हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने किसान परिवारों का लगभग 38 हजार करोड़ का कर्ज माफ़ कर दिया है। महाराष्ट्र में भी किसान कर्ज माफ़ करने के मुद्दे पर विरोधियो द्वारा सरकार को घेरने की कोशिश की जा रही है। हालाकि कर्ज माफ़ करना किसान को आंशिक राहत तो पहुँचाती है लेकिन क्या ये समस्या का सटीक इलाज है ? विश्लेषण किया जाये तो मेरा जवाब होगा, नहीं।
वर्ष 2008 में महाराष्ट्र में तत्कालीन UPA सरकार ने किसान परिवारों का लगभग साठ हजार करोड़ का कर्ज माफ़ किया था। पर फिर भी वर्ष 2009 में 2872 किसानों ने आत्महत्या की थी। तो अगर कर्ज माफ़ करना आत्महत्या रोकने का उपाय है तो तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार द्वारा की गयी 2008 की कर्ज माफ़ के ठीक अगले साल ही इतनी बड़ी मात्रा में आत्महत्याएं नहीं होनी चाहिए थी।
किसान वर्ग एक मेहनतकश वर्ग है। जिसे रूखी सुखी ही सही पर अपनी मेहनत की खाने की आदत है। वो धरती को फाड़ के उससे अनाज उपजाना जानता है।
किसान को कर्ज माफ़ योजना जैसी बैसाखियों की जरुरत नहीं है।
पर राजनेताओ की चाल में फंस कर किसान भी इस कर्जमाफी का शिकार बन ही जाता है। अगर किसानों को जरुरी सुविधाएँ मुहैया करायी जाये, आधुनिक तंत्रज्ञान के बारे में जागरूक कराया जाये तो किसान भी आत्मनिर्भर हो कर आत्मसम्मान के साथ जी सकता है।
चलिए देखते है ऐसी कोनसी सुविधाएँ है जो किसानो को मुहैया कराने से उनकी स्थिति में बदलाव आएगा।
1. सिंचन व्यवस्था: देश में ऐसे कई सिंचन प्रकल्प मौजूद है जिन्हें कई साल पहले पूरा हो जाना चाहिए था। लेकिन राजनेताओं ने अपनी जेब भरने के चक्कर में उन्हें पूरा नहीं होने दिया। उदाहरणार्थ: महाराष्ट्र के किसान आत्महत्या पीड़ित भाग का गोसीखुर्द प्रकल्प। ये प्रकल्प अगर वक़्त रहते पूरा हो जाता तो शायद कितनी ही आत्महत्याएं न होती। पर तत्कालीन सरकार ये कहती रही के उसे पूरा करने के लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन नहीं है। और इस प्रकल्प के हिस्से के संसाधन पहले से ही सम्पन्न ऐसे पश्चिम महाराष्ट्र में भेजे गयी। अभी महाराष्ट्र की देवेन्द्र फडणवीस सरकार द्वारा इस समस्या का संज्ञान लेते हुये पश्चिम महाराष्ट्र के संसाधनों को विदर्भ की और मोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
2. भण्डारण: किसानो को उनके अनाज और बाकि उपज के रख-रखाओ की व्यवस्था करवाना ये भी एक समस्या है। इसके लिए गोदामो की आपूर्ति सरकार द्वारा की जानी चाहिए।
3. शीतघर: किसानो द्वारा उगाये जाने वाले जो पदार्थ ऐसे होते है जो जल्दी सड़ सकते है उन्हें ज्यादा देर सुरक्षित रखने के लिए शीतघरो की व्यवस्था तालुका स्तर पे होनी चाहिए।
4. परिवहन सुविधाये: अपनी उपज को जल्द से जल्द बाजारों तक पहुँचाने के लिए किसान को योग्य परिवहन सुविधाएं उपलब्ध करवानी चाहिए।
5. खुले बाजार: किसानो को दलाल रहित बाजारों की सुविधाएं दिलवानी चाहिए।
6. बाजार भाव: आखिर में सबसे जरुरी बात, किसान को उनके माल का अच्छा भाव मिलना चाहिए, वरना यहाँ तो हम में से ही कुछ ऐसे लोग है जो पिज्जा हट में जा कर 600 रूपये का पिज्जा खा के वेटर को टिप भी दे देंगे पर अगर गोभी 15 से 20 हो जाये तो पार्लियामेंट तक मोर्चे निकाल लेते है।
ये तो हो गयी सुविधाएं जो किसानो को दिलायी जानी चाहिए अब आईये देखते है वो चीजे जिनके बारे में किसानो को जागरूक किया जाना चाहिए।
1. मृदा परीक्षण: मृदा परीक्षण वो प्रक्रिया है जिसमें किसान के खेती की मिटटी का परीक्षण किया जाता है। उसमे किस पदार्थ की कमी है और कौन सा पदार्थ जरुरत से अधिक है ये बताया जाता है, और उसके अनुसार किसानो को ये भी बताया जाता है के उनके खेती के जमीन के हिसाब से उस खेत में कौन सी बुआई ज्यादा फायदेमंद रहेगी।
2. खेती से जुड़े दूसरे व्यापार: क्योंकि खेती से जुड़े व्यापार खेती पर ध्यान देते भी किये जा सकते है। जैसे की दूध डेरी, ऐसे व्यापार हमारे किसान को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में कारगर साबित हो सकते है।
3. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग: हालांकि ये विषय विवादास्पद है पर मेरी दृष्टी से Contract Farming किसानो की स्थिति सुधरने का कारगर उपाय साबित हो सकता है।
4. आधुनिक खेती: किसानो को खेती से जुड़े आधुनिक तंत्रज्ञान से अवगत कराना चाहिए, अब तो सरकार भी आधुनिक खेती के लिए काफी मदद करती है।
अगर इन सारी बातो का संज्ञान लिया जाये तो मेरी दृष्टि में कर्ज माफ़ तो बहुत दूर की बात, किसानो को कभी कर्ज लेना ही नहीं पड़ेगा।

























