जम्मू-कश्मीर में हुए मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने 2 आतंकियों अक़िब भट और सौफुल्लास इलियास ओसामा को मार गिराया था। यह मुठभेड़ लगभग 15 घंटों तक चली थी। मारे गए आतंकी में एक हिजबुल से था और दूसरा हाफिज सईद के ‘जैश-ए-मोहम्मद’ से जुड़ा था साथ ही पाकिस्तानी भी था। सबसे बड़ी बात यह हैं क़ि सोमवार को आतंकी अक़िब की अंतिम यात्रा निकली गयी तो उसमे हज़ारो नागरिकों की भीड़ थी। बड़ी बात इसलिए क़ि, आखिर ये कौन लोग हैं जो आतंकियों के लिए सांत्वना रखते हैं ? ये कौन हैं जो देश को बर्बाद करने वालो के साथ खड़े हैं ? ये कोई पैसे देकर लायी हुई भीड़ नहीं बल्कि आतंकी के समर्थन में खुद जनाज़े में आये लोग थे। साथ ही भीड़ ने भारत विरोधी नारे भी लगाये हैं। देश विरोधी नारों के साथ साथ कुछ स्थानीय लोगो ने आतंकी के समर्थन में बंद का भी आह्वान किया।
वहीं दूसरी तरफ़ इस 15 घंटे की गोलाबारी के मुठभेड़ में एक पुलिसकर्मी मंजूर अहमद नायक शहीद हुए जबकि आर्मी के एक मेजर समेत सुरक्षाबल के छह जवान घायल हुए हैं। शहीद पुलिसकर्मी कॉन्स्टेबल है। लेकिन आज शहीद के जनाज़े में ना कोई भीड़ हैं, ना बंद। क्यों ? ऐसा हमेशा क्यों ? आतंकी के समर्थन को कैसे जायज ठहराया जा सकता हैं ?
अब इन आतंकी समर्थित लोगों पर सरकार पैलेट गन चलाये तो सभी बुद्धिजीवी सामने आकर विरोध करते हैं, लेकिन देश के लिये जान देने वालो के लिये ये कहाँ चले जाते हैं ? आतंकी समर्थकों को ये क्यों नहीं बताते कि ये आतंकी हैं ना कि कोई शहीद।
इस जनाज़े को देखते हुये भारतीय क्रांति के इतिहास से एक नाम ध्यान में आता है, ‘शादीलाल’। वही शादीलाल जिसने शहीद भगत सिंह के खिलाफ ब्रिटिश सरकार की ओर से गवाही दी थी। उसकी गद्दारी की वजह से उसके मौत के बाद लाश को कन्धा देने वाला कोई नहीं मिल रहा था। लेकिन आज देश के साथ गद्दारी करने वालों की लाशों के जनाज़े निकाले जा रहे हैं। क्या इस देश में उसी पुरातन भाव से रक्षित आधुनिक भारत रूपी विचार की स्थापना नहीं हो सकती ?
आज आतंकियों के जनाज़े में हजारों की भीड़, आतंकी की मौत पर उसे ‘न्यायिक हत्या’ बताकर उसके समर्थन में सम्मलेन, ‘अफज़ल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल ज़िंदा हैं’ जैसे नारे यह सब क्यों हो रहे हैं ? आखिर हम किस दिशा में जा रहे हैं ? इनका समर्थन करने वाले ये क्यों नहीं देखते क़ि देश टूट जायेगा तो कहाँ रहेंगे ? लोकतंत्र और संविधान की बात करने वाले आतंकियों के समर्थन को अधिकार बताते हैं जबकि यहीं आतंकी उनके देश के नागरिकों को मरते हैं।
एक बात याद रखिये, जब देश रहेगा तभी संविधान और लोकतंत्र रहेगा। इन आतंकियों का समर्थन कर आप सिर्फ देश का विरोध कर रहे हैं। आप बीच में नहीं रह सकते, या तो आप देश के साथ हैं या देश के खिलाफ़, अब आपको तय करना हैं।
bilkul sahi kaha aapne, ajkal desh verodhi baate karna fashion ban gaya hai.
bade dino baad ek esa plateform mila jaha koi to desh ke hit mai baat karta hai.
well done.