डिअर अनुराग कश्यप,
नमस्कार, वैसे आप इस नमस्कार के भी लायक नहीं हैं किन्तु यह मेरी सभ्यता के संस्कार हैं क़ि जिस समुदाय को आपने ‘आतंकवादी’ घोषित कर दिया हैं उसी समुदाय से आने के बाद भी मैं आपको नमस्कार कर रहा हूँ। आपके कुल के वरिष्ठ संजय लीला भंसाली पर राजस्थान में हुये कथित हमले के बाद आपकी प्रतिक्रिया शानदार थी। संजय लीला भंसाली का समर्थन एक तरफ़ लेकिन जिस तरह की आक्रोशित प्रतिक्रिया आपकी गाली-गलौच से भरपूर फिल्मों में होती हैं बिल्कुल वैसी ही ‘एंग्री यंग मैन’ वाली प्रतिक्रिया आपने दी।
अनुराग कश्यप जी, अपने पेशे से जुड़े लोगों का समर्थन करना अच्छी बात हैं, लेकिन किस हद तक? हर चीज की एक सीमा होती हैं और सीमा लांघने पर उसका एक अंजाम होता हैं। चाहे हालात कितने भी बुरे हो घर का समर्थन करना पड़ता हैं लेकिन यदि घर में कचरा बढ़ जाये तो उसे साफ़ करने के लिये खुद को आगे भी आना चाहिए। जिस तरह राजनीति, खेल, साहित्य और मीडिया जैसे क्षेत्र के दूषित होने पर उसी क्षेत्र के कुछ लोगों ने आगे बढ़कर इसे साफ़ करने का जिम्मा उठाया तो आप अपने कर्मक्षेत्र में हो रहे गलत कार्यों पर ‘एक पेशे’ और ‘एकजुट बॉलीवुड’ जैसी गली मोहल्लों की टोलियों जैसी बातें कर ऐतिहासिक मूल्यों से छेड़छाड़ का मुखर समर्थन कर रहे हैं।
तथ्यों से छेड़छाड़, इतिहास के साथ खिलवाड़ आखिर कोई कब तक और आखिर क्यों सहेगा? आपने भंसाली के समर्थन को आधार बनाकर एक समुदाय को ‘आतंकी’ घोषित कर दिया। अपनी कुंठा से ग्रसित होकर आपने गिनती के लोगों की गलती को दूसरी दिशा में मोड़कर करोड़ों लोगों को निशाना बना दिया।
अनुराग कश्यप जी, मैं स्वयं हिन्दू समुदाय से आता हूँ, और मैंने आज तक किसी पर कोई अत्याचार नहीं किया हैं ना ही मैंने कभी किसी को मारा हैं, ना ही मेरे खिलाफ़ किसी थाने में रिपोर्ट दर्ज़ हैं, फिर भला मैं कैसे आतंकवादी हुआ?
दरअसल ऐसा हैं अनुराग कश्यप जी, आपकी यह टिप्पणी आपकी कुंठा और अहंकार को प्रदर्शित कर रही हैं। आप और आपके फ़िल्म इंडस्ट्री के साथी मित्र बरसों से इसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं क़ि ‘बहुसंख्य समुदाय के इतिहास, आराध्य से छेड़खानी या अपमान करने पर कोई परेशानी नहीं, अपितु यह तो पैसे कमाने का जरिया होगा’। आज वही समुदाय का एक तिनका मात्र हिस्सा आपके गलत कामों पर सामने आकर खड़ा हो गया तो आपको उनमें आतंकवादी दिखाई देने लगा।
लेकिन याद कीजिए ‘हैदर’ फ़िल्म की शूटिंग। कश्मीर घाटी में फ़िल्म में तिरंगा लहराने का और ‘भारत माता की जय’ बोलने का दृश्य शूट करते समय कलाकारों पर हिंसात्मक हमले हुये थे, इस हमले में कुछ घायल भी हुये थे।
तब आपको ‘आतंकवाद’ की सुध नहीं थी? आखिर आपके अंदर का वो एंग्री यंग मैन कहाँ गायब हो गया था?
अनेकों बार फिल्मों के सेट पर मज़हबी चरमपंथियों ने हमले किये हैं तब आप कहाँ थे?
ए आर रहमान को जब फतवा जारी किया गया तब भी चुप थे?
दक्षिण में कमल हसन की फ़िल्म ‘विश्वरूपम’ के विवाद के समय भी आप चुप थे।
आपका दोहरा चेहरा जनता के सामने आ रहा हैं। आपने जिस बहुसंख्य समुदाय को ‘आतंकवादी’ घोषित किया हैं, उसी समुदाय की वजह से आपको प्रसिद्धि मिली हैं। यहाँ तक क़ि आप जिस ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर रहे हैं ना उसमें दिखने वाली वो नीले रंग की वेरिफाइड ‘राइट निशान’ भी इसी ‘आतंकी’ समुदाय के समर्थन की वजह से ही हैं।
आपके राजनीतिक संबंध और विचारधारा अब खुलकर सामने आ रही हैं। छोटी-छोटी बातों पर आप खुद को मीडिया में बनाये रखने के लिये प्रधानमंत्री तक को ट्वीट करते हैं। पिछली बार आपने बेवजह प्रधानमंत्री को ट्वीट कर दिया था। आज आपके ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ पर किसी ने टिप्पणी कर दिया तो उसके बाप का नाम लेकर आप अपनी ब्लैक फ्राइडे को याद करने लग गये। देखिये कश्यप जी, आपकी विचारधारा जो भी हो, आपका धर्म, जाति, लिंग, रूचि जो भी हो, इससे मुझे फर्क़ नहीं पड़ता। लेकिन यदि आप अभिव्यक्ति के नाम मेरे धर्म पर टिप्पणी करेंगे तो क्रिया की प्रतिक्रिया का सिद्धान्त आपको पता ही होगा।