिलीप मंडल ने दावा ठोक दिया है कि फातिमा शेख कोई थी ही नहीं। उनका...
भविष्य के बेस्टसेलर "गीतायन" (https://amzn.to/2Y1uuGu) का गरीब हिन्दी लेखक! आनन्द मार्केटिंग एवं मीडिया से स्नातकोत्तर की पढ़ाई के बाद डाटा एनालिटिक्स में काम करते हैं। मार्केट एवं सोशल रिसर्च के अपने काम के अलावा अपने शौक की वजह से भी वो भारत भर में भ्रमण कर रहे होते हैं और कहते हैं कि वो यात्री हैं, पर्यटक नहीं हैं। संयुक्त परिवार में पले-बढ़े आनंद अपने परिवार के साथ पटना में रहते हैं। शिक्षा को जीवन पर्यंत चलने वाली यात्रा मानने वाले आनंद संस्कृत से शास्त्री हैं और आजकल संस्कृत से परा-स्नातक (आचार्य) के छात्र हैं।
सोशल मीडिया से लेकर पेड मीडिया तक एक नयी बहस छिड़ी हुई है। एक विख्यात दलित चिंतक माने जाने वाले पूर्व संपादक दिलीप मंडल ने दावा ठोक दिया है कि फातिमा शेख कोई थी ही नहीं। उनका...
कई मुद्दे ऐसे होते हैं जिनपर चुप्पी केवल इसलिए साध ली जाती है क्योंकि नाजुक जज़्बात वालों के जज़्बातों को ठेस न लग जाए। भारत के लिए 'लव जिहाद' ऐसा ही मुद्दा होता है और ब्रिटेन के...
वैसे तो मनमोहन काल रोज ही चौंका देने वाली ख़बरों का काल था क्योंकि घोटालों की खबरें जब आती थीं तो लोग ये नहीं जोड़ते थे कि घोटाला कितने करोड़ का हुआ। रकम अक्सर इतनी बड़ी होती...
बिहार में पिछले कुछ दिनों से छात्र सड़कों पर हैं। बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की परीक्षा में धांधली के विरोध में छात्र सड़कों पर उतर आये और 25 दिसंबर से ही बिहार पुलिस लाठियां भांजकर उन्हें...
यह कहानी कोई आज नहीं शुरू होती है। ये राजीव गाँधी की सरकार वाले उस दौर में शुरू होती है जिनकी सरकारों के लिए अक्सर कहा जाता है कि राजीव गाँधी के बाद कभी कोई सरकार 400...
नब्बे के दशक के अक्सर बसों और स्थानीय ऑटोरिक्शा में बजते गानों में “कबूतर जा जा जा” जिस दौर की याद दिलाता है, वो कबका बीत चुका है। WhatsApp और इंस्टेंट मेसेज के युग में ना कबूतर...
सबसे पहली बात तो ये है कि दुष्यंत दवे इकलौते नहीं जो रो रहे हैं। लम्बे समय से अटके पड़े कई मामलों में जैसे जैसे तारीखें पड़नी शुरू हो रही हैं, या फैसले आ रहे हैं, अदालतों...
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51(ए) भारतीय जनता के कर्तव्यों में वैज्ञानिक सोच को शामिल करने को कहता है। अगर वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत सोच (साइंटिफिक टेम्पर और रैशनल थिंकिंग) की बात शुरू की जाए तो एक बार...
सबसे पहली बात तो ये है कि जिन्हें हमलोग मुगल कहते हैं, उन्हें मुगल नाम से बड़ी चिढ़ थी। वो लोग खुद को तैमूरी कहना कहलवाना पसंद करते थे। इस खानदान का जिक्र औरंगजेब के समय तक...
मार्केट रिसर्च की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है फर्जी फॉर्म की पहचान करके उन्हें छांटना। आप कहेंगे ये फर्जी फॉर्म क्या होता है? तो जमीनी स्तर पर SPSS या पाइथन जैसे सॉफ्टवेयर इत्यादि इस्तेमाल करना,...
भदेस कहावतों में कहते हैं, “लौंडों की यारी, जी का जंजाल”! मोटे तौर पर ये इसीलिए कहा जाता है क्योंकि परिपक्वता का स्तर आयु के साथ बदलता रहता है और अगर कहीं अलग अलग आयु वर्ग के...
हाल के समय में भारत के सोशल मीडिया (विशेषकर हिंदी एक्स पर) पर दो घटनाएँ विशेष रूप से चर्चा में रहीं। पहली घटना थी जिसमें वाल्मीकि समुदाय का एक व्यक्ति अपनी पुत्री की शादी के लिए मैरिज...
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