हिंदी भाषा के क्षेत्र में विशिष्ट प्रसिद्धि रखने वाले महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में एमफिल छात्रा ने उसके साथ हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ मामला दर्ज कराया है। कई दिनों तक शिकायत दर्ज कराने के लिए भटकती रही छात्रा को अंततः आन्दोलन का सहारा लेना पड़ा और वह महिला छात्रावास के सामने धरने पर बैठ गयी। उक्त छात्रा का आरोप है कि विगत होली के दिन पीएचडी शोधार्थी “ संजीव कुमार ” द्वारा सार्वजनिक स्थल पर उसका यौन उत्पीड़न किया गया जिसके लिए वो पिछले कई दिनों से प्रशासनिक अधिकारियों एवं महिला प्रकोष्ठ अधिकारियों के सामने न्याय के लिए भटक रही थी। प्रभात खबर समाचार पत्र के अनुसार पीड़िता का यह भी आरोप है कि लगातार उस पर शिकायत वापस लेने का दवाब बनाया जा रहा है और उसे संजीव कुमार द्वारा धमकाया भी जा रहा है।
हालाँकि 20 अप्रैल को विश्वविद्यालय के कुलसचिव कादर नवाज द्वारा जारी किये गए आदेश में पीएचडी शोधार्थी संजीव कुमार अगले आदेश तक के लिए निष्कासित कर दिया गया है एवं निष्कासन अवधि में शोधार्थी का विश्वविद्यालय परिसर में पूर्वानुमति प्रवेश भी निषेध किया गया है।
कौन है संजीव कुमार?
हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग से पीएचडी का छात्र संजीव कुमार, ग्राम रघुनाथ पुरबेला, पो० चकहाजी, समस्तीपुर, बिहार का निवासी है। अक्सर वामपंथी विचारधारा के प्रति समर्थन और झुकाव में अपने साहित्य को गतिप्रदान करते रहने वाला यह छात्र इस यौन उत्पीड़न का आरोपी है।
विगत वर्ष में जेएनयू में वामपंथ विचारधारा से जुड़े सभी आरोपियों द्वारा किये गए यौन उत्पीड़न के बाद, किसी वामपंथी समर्थक एवं चिंतक द्वारा किया गया यह एक और बड़ा मामला है। परन्तु जिस प्रकार देश की मीडिया संजीव कुमार जैसे संवेदनशील विषयों पर अपनी उदासीनता दिखा रही है, अत्यंत ही सोचनीय है।
अक्सर वामपंथियों द्वारा विश्वविद्यालय के मंचों में महिला सशक्तिकरण पर दिए गए लम्बे चौड़े भाषण आपको देखने, सुनने और पढ़ने को उपलब्ध रहेंगे परन्तु देश के विभिन्न शिक्षा केन्द्रों में संजीव कुमार जैसे वामपंथियों द्वारा किये जा रहे यौन उत्पीड़न और शोषण पर सभी प्रबुद्धजन चुप्पी साध जाते हैं।
यह चुप्पी सोचने पर मजबूर करती है कि शिक्षा के मंदिरों में बेटियों के चीर हरण की कोशिशे को रोकने के लिए हम देवता बनकर नहीं आने वाले, हम राक्षस है, उस प्रकार के राक्षस जिसमे हम शोषण करने वाले का राजनैतिक झुकाव एवं किसी संगठन विशेष के प्रति उदारता, के अनुरूप विचार करते है कि संजीव कुमार जैसे आरोपी के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्यवाही होनी चाहिए अन्यथा नहीं।
पूरा देश किसी एक मामले की वजह से असहिष्णु हो सकता है, किसी एक मामले की वजह से सांप्रदायिक हो सकता है, किसी एक मामले की वजह से शोषण करने वाला और दलित विरोधी हो सकता है, किसी एक सरकार विशेष की वजह से हिंदुत्ववादी हो सकता है परन्तु किसी एक भी मामले में, कोई एक भी वामपंथी शामिल पाया गया फिर देखिये अथाह ज्ञान का अँधा सागर जो कि शांत लहरों से किनारों से तो टकरा रहा है परन्तु टकराने की ध्वनि के कंपन को आप महसूस नहीं कर पाएंगे|
फिलहाल विश्वविद्यालय ने संजीव कुमार के निष्कासन के साथ यौन उत्पीड़न के न्यायिक जाँच के आदेश दिए हैं परन्तु ऐसे आरोपियों की वजह से विश्वविद्यालयों की साख और सम्मान पर काला धब्बा तो जरुर लगता है।