सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनायेंगे।
रामलला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे।।
पिछले 25 सालों से यह नारा पुरे देश में गूँज रहा हैं। उत्तरप्रदेश में भाजपा के जीत के बाद श्रीराम भक्तों के वर्षों के इंतजार को आज एक नयी उम्मीद, एक नयी ऊर्जा मिली हैं। अब उत्तरप्रदेश में योगी जी और केंद्र में मोदी जी की सरकार हैं जोकि अयोध्या में राम मंदिर की पक्षधर भी हैं तो देश के सभी राम भक्तों को यह उम्मीद हैं क़ि मंदिर अब जल्द ही बनेगा।
लेकिन समस्या कुछ और हैं। बहुसंख्य समुदाय से ही कुछ लोग धर्मनिरपेक्ष का सिद्धान्त देते हुये कह रहे हैं क़ि अयोध्या में मंदिर की जगह गरीबों के लिये अस्पताल या कोई सामाजिक कल्याण का कार्य किया जाये। बिल्कुल सही बात हैं। अब गरीबों के लिये अस्पताल या कोई सामाजिक कल्याण कभी गलत नहीं हैं, लेकिन मंदिर की जमीन पर ही क्यों ? वो भी उस स्थान पर जिसपर रामलला का जन्म हुआ। जिस स्थान पर लाखों लोगों ने मंदिर के लिये अपने प्राणों की आहुति दी। उसी स्थान पर क्यों ?
अस्पताल या सामाजिक कल्याण की बात करने वाले आंदोलन कर सरकार पर दबाव डालकर भी किसी अन्य स्थान पर यह कार्य करा सकते हैं। आज सोशल मीडिया हैं, आप उस पर भी अनेकों मुहीम की तरह एक यह मुहीम भी चला सकते हैं, लेकिन मंदिर के स्थान पर ही क्यों ? जबकि राम मंदिर पर चले केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी माना हैं क़ि उस जगह पर रामलला मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सरयू नदी के तट पर अयोध्या नगर को मनु ने बसाया था। रामायण के अनुसार हिंदुओं के परम आराध्य प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या ही हैं। भारत भूमि और सनातन धर्म का इतिहास मात्र 14-15 सौ वर्ष पुराना या किसी AD या BC से निर्धारित नहीं होता। यह विश्व के प्राचीनतम धर्म और भारत विश्व की प्राचीनतम भूमि हैं। यहाँ सदैव बाहरी आक्रमंताओं ने आकर लूट मचाया हैं, चाहे वो मुस्लिम हो या ईसाई। इसी क्रम में अफ़गान से आने वाले बाबर ने 1528 में अयोध्या में रामलला के जन्मभूमि पर मस्जिद नुमा ढाँचा बनवाया था। आखिर यह भूमि थी किसकी ? इस भूमि पर किसका पतन करने मस्ज़िद का निर्माण कराया गया ?
पुरे विश्व में अनेकों धर्म हैं, एक बात सोचिये इनमे से किसने अपने धर्मस्थल खोये हैं ? किसी ने भी नहीं।
एक हम हैं जो कैलाश मानसरोवर के लिए चीन पर निर्भर हैं, अयोध्या में राम मंदिर के लिए अदालत में हैं, श्रीकृष्ण जन्मभूमि का जिक्र ही नहीं है, सोमनाथ मंदिर भी 5 बार टूटने के बाद बनाया गया।
हर बार सिर्फ एक ही समुदाय, एक ही धर्म विशेष पर हमला किया गया हैं। आज स्थिति यह हैं क़ि धर्मनिरपेक्षता के पैरोकार भारत में सिर्फ बहुसंख्य समुदाय की आवाज़ दबाने की कोशिश में लगे हैं।
दूसरी बात, मंदिर एवं मस्ज़िद में फ़र्क़ होता हैं। सामान्यतः गली-मोहल्ले में बने मंदिर ईश्वर की आराधना के स्थल होते हैं जिसे सड़क चौड़ीकरण या अन्य सरकारी कामों के बीच में आने पर इसे अन्य जगह स्थापित किया जाता हैं, किन्तु देश के विभिन्न स्थलों पर बने विशेष और महत्वपूर्ण मंदिर ना सिर्फ पूजन स्थल हैं बल्कि हिन्दू मान्यताओं और आस्था के दृष्टि से भगवान के स्थान हैं। भारत के सभी मुख्य मंदिरों के स्थान, वहाँ की दिशा, स्थान का कंपन, गुरुत्वाकर्षण और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अन्यत्र स्थानों से थोड़ा अलग होता हैं। वहीं जहाँ तक मस्ज़िद की बात हैं तो पुरे विश्व में मस्ज़िद मात्र इबादत गृह होता हैं, ना कि ईश्वर या अल्लाह का घर। यदि भारत की बात करे तो यहाँ के मुस्लिम मक्का की ओर (पश्चिम) मुँह कर नमाज़ पढ़ते हैं। इस कथन का तात्पर्य यह हैं क़ि मस्ज़िद किसी भी जगह पर बनाया या स्थापित किया जा सकता हैं, वह सिर्फ और सिर्फ पूजन स्थल हैं। अतः विवादित ढाँचा रुपी बाबरी मस्ज़िद को किसी दूसरे स्थान पर विस्थापित किया जा सकता हैं जो क़ि सऊदी जैसे इस्लामिक देशों में सड़के बनाने और सरकारी निर्माण के समय आम बात होती हैं।
तो ऐसा हैं मित्रों, अयोध्या में अस्पताल का ज़रूर निर्माण होना चाहिये, लेकिन किसी अन्य सरकारी जमीन पर। जिस दिन इसके लिये आवाज़ उठेगी हम समर्थन में आयेंगे। लेकिन रामलला की जन्मभूमि पर केवल मंदिर ही बनेगा, उससे कम कुछ भी नहीं।
yeh hinduo ka haq hai aur unhe ise le lena chahiye, haq bhikh me nahi mila karte, unhe lena padta hai ,aur yeh to behad wazib haq hai, aur yeh hokar rahega koi bhi ise rok nahi sakta, aur yadi aisa nahi kar paye is desh ke 82% aabadi wale log to lanat hai unpe aur is mitti ki santaan hone pe
सम सामयिक बढ़िया आलेख, जन्मभूमि पर मंदिर ही बनना चाहिए। लाखों जाने गंवाकर अस्पताल आदि निर्माण की बाते फकत तुष्टिकरण की राजनीति है।