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मिलिए तुर्की के निर्वाचित तानाशाह एर्डोगन से, इनकी ताक़त पूरे देश से ज्यादा है

Arif Mohammad द्वारा Arif Mohammad
23 April 2017
in अमेरिकाज़, समीक्षा
मिलिए तुर्की के निर्वाचित तानाशाह एर्डोगन से, इनकी ताक़त पूरे देश से ज्यादा है
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आज विश्व में  कुल 195 देश है और अगर ताइवान को भी एक देश माने तो 196 देश है। इन 196 देशो में से एक देश है तुर्की। तुर्की की भौगोलिक स्थिति अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। तुर्की एक ऐसा देश है जो एशिया और यूरोप को जोड़ता है। इसके ऊपर काला सागर है और काला सागर के पार रूस है। अतः यह स्पष्ट है की इस देश की भौगोलिक स्थिति अत्यंत ही महत्वपूर्ण है, और सिर्फ इतना ही नहीं तुर्की की सीमा ईरान इराक और सीरिया से भी लगी हुई है जहाँ वर्तमान में isis का संकट सर उठाए हुए है। तुर्की के ऊपर सस्ते दाम में isis से तेल खरीदने का भी आरोप लग चूका है। वर्तमान में तुर्की के राष्ट्रपति एड्रोगन है लेकिन जब तुर्की की स्थापना हुई तो इसकी स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के तौर पे हुई।

इसके संस्थापक थे मुस्तफा कमाल अतातुर्क। अतातुर्क तुर्की के पहले राष्ट्रपति। अतातुर्क का अर्थ होता है “तुर्को का पिता”। यह उपाधि उन्हें तुर्की की संसद ने 1934 में प्रदान की। अतातुर्क ने धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक राष्ट्र की स्थापना के लिए सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक सुधार किये। उन्होंने तुर्की में प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य बना दिया। हज़ारो विद्यालय खोले गए देश भर में। अतातुर्क के नेतृत्व में तुर्की महिलाओ को पश्चिमी देशो के भी पहले पुरुषो के बराबर राजनैतिक और सामाजिक अधिकार प्रदान किया गया। अतातुर्क ने लोगो को अपनी तुर्की पहचान अपनाने को प्रेरित किया, मस्जिदों से दी जाने वाली अज़ान तुर्की भाषा में दी जाने लगी, अतातुर्क ने पवित्र कुरान को तुर्की भाषा में लिखवाया क्योंकि उनका कहना था की जिस भाषा (अरबी) को समझते नहीं है उस भाषा में धर्मग्रन्थ को पढ़ने से क्या लाभ एवं इसके अलावा ऐसे अनुवाद जो कट्टरपंथ को बढ़ावा देते है उन्हें अतातुर्क ने प्रतिबंधित कर दिया। अतातुर्क ने महिलाओ और पुरुषो की सामाजिक बराबरी के लिए पुरुषो द्वारा पहने जाने वाली टोपी और महिलाओ द्वारा पहने जाने वाले हिज़ाब दोनों को प्रतिबंधित कर दिया। अतः इस तरह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र तुर्की की स्थापना हुई। परन्तु वर्तमान में तुर्की वापस कटरपंथ और साम्प्रदायिकता की तरफ मुड़ता दिख रहा है वर्तमान राष्ट्रपति एर्डोगन के नेतृत्व में।

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एर्डोगन की विचारधारा कट्टर इस्लामिक है। वह राजनैतिक फायदे के लिए इस्लाम का इस्तेमाल करते है जबकि तुर्की के संस्थापक अतातुर्क के सिद्धांतो के हिसाब से राजनैतिक उद्देश्य के लिए धर्म का इस्तेमाल करना,राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के लिए खतरा है।

और शायद इसीलिए अभी हाल ही में तुर्की की सेना ने सैन्य विद्रोह कर दिया था एर्डोगन के खिलाफ क्योंकि एर्डोगन की सरकार धर्मनिरपेक्षता को निर्ममता से कुचल रही थी और तुर्की में वहाँ की सेना हमेशा से ही खुद को धर्मनिरपेक्षता की रक्षक मानते आई है।

ये कोई पहली बार नहीं था जब तुर्की की सेना ने धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए विद्रोह किया हो। इससे पहले चार बार और सेना सफल विद्रोह कर चुकी है। और ये 15 जुलाई 2016  को किया गया सैन्य विद्रोह पांचवा विद्रोह था जो की असफल हो गया और कहा जाता है की ऐसी सभी चीज़े जो आप को मरती नहीं वो आपको और ज्यादा मजबूत बनाती है और ऐसा ही कुछ हुआ एर्डोगन के साथ इस विद्रोह का उदहारण दे के एर्डोगन ने कवायद चालू कर दी है सत्ता को अपने पास केंद्रित करने की और बहाना ये की इस तरह के विद्रोह को भविष्य में रोकना है। 16 अप्रेल के पहले तक तुर्की एक संसदीय प्रणाली से चलने वाला देश था लेकिन अब यह एक ऐसा देश बन जाएगा जहा संसद कमजोर और राष्ट्रपति मजबूत होगा। प्रधानमंत्री का पद समाप्त कर दिया जाएगा। 16 अप्रैल को एक रेफरेंडम करवाया गया और इसमें मामूली अंतर से एर्डोगन को जीत हासिल हुई। उनको 51.6 प्रतिशत मत हासिल हुए। विपक्ष ने धांधली के आरोप भी लगाए लेकिन एर्डोगन ने उसे साफ़ तौर पे नकार दिया। और इस रेफरेंडम के बाद हालात और भी ज्यादा ख़राब होने की आशंका है। निजी स्वतंत्रता और बोलने के अधिकार का वहाँ तेज़ी से दमन कर दिया गया है और एक तरह का अघोषित आपातकाल लगा हुआ है वहाँ। सैन्य विद्रोह के बाद लगभग एक लाख न्यायधीश सैनिक और पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया है एवं इस रेफरेंडम के बाद चिंता की बात यह है की यह एर्डोगन को न्यायधीशों की नियुक्ति की शक्ति भी दे देगा और न्यायधीशों की नियुक्ति का सम्पूर्ण अधिकार सरकार के हाथ में होने का अर्थ है सरकार के निरंकुश होने के खतरे का होना। लोकतंत्र का महत्वपूर्ण भाग है न्यायालय। जब भी कोई सत्तावादी सत्ता को अपने हाथ में पूरी तरह से रखने का प्रयत्न करता है तब वह न्यायालय पे जरूर निशाना साधता है।

अभी हुए ताज़ा बदलावों के बाद यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की एर्डोगन तुर्की के बिना सिंहासन वाले सुल्तान बन गए है। एक नेशनलिस्ट मूवमेंट पार्टी है तुर्की की, उसके नेता है Devlet Bahceli, उन्होंने कहा था की जिस तरह से एर्डोगन सभी शक्तिओ को राष्ट्रपति के पद के अंतर्गत केंद्रित करना चाहते है यह बिना सिंहासन के सुल्तान बनने का प्रयास है। और अब सबसे हास्यपद बात यह की किसी समय इस तरह का कठोर कटाक्ष करने वाले नेता Devlet Bacheli अब खुद ही एर्डोगन द्वारा किये जा रहे संविधान में परिवर्तन का समर्थन कर रहे है।

16 अप्रैल के रेफरेंडम के बाद तुर्की में होने वाले बदलाव इस प्रकार है:-

1.) प्रधानमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया है।

2 .) राष्ट्रपति का पद सबसे ज्यादा शक्तिशाली है।

3.) राष्ट्रपति किसी भी पद में किसी की भी नियुक्ति खुद कर सकता है।

4.) न्यायधीशों की नियुक्ति अब पूरी तरह से राष्ट्रपति के हाथ में है।

5.) संसद की शक्ति अब पहले के मुकाबले बहुत ही कम है।

16 अप्रैल के रेफरेंडम के बाद तुर्की के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव इस प्रकार है:-

1.) एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में स्थापित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा कम होगी।

2.) विदेशी निवेश में भरी गिरावट दर्ज की जा सकती है।

3.) लम्बे समय से तुर्की का प्रयास है की उसे यूरोपियन यूनियन की सदस्यता मिल जाए,अब इस प्रक्रिया में पहले के मुकाबले ज्यादा रुकावट आएगी।

4.) जिस तरह के नतीजे आए है रेफरेंडम के,उससे स्पष्ट है की तुर्की दो हिस्सों में वैचारिक तौर से विभाजित हो चूका है और अब गृह युद्ध का खतरा सर उठा रहा है।

एर्डोगन वर्तमान में तुर्की के राष्ट्रपति है और इससे पहले 11 साल वह तुर्की के प्रधानमंत्री रह चुके है। इनका सम्बन्ध जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी से है जिसे AKP भी कहते है। एर्डोगन ने शुरुवात से ही कट्टरपंथ और आक्रामक साम्प्रदायिकता का चोला नहीं ओढ़ा था लेकिन शुरू से ही उनके सम्बन्ध धार्मिक इस्लामिक गुटों से रहे। शुरुवात में एर्डोगन के नेतृत्व में तुर्की आर्थिक विकास की तरफ जा रहा था लेकिन 2013 में उनपे लगे भ्रष्टचार के आरोपों के बाद उन्होंने कट्टर इस्लामिक रवैया अपना लिया। और साथ ही साथ अपने विरोधियो का दमन भी शुरू कर दिया। इसी भ्रष्टाचार के आरोप के बाद AKP सरकार का हिस्सा रहे फतुल्लाह गुल्लेन ने खुद को सरकार से अलग कर लिया। और वर्तमान में एर्डोगन के सबसे बड़े विरोधी भी फतुल्लाह गुल्लेन ही है। गुल्लेन की एक न्यूज़ एजेंसी भी है जिसका नाम है हिज़मत न्यूज़ और उनका एक अख़बार प्रकाशित होता है जिसका नाम है ज़मान न्यूज़ जो की तुर्की का सबसे पढ़ा जाने वाला अख़बार था उसपे प्रतिबन्ध  लगा दिया गया एर्डोगन सरकार द्वारा 4 मार्च 2016 को क्युकी यह अख़बार सरकार की नीतियों का खुल के आलोचना कर रहा था। अतः तुर्की में बड़े पैमाने पे प्रेस की स्वतंत्रता का हनन किया गया और लगातार किया जा रहा है।

धर्म या मजहब को आधार बना के पार्टिया सत्ता में  तो आ जाती है लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न होता है की सत्ता मिलने के बाद आगे क्या? क्योंकि एक न एक दिन ऐसा आएगा जब प्रजा सवाल पूछेगी की आपने किया क्या? तब जवाब देने के लिए जो भी एजेंडा हो उससे अलग भी कुछ कार्य अवश्य होने चाहिए जो नेता लोगो को बता सके।

एर्डोगन के पिता एक तटरक्षक थे, एर्डोगन का बचपन नीबू पानी बेचते हुए गुजरा। उनका जीवनकाल एवं राजनैतिक सफर कुछ इस प्रकार रहा:-

1970-1980 – इस्लामिक विचारधारा वाले संगठनो के प्रभाव में आए। वेलफेयर पार्टी के सदस्य बने।

1994-1998 -इस्तांबुल के मेयर रहे चार साल तक। 1998 में वेलफेयर पार्टी पप्रतिबंधित कर दी गयी और इन्हे हटा दिया गया क्योंकि 1997 में सफल सैन्य विद्रोह हुआ था और कट्टरपंथी ताकतों को सख्ती के साथ सत्ता से बहार किया जा रहा था और वेलफेयर पार्टी भी वैसी ही एक कट्टरपंथी पार्टी थी।

1999 – उन्हें जेल में डाल दिया गया सामूहिक रूप से एक जिहाद का उद्घोष करने वाली जेहादी कविता सबके सामने पढ़ने के जुर्म में।

अगस्त 2001 – अब्दुल्लाह गुल के साथ मिल के AKP पार्टी की स्थापना की।

2002-2003  – AKP पार्टी को बहुमत मिला और एर्डोगन प्रधानमंत्री चुने गए।

दिसंबर 2013 – बड़े भ्रष्टाचार के मामले का खुलासा हुआ, तीन मंत्रियो के बेटे गिरफ्तार किये गए। एर्डोगन ने भ्रष्टाचार के आरोपों को अपने ही साथी फतुल्लाह गुल्लेन की साज़िश बता के खारिज कर दिया।

अगस्त 2014 – एर्डोगन राष्टपति बन गए, यह पहली बार था जब राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता के द्वारा किया गया था।

15 जुलाई 2016 – सैन्य विद्रोह हुआ, लेकिन विद्रोह असफल कर दिया गया।

16 अप्रैल 2017  – राष्ट्रपति की शक्तिओ को बढ़ाने और संविधान को बदलने वाले रेफरेंडम में एर्डोगन की जीत हुई।

Tags: अतातुर्कएर्डोगनतुर्की
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15 September 2025

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जब ‘डिफेन्स प्रोक्योरमेंट मैनुअल 2025’ को मंजूरी दी, तो यह केवल कागज़ पर हुआ प्रशासनिक बदलाव नहीं था। यह उस...

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