Anand Kumar

Anand Kumar

भविष्य के बेस्टसेलर "गीतायन" (https://amzn.to/2Y1uuGu) का गरीब हिन्दी लेखक! आनन्द मार्केटिंग एवं मीडिया से स्नातकोत्तर की पढ़ाई के बाद डाटा एनालिटिक्स में काम करते हैं। मार्केट एवं सोशल रिसर्च के अपने काम के अलावा अपने शौक की वजह से भी वो भारत भर में भ्रमण कर रहे होते हैं और कहते हैं कि वो यात्री हैं, पर्यटक नहीं हैं। संयुक्त परिवार में पले-बढ़े आनंद अपने परिवार के साथ पटना में रहते हैं। शिक्षा को जीवन पर्यंत चलने वाली यात्रा मानने वाले आनंद संस्कृत से शास्त्री हैं और आजकल संस्कृत से परा-स्नातक (आचार्य) के छात्र हैं।

विदेशी फंडिंग पर पलती ‘वोक राजनीति’: हिंदू शरणार्थियों से भेदभाव, रोहिंग्या घुसपैठियों से प्रेम

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई थी। मामला था रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव और दिल्ली (एनसीटी) की सरकार के बीच, जिसमें फैसला आना था। ये जनहित याचिका रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव नाम के एनजीओ...

USAID से WHO तक, ट्रंप के बड़े फैसलों का दुनिया पर कितना असर?

कहते हैं पीठ पर पड़ी लात से पेट पर पड़ी लात कहीं अधिक मारक होती हैI इसे समझने के लिए कोई रॉकेट साइंस आना भी जरूरी नहीं हैI जाहिर सी ही बात है कि पीठ जैसे मजबूत...

हरिशंकर परसाई के व्यंग्य से आज की ‘अश्लील’ स्टैंड-अप कॉमेडी तक; कितना बदला हँसाने का बाज़ार?

जब पूरा देश 2019 की मई में चुनावी नतीजों की प्रतीक्षा में व्यस्त था, उसी समय एक छोटी सी खबर आई थीI तन्मय भट्ट और उनके तीन साथियों के लिए जाना जाने वाला एआईबी नाम का तथाकथित...

USAID पर खामोशी: विदेशी फंडिंग तय कर रही भारत में क्या लिखेंगे-बोलेंगे पत्रकार?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा USAID (United States Agency for International Development) की फंडिंग रोकने सम्बन्धी आदेशों पर विश्व भर में हंगामा है लेकिन भारत के अखबारों और मीडिया में इसने सुर्खियाँ नहीं बटोरींI आखिर क्या वजह...

ईरान-अफगानिस्तान की राह पर बांग्लादेश, भारत के लिए कितना बड़ा खतरा हैं इस्लामिक कट्टरपंथी?

कहते हैं किसी एक व्यक्ति का क्रांतिकारी, दूसरे व्यक्ति के लिए आतंकी भी हो सकता हैI ये जुमला जब सुनाया जाता है, तो ये नही जोड़ा जाता कि जो आज क्रांतिकारी है, वो कल को देशद्रोही भी...

भारत-बांग्लादेश संबंध: दोनों देशों के लिए कितना अहम है जल समझौता?

जब दिसम्बर 1971 में दुनिया के नक़्शे पर एक नया मुल्क 'बांग्लादेश' बनकर उभरा, तो भारत ने उसे केवल पहचान के मामले में ही नहीं, आर्थिक और संसाधनों के स्तर पर भी मदद देनी शुरू की। इसका...

दिलीप मंडल ने फातिमा शेख के ज़रिए दोहरा दिया ‘सोकल होक्स’?

सोशल मीडिया से लेकर पेड मीडिया तक एक नयी बहस छिड़ी हुई है। एक विख्यात दलित चिंतक माने जाने वाले पूर्व संपादक दिलीप मंडल ने दावा ठोक दिया है कि फातिमा शेख कोई थी ही नहीं। उनका...

ब्रिटेन में ‘लव जिहाद’ की भेंट चढ़ती बच्चियाँ, हज़ारों ‘रेप’ लेकिन खामोश सरकार; जानें कैसे काम करते हैं ‘ग्रूमिंग गैंग्स’?

कई मुद्दे ऐसे होते हैं जिनपर चुप्पी केवल इसलिए साध ली जाती है क्योंकि नाजुक जज़्बात वालों के जज़्बातों को ठेस न लग जाए। भारत के लिए 'लव जिहाद' ऐसा ही मुद्दा होता है और ब्रिटेन के...

‘राडिया टेप कांड’ और सोशल मीडिया पर UPA सरकार की सेंसरशिप; जब लोगों ने खुद लड़ी मीडिया की लड़ाई

वैसे तो मनमोहन काल रोज ही चौंका देने वाली ख़बरों का काल था क्योंकि घोटालों की खबरें जब आती थीं तो लोग ये नहीं जोड़ते थे कि घोटाला कितने करोड़ का हुआ। रकम अक्सर इतनी बड़ी होती...

पेपर लीक और नॉर्मलाइजेशन: BPSC के खिलाफ बिहार में छात्रों की सड़क पर लड़ाई की पूरी कहानी

बिहार में पिछले कुछ दिनों से छात्र सड़कों पर हैं। बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की परीक्षा में धांधली के विरोध में छात्र सड़कों पर उतर आये और 25 दिसंबर से ही बिहार पुलिस लाठियां भांजकर उन्हें...

वो किताब जिसे ‘कुफ्र’ बता जलाते थे, अब आई वापस: ‘रंगीला रसूल’ के प्रकाशक की हत्या से लेकर ‘द सैटनिक वर्सेज’ पर बैन हटने तक

यह कहानी कोई आज नहीं शुरू होती है। ये राजीव गाँधी की सरकार वाले उस दौर में शुरू होती है जिनकी सरकारों के लिए अक्सर कहा जाता है कि राजीव गाँधी के बाद कभी कोई सरकार 400...

पोस्ट से प्रीपेड तक, कबूतर से डाक सेवाओं और अब WhatsApp तक: समझिए संदेशों के आदान-प्रदान का इतिहास

नब्बे के दशक के अक्सर बसों और स्थानीय ऑटोरिक्शा में बजते गानों में “कबूतर जा जा जा” जिस दौर की याद दिलाता है, वो कबका बीत चुका है। WhatsApp और इंस्टेंट मेसेज के युग में ना कबूतर...

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