आज विश्व में अमेरिका की हेजेमनी है। हेजेमनी यानी दादागिरी। इस बात में किसी को कोई संदेह नहीं है। अमेरिका सॉफ्ट पॉवर, हार्ड पॉवर और स्ट्रक्चरल पॉवर में पूरे विश्व में सबसे आगे है। हार्ड पॉवर अर्थात सामरिक (सैन्य) ताकत। अमेरिका सैन्य ताकत में विश्व में पहले पायदान पर है। अमेरिकी हथियारों का जखीरा इतना बड़ा है कि सैन्य ताकत में अमेरिका के बाद आने वाले अगले 12 देशों के हथियारों को यदि एक साथ भी रख दिया जाए तो भी अमेरिका ही आधिक शक्तिशाली होगा।
अब बात करते हैं सॉफ्ट पॉवर की। सॉफ्ट पॉवर वह ताकत है जिस से आप दुसरे को बिना अपना बहुबल दिखाए अपनी और आकर्षित कर सकते है। आज अमेरिका की सॉफ्ट पॉवर आप अपने चारों और देख सकते हैं। अमेरिका ने ‘अमेरिकन ड्रीम’ विश्व को बेचा है। विश्व का हर नागरिक आज अमेरिकन ड्रीम देखता है। वह सोचता है कि अमेरिका जाकर ही उसका कामयाबी का सपना पूरा हो सकता है। दुनिया के हर कोने में आप पेप्सी, कोकाकोला, KFC, McD आदि के उत्पाद देख सकते हैं। दुनिया के हर DTH पर 30 से 50 अमेरिकी चैनल्स होते हैं। गेम ऑफ़ थ्रोंस पूरा विश्व देखता ही है। सब हॉलीवुड मूवीज देखते है। सब अमेरिकी गाने गाते हैं। यही सॉफ्ट पॉवर है।
स्ट्रक्चरल पॉवर सबसे महत्वपूर्ण है। ग्लोबल सोसाइटी को कुछ वैश्विक संपत्तियां (Global Public Goods) भी चाहिए होती हैं। जिस पर किसी देश का नहीं बल्कि पुरे विश्व का समान अधिकार हो। यह ऐसी संपत्तियां हैं जिन्हें यदि एक व्यक्ति इस्तमाल कर भी ले तो दूसरे व्यक्ति के लिए यह कम नहीं हो जाती। उदाहरण के तौर पर हवा, समुंदरी रास्ते व इन्टरनेट। ब्रिटेन के पतन के बाद अमेरिका ही समंदरी रास्तों का मालिक है। अमेरिका ही समुद्र के कानून तय करता है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आज जिस इन्टरनेट की पीठ पर चढ़ कर हम विकास की ओर अग्रसर हैं वह इन्टरनेट युएसए ने ही हमें दिया है। 1950 में अमेरिका में हो रहे एक सैन्य अनुसन्धान के परिणाम स्वरुप इन्टरनेट का अविष्कार हुआ था। आज भी इन्टरनेट जिन satellites पर निर्भर है उनमे से अधिकतर का मालिक अमेरिका ही है। अर्थात कहने को ये सब ग्लोबल पब्लिक गुड्स हैं लेकिन मालिक अमेरिका ही है।
अब तक आप ने अमेरिका की ताकत का अंदाजा तो लगा ही लिया होगा। यही अंदाज़ा अमेरिका ने भी लगा लिया।
जैसे की हमेशा ही होता है शीर्ष पर बैठा आदमी हमेशा शीर्ष पर ही रहना चाहता है व निरंतर अवलोकन करता रहता है कि ऐसा क्या है जो उसके लिए खतरा है। अमेरिका ने भी नज़र दोड़ाई। रिसर्च की कि ऐसा क्या है जो अमेरिका की इस दादागिरी (हेजेमनी) के विरूद्ध जा सकता है। परिणाम चौंका देने वाला था। परिणाम यही आया कि युएसए की प्रभुसत्ता का सबसे बड़ा दुश्मन स्वयं अमेरिकी नागरिक व उनका मीडिया है। जी हाँ। अमेरिका खुद ही खुद का दुश्मन है। अमेरिका ने हमेशा बोलने की आज़ादी को महत्ता दी। लिब्रलिस्म, सेकुलरिज्म को इतना बढ़ावा दिया कि आज यही उसके लिए एक चुनौती बन गया। जब अमेरिकी सेना वियतनाम में युद्ध लड़ रही थी तब आम अमेरिकी वाशिंगटन में अपने ही देश के इस युद्ध के फैसले के खिलाफ मोर्चा निकाल रहा था। अमेरिका ने अभिव्यक्ति की आज़ादी के अंतर्गत नागरिकों को कुछ अधिकार दिए। आज वही नागरिक अमेरिकन झंडे को जूतों और कच्छों पर छाप कर घुमते हैं। खिलाफत ट्रम्प की करनी होती है, जला अपने देश का झंडा रहे होते हैं। वे आज अमेरिकन नेशनल एंथम पर खड़े भी नहीं होते और उनका मीडिया इस बात के लिए न केवल नागरिकों का समर्थन करता है बल्कि उन्हें उत्साहित भी करता है। आज अमेरिका में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसका कि मजाक नहीं उड़ाया जा सकता। वहां कुछ भी पावन नहीं है। चाहें वो उनका राष्ट्रपति हो, इतिहास हो, या उनका भगवान ही क्यों न हो। सबसे ताकतवर देश अपनी जनता की वजह से विश्व का सबसे मुर्ख देश भी कहलाता है। (स्रोत: thetoptens।com/stupidest-countries/) वो दिन दूर नहीं जब इतिहास में पढ़ेंगी कि कैसे अमेरिका की दादागिरी वहां ही जनता ही ख़त्म कर दी क्योंकि वहां लिब्रलिस्म की मात्र ज्यादा थी।
ऐसा नहीं है कि युएसए की यह स्थिति एक ही दिन में आ गई। ऐसा धीरे धीरे हुआ। जैसा की आज भारत में हो रहा है। युएसए ने उस समय नहीं रोका हम आज नहीं रोक रहे। क्या कुछ बातें अभिवयक्ति की आज़ादी से परे नहीं होती? फ्रांस का चार्ली हेबोड़ो याद है? पैग़म्बर मुहम्मद का केवल चित्र ही बनाया था। इसी तरह सिखों को देखो। एक एनीमेशन फिल्म बनी थी ‘चार साहिबजादे’ जो गुरु गोविन्द सिंह के चार पुत्रों पर बनी थी। फिल्म गुरु गोविन्द सिंह पर थी पर उस फिल्म में गुरुगोविंद सिंह के चलते फिरते स्वरुप को ना दिखा कर केवल उनका चित्र ही दिखाया गया था। लेकिन जब बात हिन्दुओं की आती है तो हम ऐसा क्यों नहीं कर पाते? क्यों हमारे शिव को बाथरूम में इधर उधर भागते दिखाया जाता है? जिस पद्मावती ने खिलजी से अपने सतीत्व को बचने के लिए अपने आप को भस्म कर लिया था आज क्यों उसका चित्र आज खिलजी के साथ लगाया जाता है?
पश्चमी सभ्यताओं की नक़ल करने वालों को सावधान हो जाना चाहिए, पश्चिम के विकास की नक़ल करोंगे तो पश्चिम के विनाश के लिए भी तैयार रहो। जो गलती युएसए कर चूका है उसे भारत को नहीं दोहराना चाहिए। इतनी आज़ादी भी अच्छी नहीं कि देश में कुछ पावन पवित्र ही ना रहे। लेकिन, भारत में रहने वाला गैर-हिन्दु समुदाय हिन्दुओं और अमेरिकियों की तरह इंतना बेवकूफ नहीं कि मनोरंजन और अभिव्यक्ति को आज़ादी के नाम पर अपने अरोध्यों का मज़ाक बनाएगा।
भारत की जनता का भी कर्तव्य बनता है कि वो अपने देश को मूर्ख देशों कि लिस्ट में शीर्ष पर आने से रोके।