हाल ही में खबर आई है की फ्रांस ने स्विस मूल के इस्लामिक प्रचारक हनी रामादान को अपने देश से बाहर निकाल दिया है और उन्हें अब वापस स्विट्ज़रलैंड भेज दिया जाएगा। फ्रांस की इंटीरियर मिनिस्ट्री ने ट्विटर में ट्वीट करके इस बारे में जानकारी साँझा की।
📌 Lutte contre l'#extrémisme et la #radicalisation : @MatthiasFekl a fait procéder ce soir à la reconduite vers la Suisse de Hani Ramadan pic.twitter.com/flYIEmpXY4
— Ministère de l'Intérieur et des Outre-mer (@Interieur_Gouv) April 8, 2017
हनी रामादान पारिवारिक रूप से इस्लामिक कट्टरपंथ से जुड़े हुए है साथ ही इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन Muslim brotherhood के संस्थापक हसन अल बनना इनके दादा है। Muslim brotherhood एक कुख्यात संगठन रहा है और यदा कदा इसके तार आतंकियों और आतंकी घटनाओ से जुड़ते रहे है। इतना ही नहीं विश्व के कुख्यात आतंकवादियों में से ज्यादातर कभी न कभी Muslim brotherhood से जुड़े हुए थे। उदहारण के तौर पे ओसामा बिन लादेन युवावस्था में ही Muslim brotherhood से जुड़ गया था। इसके अलावा अयमान अल जवाहरी जो की एक आँखों का सर्जन है और लादेन की मौत के बाद अल क़ायदा का सर्वोसर्वा बना वो मात्रा 14 साल की उम्र में Muslim brotherhood से जुड़ गया था। कुल मिला के आतंकवाद नाम के नाले के विभिन्न उदगमं स्थलों में से एक Muslim brotherhood भी है।
जैसा की पारिवारिक इतिहास रहा वैसे ही हनी रामादान भी कट्टर राहो पे चलता रहा और विवादित बाते बोलता रहा। पेशे से ये फ्रेंच भाषा का शिक्षक है लेकिन साथ ही साथ ये इस्लामिक धर्म प्रचारक का काम भी करता रहा। हनी रामादान पहली बार विवादों में आया वर्ष 2002 में, जब इसने इस्लामिक शरीया कानून के हिसाब से पत्थर मार के दी जाने वाली मौत की सजा का समर्थन करते हुए कुछ लेख लिए। इस खबर को वहां की मीडिया ने कवर भी किया था।
इस खबर के बाद इनको शिक्षक के पद से हटा दिया गया। इसके विरोध में इन्होने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और कोर्ट ने बजाए इन्हे दण्डित करने के इन्हे मुआवजा देने को कहा। फ्रांस सरकार ने मुआवजा तो दिया लेकिन उन्होंने इन्हे वापस नौकरी में लेने से साफ़ मना कर दिया। इस घटना के बाद हनी रामादान के पास बस एक ही काम रह गया और वो काम था घूम घूम के लोगो के बीच आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली मानसिकता का प्रचार करना। 2014 में इन्होने एक समुदाय विशेष के खिलाफ नफरत फ़ैलाने वाली बातें कही और ये फिर से विवादों में आ गए। और इतना काफी नहीं था तो साल 2016 में इन्होने महिलाओ के लिए अपमानजनक टिपण्णी कर दी। हनी रामादान के दादा मिस्र के थे लेकिन हनी के पास स्विसज़रलैंड की नागरिकता है इसीलिए इसको स्विसज़रलैंड डिपोर्ट किया जाएगा।
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काफी समय के बाद सरकार ने सही निर्णय लिया क्योकि लोगो को मारने वाले आतंकवादी तो खतरनाक होते ही है लेकिन उनसे ज्यादा खतरनाक प्रचारक के भेष में छुपे वो लोग होते है जो हाथ में कलम थाम के मजहब के नाम पे लोगो को आतंकवाद के लिए प्रेरित करते है। और आश्चर्यजनक यहाँ पे फ्रेंच कोर्ट का पुराना फैसला रहा था जहाँ पर उन्होंने हनी रामादान को मुआवजा दिया, उसकी नौकरी छीने जाने के लिए जबकि वो एक ऐसी विचारधारा का समर्थन कर रहा था जो की लोकतंत्र के मूल्यों के ही खिलाफ है। फ्री स्पीच या बोलने की आज़ादी महत्वपूर्ण है लेकिन जिस शरिया के तहत वो पत्थर मार के लोगो को मारने का समर्थन कर रहा था उस शरिया के अंदर बोलने की आजादी और किसी लोकतान्त्रिक मूल्य की कोई छूट नहीं है अतः जिस विचारधारा के अन्तर्गत खुद बोलने की आज़ादी का ही प्रावधान नहीं है उस विचारधारा को बोलने की आज़ादी का लाभ उठा के फलने फूलने नहीं देना चाहिए।
ऐसा ही कुछ भारत में वहाबी इस्लाम प्रचारक ज़ाकिर नाइक कर रहा था, धीरे-धीरे ज़ाकिर नाइक जिहाद के एजेंडा आगे बढ़ा रहा था, लोगो को भड़का रहा था, खुले आम आतंकवादियों को आतंकवादी कहने से मना कर रहा था, धर्म परिवर्तन करवा रहा था और साथ ही साथ अवैध केबल चैनल भी चला रहा था। हम यह सब नजर अंदाज़ करते गए और नतीजा क्या हुआ? नतीजा हुआ बंगलादेश में आतंकवादी हमला। उसमे एक भारतीय बेटी भी मारी गयी, उन आतंकवादियों ने लोगो से कुरान की आयते पूछी और जो न बता पाए उनको मार दिया। उन आतंकवादियों में से एक बांग्लादेशी सरकार के मंत्री का बेटा भी था। अच्छे स्कूल से पढ़ा था। घर वालो को मालूम भी नहीं चला और वो ज़ाकिर नाइक के भाषण सुन सुन के कट्टर हो गया। जब उसके कमरे की तलाशी ली गयी तो उसके कंप्यूटर में ज़ाकिर नाइक के भड़काऊ भाषण मिले। इसके बाद बांग्लादेश सरकार ने ज़ाकिर नाइक पर प्रतिबन्ध लगाने का निवेदन किया और उसके बाद ज़ाकिर नाइक पे सरकार का शिकंजा कसा तो वो सऊदी अरब भाग गया। दुसरो को लड़ने झगड़ने और जिहाद करने का ज्ञान देने वाला ज़ाकिर नाइक आज खुद कानून के डर से दूसरे देश में छिपा बैठा है।
आतंकवाद और आतंकवादी तो खतरनाक है ही लेकिन उतने ही खतरनाक ज़ाकिर नाइक और हनी रामादान जैसे विचारक और प्रचारक भी है जो लोगो में आतंकवाद का प्रचार प्रसार बहुत सावधानी से कर देते है, और ऐसे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली विचारधारा के प्रचारकों का विरोध करना बिलकुल भी इस्लामॉफ़ोबिया नहीं है क्योंकि अगर आप गैर मुस्लिम है तब तो आपको इन आतंकवादीयो से सतर्क रहने की जरुरत है ही लेकिन अगर आप मुस्लिम है तो आपको और भी ज्यादा सतर्क रहने की जरुरत है।
ये लोग बिना आपको मालूम हुए आप ही के बच्चो को आतंकवादी बना रहे है, उनके दिमाग में ऐसा ज़हर घोल रहे है जो या तो आपके बच्चो को जेल पहुंचाएगा या सीधे मौत की नींद सुलाएगा।