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आखिर इन हिंदी भाषी राज्यों की हालत इतनी चिंताजनक क्यों है?

Shubham Upadhyay द्वारा Shubham Upadhyay
15 October 2016
in समीक्षा
यूपी मायावती मुलायम सिंह
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एक और हिंदी पट्टी प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं, अरे भई अपने उत्तर प्रदेश में. सभी पार्टियों के बयान सुनकर तो लग रहा हैं क़ि चुनाव 90 के दशक के यूपी चुनाव की तरह लड़े जायेंगे. सभी पार्टियां जो खुद को लोकतांत्रिक कहती हैं, अपने-अपने पाले में अभी से बाहुबलियों को साध रही हैं. अब लोकतंत्र में बाहुबली का क्या स्थान ये तो वही बता सकते हैं. अगर बिहार में शहाबुद्दीन हैं तो यहाँ भी राजा भईया हैं. लिस्ट वैसे बहुत लंबी हैं, आप भी जानते ही हैं. राजनीतिक उठा-पटक शुरू भी हो गयी हैं, शुरआत हुई हैं सत्ताधारी के परिवार से. अब देखना हैं क़ि कौन कहाँ रहता हैं और कहाँ जाता हैं, आखिर दल-बदल का मौसम जो आया हैं.

‘बहन’ मायावती की दलित राजनीति अपने चरम पर हैं, लेकिन कोई उनसे ये क्यों नहीं पूछता क़ि ‘दलितों’ के लिए लड़ते-लड़ते इतनी “दौलत” कहाँ से आ गयी..??

समाजवादी पार्टी अब साईकल से आगे बढ़ कर लैपटॉप और मोबाईल पर आ चुकी हैं, लेकिन साईकल के पहिये कमज़ोर नज़र आ रहे हैं. भाजपा को अभी तक कैराना, दंगो के आलावा कोई मुद्दा ही नज़र नहीं आ रहा हैं, साथ में राम मंदिर भी तो हैं. ऐसा लग रहा हैं क़ि विकास क़ोई चाहता ही नहीं. कम से कम ‘सबका साथ-सबका विकास’ कहने वाली पार्टी तो आगे आकर विकास की बात करें, या तो यूपी के भाजपाई केंद्रीय नेतृत्व की बातों को नज़रअंदाज कर रहे हैं.

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हिंदुत्व का मुद्दा तो रहने ही दो इस बार. यूपी का हिन्दू कभी नहीं जागेगा. अगर ऐसा होता तो जब गुजरात के सोमनाथ का जीर्णोद्धार हो सकता हैं तो राम मंदिर क्यों नहीं बन सकता..?? दूसरों पर दोष डालकर हम अच्छे नहीं हो जाते. कार्यसंस्कृति बदलनी पड़ेगी. गुंडा गर्दी, बाहुबलीवाद को रोकना पड़ेगा. अपनी संस्कृति को बचाना होगा. सड़क पर तो ठीक से चलते नहीं हैं हम और चले हैं हिंदुत्व को बचाने. भूलिए मत क़ि बिहार में लालू प्रसाद यादव को इन्हीं हिंदी पट्टी वालों ने दुबारा जिन्दा किया है. ये कभी किसी के विरुद्ध खड़े हो ही नहीं सकते. इनसे आप उम्मीद करते हैं कि ये किसी को सबक सिखायेंगे..?? भूल जाइये.

यूपीएससी देने वाले हिंदी पट्टी के परीक्षार्थी जब से सीसैट लागू हुआ है तब से हंगामा कर रहे हैं. क्या वो हाई स्कूल स्तर की अंग्रेजी पढ़ कर यूपीएससी के मुँह पर तमाचा नहीं मार सकते..?? सभी को दिखा सकें की देखो हम हिंदी में पढ़ने वाले तुम्हारी इस अंग्रेजी से डरते नहीं हैं.

यूपी के लोगों ने ही गाँधी-नेहरू परिवार को हीरो बनाया है, और आज भी बनाये रखा हैं. यहाँ सुभाषचंद्र बोस पैदा नहीं हो सके, हाँ लेकिन नेताजी के नाम पर मुलायम सिंह हैं ना. यहाँ नेता का अर्थ नेतागीरी करने वाला होता है नेतृत्व करने वाला नहीं होता.

देश को वर्तमान प्रधानमंत्री सहित सर्वाधिक प्रधानमंत्री देने वाले इस राज्य ने देश की राजनीति को भी नयी दिशा दी हैं. यही वो राज्य है जिसने मुंशी प्रेमचंद, सुमित्रा नंदन पंत जैसे साहित्य और उपन्यासकार दिए, जिनकी चर्चा आज भी की जाती है. फिर भी आज उत्तरप्रदेश का वैसा विकास नही हो पाया जैसा गुजरात, महाराष्ट्र, आँध्रप्रदेश या कर्नाटक का हुआ है. विकास के पायदान उत्तरप्रदेश का क्रम काफी नीचे है. भूखमरी, गुंडागर्दी सबसे ज्यादा है. अपराध का बड़ा गढ़ भी है जिन्हें राजनीतिक वर्ग पालता पोस्ता है. इसे दुरुस्त करने की सोच राजनेताओं में होनी चाहिये तभी वोट का प्रतिशत भी बढ़ेगा और उत्तरप्रदेश का विकास भी.

आप किसी भी गैर हिंदी भाषी राज्य में जाइए, चाहे वो महाराष्ट्र हो या गुजरात, तमिलनाडु हो या केरल वो सभी अपनी भाषा में, अपने पहनावे में ही होते हैं और पुरे गर्व से आपस में बात करते हैं. लेकिन हम हिंदी पट्टी वाले जो एनसीआर में कदम रखते ही ना आते हुए भी अंग्रेज़ी बोलने का दिखावा करते हैं और स्टेशन पर लाइन लगा कर जमीन पे बैठते हैं, ताकि ट्रेन आने पर सीट पर कब्ज़ा जमा सके.

आज हालात ये हैं क़ि पढ़ा-लिखा युवा अपना भविष्य उत्तर प्रदेश में नहीं देखना चाहता, वो तो बस दिल्ली-एनसीआर या बेंगलुरु जैसी जगहों में अपनी ज़िन्दगी आराम से बिताना चाहता हैं, तो जब कोई यहाँ रहना ही नहीं चाहता तो उसे इस बात से क्या फर्क पड़ने वाला है कि यहाँ क्या हो रहा हैं और क्या होगा.

उत्तरप्रदेश में नदियां हैं, खदान हैं, जंगल हैं. इन सभी से बड़ा रोजगार लोगों को मिल सकता है, अगर इनका सही उपयोग किया जाय. आज उत्तर प्रदेश बिजली संकट से जूझ रहा है, जबकि राज्य में पानी का संकट नही है. अगर बिजली उत्पादन करे तो उत्तरप्रदेश इस किल्लत से मुक्त ही नही होगा, बल्कि अन्य राज्यों में बिजली भी बेच सकेगा. इससे रोजगार की संभावना भी बढ़ेगी. अगर वहां की पार्टियां विकास को केंद्र में रखकर बातें करें तो हो सकता है उत्तरप्रदेश से एक बड़े वर्ग का पलायन न हो.

उत्तर प्रदेश में विकास का माहौल लाने के लिए किसी एक पार्टी को बहुमत में आना बेहद जरूरी है. उत्तर प्रदेश के लोगों को यह समझना होगा कि विकास सरकारें नहीं करतीं. विकास उस प्रदेश के लोग करते हैं, जनता करती है. सरकार केवल जनता को ऐसा माहौल दे सकती है जहाँ विकास हो सके. समाजवादी पार्टी के यूपी को बेहतर बनाने का विज़न तो हम पिछले 5 सालों में देख ही चुके हैं. स्वघोषित दलितों की हमदर्द बहिन जी या इस बार पूरी तरह से यूपी चुनाव को जाति रंगरूप देने वाली कांग्रेस भी ऐसी ही है जहाँ परिवार जनहित से ज्यादा अहमियत रखता है. यूपी की व्यवस्थापक कार्यसंस्कृति को सुधारने का काम क़ोई कद्दावर व्यक्तित्व ही कर सकता हैं जिससे जनता में उत्तर प्रदेश के प्रति वही विश्वास दोबारा आये जो पहले हुआ करती थी.

Tags: BJPMayawatiMulayam Singh YadavUP Elections 2017
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