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ओवैसी को समझना है तो जिन्ना को समझिये और समझिये रंगे सियार की कहानी को

Arif Mohammad द्वारा Arif Mohammad
17 December 2016
in इतिहास, मत
जिन्ना सियार ओवैसी
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एक बार की बात है कि एक सियार जंगल में एक पुराने पेड़ के नीचे खड़ा था। पूरा पेड़ हवा के तेज झोंके से गिर पड़ा। सियार उसकी चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। वह किसी तरह घिसटता–घिसटता अपनी मांद तक पहुंचा। कई दिन बाद वह मांद से बाहर आया। उसे भूख लग रही थी। शरीर कमजोर हो गया था तभी उसे एक खरगोश नजर आया। उसे दबोचने के लिए वह झपटा। सियार कुछ दूर भागकर हांफने लगा। उसके शरीर में जान ही कहां रह गई थी? फिर उसने एक बटेर का पीछा करने की कोशिश की। यहां भी वह असफल रहा। हिरण का पीछा करने की तो उसकी हिम्मत भी न हुई। वह खड़ा सोचने लगा। शिकार वह कर नहीं पा रहा था। भूखों मरने की नौबत आई ही समझो। क्या किया जाए? वह इधर उधर घूमने लगा पर कहीं कोई मरा जानवर नहीं मिला। घूमता–घूमता वह एक बस्ती में आ गया। उसने सोचा शायद कोई मुर्गी या उसका बच्चा हाथ लग जाए। सो वह इधर–उधर गलियों में घूमने लगा।

*आरिफ उवाच(1) – इस तरह की घटना एक बार पहले भारत वर्ष में हो चुकी है,समय था उन्नीस सौ तीस। भारतीय राजनीति में महात्मा गाँधी का उदय हो चूका था। राजनीति में अपनी दाल न पकती देख मोहम्मद अली जिन्ना नाम का सियार भारत छोड़ के लन्दन जा चूका था। जैसे की पंचतंत्र की इस कहानी में बस्ती का नाम आता है वैसे ही हम मान सकते है की जिन्ना नाम का सियार भागते भागते लन्दन नाम की बस्ती में चला गया।

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यहाँ पर विधि का विधान देखिये की भारत छोड़ के जा चूका सियार जिन्ना को भारत वापस आने और मुस्लम लीग की राजनीति करने को मनाने वाले का नाम था,”मोहम्मद अब्दुर रहमान दर्द।”वह एक कादियानी था। और नियति का न्याय ऐसा की पाकिस्तान बनने के बाद अहमदिया समाज के लोगो को दूसरे दर्ज़े का नागरिक बना दिया गया और आज तक उन पे जुल्म होते है। पाकिस्तान का एक मात्र विज्ञान के क्षेत्र में  नोबल पुरुस्कार प्राप्त करने वाला भी कादियानी था और वो लोग बस इसी लिए उसे अपना नहीं मानते क्योंकि वो एक कादियानी है।

यही होता है ऐसे लोगों के साथ,ऐसे समाज के साथ जो अपनी मातृभूमि से गद्दारी करते है,अपने राष्ट्र के ज्यादा निष्ठा किसी और चीज़ में रखते है। अब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी,ऐसे ही इस सियार जिन्ना का एक और साथी था जिसने अपनी ही मातृ भूमि को छलनी किया,नाम था जोगेंद्रनाथ मंड़ल। आजकल के ज़माने में जो शिगूफा छोड़ा जाता है मीम और भीम का (हाँ ओवैसी और नसीमुद्दीन जैसे नेताओ की ही बात कर रहा हूँ) वो उस वक़्त भी चला था। ये जो जोगेंद्रनाथ मंड़ल थे वो भीम दल के कड़क नेता थे,याने की दलितों के नेता थे। इनको जिन्ना ने मीम और भीम के मिलावट वाली ऐसी अफीम खिलाई की ये अपनी ही मातृ भूमि के विभाजन में कारक बन गए।इनके चलते ही बंगाल का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया क्योंकि अब विभाजन का आधार मीम + भीम हो चूका था और उसी अनुपात में देश के टुकड़े किये गए। किसी ने कभी कहा था की नशे की सबसे ख़राब बात ये होती है की ये एक दिन उतर जाता है। ऐसे ही मंड़ल साहब का भी नशा उतर गया पर तब तक मातृ भूमि को जो आघात वो पंहुचा सकते थे,पंहुचा दिया था। सियार का साथ देने के एवज़ में उनको कानून मंत्री तो बना दिया जिन्ना ने ,पर साथ ही दलितों पे जुल्म भी चालू कर दिए,और इसी तरह एक दिन मंड़ल साहब का नशा उतरा,समझ में आया की मात्र धर्म के आधार पर बना राष्ट्र कभी सबके साथ न्याय नहीं कर सकता और छोड़ के पाकिस्तान चले आए भारत गुमनामी की मौत मरने।

तभी कुत्ते भौं–भौं करते उसके पीछे पड़ गए। सियार को जान बचाने के लिए भागना पड़ा। गलियों में घुसकर उनको छकाने की कोशिश करने लगा पर कुत्ते तो कस्बे की गली–गली से परिचित थे। सियार के पीछे पडे कुत्तों की टोली बढती जा रही थी और सियार के कमजोर शरीर का बल समाप्त होता जा रहा था। सियार भागता हुआ रंगरेजों की बस्ती में आ पहुंचा था। वहां उसे एक घर के सामने एक बड़ा ड्रम नजर आया। वह जान बचाने के लिए उसी ड्रम में कूद पड़ा। ड्रम में रंगरेज ने कपडे रंगने के लिए रंग घोल रखा था।

कुत्तों का टोला भौंकता चला गया। सियार सांस रोककर रंग में डूबा रहा। वह केवल सांस लेने के लिए अपनी थूथनी बाहर निकालता। जब उसे पूरा यकीन हो गया कि अब कोई खतरा नहीं हैं तो वह बाहर निकला। वह रंग में भीग चुका था। जंगल में पहुंचकर उसने देखा कि उसके शरीर का सारा रंग हरा हो गया हैं। उस ड्रम में रंगरेज ने हरा रंग घोल रखा था। उसके हरे रंग को जो भी जंगली जीव देखता, वह भयभीत हो जाता। उनको खौफ से कांपते देखकर रंगे सियार के दुष्ट दिमाग में एक योजना आई। रंगे सियार ने ड़रकर भागते जीवों को आवाज दी “भाइओ, भागो मत मेरी बात सुनो। उसकी बात सुनकर सभी जानवर भागते जानवर ठिठके।

उनके ठिठकने का रंगे सियार ने फायदा उठाया और बोला “देखो, देखो मेरा रंग। ऐसा रंग किसी जानवर का धरती पर हैं? नहीं न। मतलब समझो। भगवान ने मुझे यह खास रंग तुम्हारे पास भेजा हैं। तुम सब जानवरों को बुला लाओ तो मैं भगवान का संदेश सुनाऊं।”

उसकी बातों का सब पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे जाकर जंगल के दूसरे सभी जानवरों को बुलाकर लाए। जब सब आ गए तो रंगा सियार एक ऊंचे पत्थर पर चढकर बोला “वन्य प्राणियों, प्रजापति ब्रह्मा ने मुझे खुद अपने हाथों से इस अलौकिक रंग का प्राणी बनाकर कहा कि संसार में जानवरों का कोई शासक नहीं हैं। तुम्हें जाकर जानवरों का राजा बनकर उनका कल्याण करना हैं। तुम्हारा नाम सम्राट ककुदुम होगा। तीनों लोकों के वन्य जीव तुम्हारी प्रजा होंगे। अब तुम लोग अनाथ नहीं रहे। मेरी छत्र–छाया में निर्भय होकर रहो।”

सभी जानवर वैसे ही सियार के अजीब रंग से चकराए हुए थे। उसकी बातों ने तो जादू का काम किया। शेर, बाघ व चीते की भी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गई। उसकी बात काटने की किसी में हिम्मत न हूई। देखते ही देखते सारे जानवर उसके चरणों में लोटने लगे और एक स्वर में बोले “हे बह्मा के दूत, प्राणियों में श्रेष्ठ ककुदुम, हम आपको अपना सम्राट स्वीकार करते हैं। भगवान की इच्छा का पालन करके हमें बडी प्रसन्नता होगी।”

एक बूढे हाथी ने कहा “हे सम्राट, अब हमें बताइए कि हमारा क्या कर्तव्य हैं?”

रंगा सियार सम्राट की तरह पंजा उठाकर बोला “तुम्हें अपने सम्राट की खूब सेवा और आदर करना चाहिए। उसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। हमारे खाने–पीने का शाही प्रबंध होना चाहिए।”

शेर ने सिर झुकाकर कहा “महाराज, ऐसा ही होगा। आपकी सेवा करके हमारा जीवन धन्य हो जाएगा।”

बस, सम्राट ककुदुम बने रंगे सियार के शाही टाठ हो गए। वह राजसी शान से रहने लगा।

कई लोमडियां उसकी सेवा में लगी रहतीं भालू पंखा झुलाता। सियार जिस जीव का मांस खाने की इच्छा जाहिर करता, उसकी बलि दी जाती।

जब सियार घूमने निकलता तो हाथी आगे–आगे सूंड़ उठाकर बिगुल की तरह चिंघाड़ता चलता। दो शेर उसके दोनों ओर कमांडो बाडी गार्ड की तरह होते।

रोज ककुदुम का दरबार भी लगता। रंगे सियार ने एक चालाकी यह कर दी थी कि सम्राट बनते ही सियारों को शाही आदेश जारी कर उस जंगल से भगा दिया था। उसे अपनी जाति के जीवों द्वारा पहचान लिए जाने का खतरा था।

आरिफ उवाच(2)-ठीक इसी घटना की तरह सियार जिन्ना ने सेकुलरिज्म का चोला उत्तर फेंका और पहन लिया कट्टरपंथी का चोला। उन्नीस सौ चौतीस में शायद जिन्ना भारत वापस आया। अब की बार जो जिन्ना भारत आया था वो कांग्रेसी नहीं मुस्लिम लीग से जुड़ा हुआ जिन्ना था। उसने भारत आगमन ले बाद अलग मुल्क की बातें करना चालू की,बात शुरू हुई मुस्लिमों के लिए अलग सीट आरक्षित करने से और देश के बंटवारे तक गयी।

छोटी छोटी बातें ही आगे चल के बंटवारे का बीज बो देती है। इसीलिए जब ओवैसी जैसे लोग एटीएम को लेके धार्मिक द्रष्टिकोण वाले बयान देते है तो संदेह और संशय  बढ़ जाता है। एक बार बंटवारे का दंश झेल चुके है दोबारा ऐसा ज़हरीला कांटा देख के हमे जड़ पे मट्ठा पहले ही डाल देना है। एक बात हमारे ख्याल में हमेशा रहना चाहिए की हमारा समर्थन केवल उसी नेता को हो जो समस्त भारतीयों की बात करता हो,भारतीयों को वर्ण ,धर्म,भाषा के चश्मे से विभाजित न करता हो। और हमारी जिम्मेदारी है ये ध्यान में रखना की कोई लक्ष्य कोई विश्वास राष्ट्र हित से बड़ा नहीं हो सकता।

जब ये लेख लिखने का विचार आया तो मस्तिष्क में जिन्ना नहीं ओवैसी ही थे और मन मस्तिष्क में रंगा सियार की कहानी भी स्वतः ही आ गयी।

ऐसा सोचने के अपने कारण है। एक बात मैंने गौर ये किया है की ओवैसी जैसे लोग जब राष्ट्रीय मंच पे होते है तो बड़ा संभल के बोलते है, फूँक फूँक के बोलते है पर जैसे ही अपने क्षेत्र में पहुचते है,अपना रंग दिखाना शुरू कर देते है,ध्रुवीकरण की राजनीति शुरू कर देते है । इसी तरह के लोग रंगा सियार कहलाते है।

बात निकली है तो देखना ये भी जरुरी है की की आखिर कभी सेकुलरिज्म का नकाब पहनने वाले जिन्ना ने भारत के विभाजन की कहानी कैसे लिख दी,भारत आ के उसने इस मुद्दे पे चुनाव लड़ा की भारत का मुसलमान खतरे में है,इस मुद्दे को कोई सफलता मिली नहीं और अधिकांश क्षेत्र में लाहौर, रावलपिंडी आदि में भी कांग्रेस की जीत हुई। अब यहाँ पे जिन्ना  ने सियार की तरह रंग बदला,बात बदली,अंग्रेजी में कहे तो,”नरेटिव चेंज करना।” जिन्ना ने अब मुद्दे को नया कलेवर दिया,अब उसने मुद्दे का नाम बदल के भारत का मुसलमान खतरे में की जगह कर दिया इस्लाम खतरे में। और यही नरेटिव था की दस साल के अंदर मातृ भूमि दो हिस्सो में बंटने की कगार पे आ गयी। ये नरेटिव ही जिन्ना नाम के सियार का रंग था।

एक दिन सम्राट ककुदुम(सियार) खूब खा–पीकर अपने शाही मांद में आराम कर रहा था कि बाहर उजाला देखकर उठा। बाहर आया चांदनी रात खिली थी। पास के जंगल में सियारों की टोलियां ‘हू आं आं’ की बोली बोल रही थी। उस आवाज को सुनते ही ककुदुम अपना आपा खो बैठा। उसके अदंर के जन्मजात स्वभाव ने जोर मारा और वह भी मुंह चांद की ओर उठाकर और सियारों के स्वर में मिलाकर ‘हू आं आं ’ करने लगा।

शेर और बाघ ने उसे’हू आं आं’ करते देख लिया। वे चौंके, बाघ बोला “अर्, यह तो सियार हैं। हमें धोखा देकर सम्राट बना रहा। मारो नीच को।”

शेर और बाघ उसकी ओर लपके और देखते ही देखते उसका काम ख़त्म कर ड़ाला।

आरिफ उवाच(3):- और इसी तरह जैसे सियार का भेद खुला वैसे ही जिन्ना नाम के सियार का भेद भी कुछ समय बाद खुला,उसका बनाया पाकिस्तान दो हिस्सो में बाँट गया,जो हिस्सा बचा है उसमे भी बलूचिस्तान आज़ादी मांग रहा है,सिंध में अलग स्वतंत्रता की मांग हो रही है,सीख ये की झूठ का एक न एक दिन पर्दाफाश होता ही है,और जो लोग मातृ भूमि की कद्र नहीं करते वो इसी तरह परेशान होते है और बर्बादी ही उनका भाग्य होती है।

शायद इसीलिए तो हम सब राष्ट्र को माँ मानते है,राष्ट्र को माँ मान के नमन करते है क्योंकि जैसे  बिना माँ के बच्चे अक्सर बिगड़ जाते है वैसे ही राष्ट्र से सरोकार न रखने वाले भी अक्सर गुमराह हो जाते है।

वंदे मातरम।

आवश्यक लिंक्स:-

Jinnah persuaded to return to politics by Ahmadiyya Missionary

 

Tags: ओवैसीजिन्नासियार
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टिप्पणियाँ 1

  1. सुबाहू जैन says:
    8 years पहले

    बहुत सुंदर लेख प्यारे भाई, मज़ा आ गया, इतनी सीधी सच्ची बात कहने के हिम्मत सभी मे नहीं होती, सत्य को पूर्वाग्रह के बगैर ही देखा और समझा जा सकता है, धन्यवाद् इस सुंदर और जातक कथा के स्वरुप मे ढाल के लिखने के लिए, सत्य सदा कहानियों और प्रतीकों के माध्यम से ज्यादा ग्राहक और आनंदकारी बन जाता है धन्यवाद्, अपनी लेखनी से सदा ऐसे ही सत्य अभिव्यक्त करते रहिये, इश्वर आपके लेखन और चिंतन को और गहराई और रौशनी प्रदान करे

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