आज ‘देश के टुकड़े’ चाहने वालों के समर्थक देश और सेना के विरोध में निम्न स्तर तक पहुँच गए हैं। भारत की सरकार पर सेना का भरोसा कम करने के लिये ये कभी शहीद की बेटी को आगे लाते हैं तो कभी किसी सैनिक के वीडियो को वायरल करते हैं। ताजा मामला है लांस नायक रॉय मैथ्यू के मृत्यु का।
‘द क्विंट’ नाम के मीडिया वेबसाइट ने मृतक सैनिक का स्टिंग ऑपरेशन किया था और उस वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था। ‘द क्विंट’ को अभी देशद्रोह के आरोपियों की समर्थक और एनडीटीवी को पूर्व एंकर लीड कर रही हैं, और यह स्टिंग संभवतः उनके प्लान का ही हिस्सा हो सकता हैं, लेकिन जो भी हो देश ने तो एक जवान को आज खो दिया है।
‘द क्विंट’ के पत्रकार ने महाराष्ट्र के सैनिक छावनी में प्रवेश कर लांस नायक रॉय मैथ्यू से बात की। छावनी क्षेत्र में यह पत्रकार एक छिपे कैमरे के साथ आयीं थी जिसमे इन्होंने सैनिक के साथ हुई बातचीत को सोशल मीडिया में शेयर किया था। सैनिक अपने साथ हुये इस गैरजिम्मेदाराना हरकत से दबाव में था जिसकी वजह से 25 फ़रवरी से वह अपने कमरे से गायब था। जिसके बाद 2 मार्च को उनकी लाश छावनी क्षेत्र में मिली। जो संभवतः मानसिक दबाव में आत्महत्या प्रतीत हो रहा है। क्या इसके लिये ‘द क्विंट’ जैसे मीडिया समूह जिम्मेदार नहीं हैं ? क्या सैनिक छावनी क्षेत्र में जासूसी कैमरे ले जाना और एक सैनिक से धोखाधड़ी कर उसके वीडियो को फैलाना गलत नहीं ? देश की सुरक्षा में परिवार छोड़ के आने वाले सैनिक को दबाव में लाकर आत्महत्या के लिये मजबूर कर देने की जिम्मेदारी पूरी तरह से उस पत्रकार और ‘द क्विंट’ की ही बनती है।
रॉय मैथ्यू के भाई ने भी सैनिक की मौत पर सीधे-सीधे मीडिया के गैरजिम्मेदाराना रवैये पर आरोप लगाया है। सैनिक के भाई ने कहा क़ि – ‘रॉय को वीडियो रिकॉर्ड होने की जानकारी नहीं थी, मीडिया ने उनके साथ धोखाधड़ी की है।’ ‘द क्विंट’ ने यह वीडियो 23 फ़रवरी को सोशल मीडिया में डाला था जो अब सैनिक की मौत के बाद उन्होंने डिलीट कर दिया है। ‘द क्विंट’ की ओर से अभी कोई बयान नहीं आया है।
मीडिया से बयान आना नहीं आना अलग बात हैं, ये हम भी जानते हैं क़ि बयान क्या होगा और बयान के बाद भी इनकी गतिविधियाँ जारी रहेंगी। सबसे बड़ा सवाल यह हैं क़ि मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह कब करेगा ? खुद को देश का चौथा स्तंभ कहलाने वाली मीडिया अब अपने विचारधारा के एजेंडे को चलाने के लिये देश की सेना तक को गुमराह कर उनका मनोबल कमजोर करना चाहते हैं। आखिर ऐसे गतिविधियों पर सरकार लगाम क्यों नहीं लगाती ?
ये वही पत्रकारों का समूह हैं जो अखंडता के खिलाफ़ उठती आवाज़ को अभिव्यक्ति की आज़ादी बताता हैं, देशद्रोह के आरोपियों का समर्थन करता हैं, सैनिकों को बलात्कारी कहने वालो को हीरो बनाता हैं। लेकिन इस हादसे के बाद चुप क्यों हैं ? पाकिस्तान परस्तों के लिये सांत्वना रखते हैं। देशविरोधियों को जेल में डालने पर ‘द क्विंट’ की पत्रकार बरखा दत्त लगातार ट्वीट करती हैं लेकिन सैनिक के मृत्यु पर चुप्पी क्यों ?
आखिर देश के सैनिक के मृत्यु की ज़िम्मेदारी कौन लेगा ? मीडिया की इस निम्न हरकत के बाद सेना का जो मनोबल गिरेगा उसका जिम्मेदार कौन होगा ? जिम्मेदारी, यह शब्द से तो जैसे इन मीडियाकर्मियों का कुछ लेना देना ही नहीं हैं। यह पहली बार संवेदनशील पत्रकारिता नहीं हैं, ‘द क्विंट’ में वहीं पत्रकार हैं जिनके रहते में उनके पुराने संस्थान को देशविरोधी और रक्षा संबंधी मुद्दों को लाइव एयर करने के लिये फटकार भी लग चुकी हैं। ऐसा कब तक चलेगा ? कब तक ये लोग देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करेंगे ? सेना के जवान की मृत्यु का जिम्मेदार कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि वही देश तोड़ने वाली विचारधारा है जो सरकार, सेना और जनता सभी का मनोबल गिराना चाहती है, सबको दिग्भ्रमित करना चाहती हैं।