आज तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी थी | सुनवाई शुरू करते हुए प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने कहा कि तीन तलाक अगर धर्म का हिस्सा है तो अदालत दखल नहीं देगी | इस मुद्दे पर खुर्शीद ने कहा कि तीन तलाक कोई मुद्दा नहीं है, क्योंकि तलाक से पहले पति और पत्नी के बीच सुलह की कोशिश जरूरी है | अगर सुलह की कोशिश नहीं हुई तो तलाक वैध नहीं माना जा सकता | सुनवाई में कपिल सिब्बल तीन तलाक के पक्ष में न्यायलय के समक्ष अपना पक्ष रहे थे और उनके साथ कांग्रेस नेता और वकील सलमान खुर्शीद भी शामिल थे |
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने कहा, ‘पहले हम ये समीक्षा करेंगे कि तीन तलाक धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं? इन दोनों मुद्दों को महिला के मौलिक अधिकारों से जोड़ा जा सकता है या नहीं? क्या कोर्ट इसे मौलिक अधिकार करार देकर कोई आदेश लागू करा सकता है या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ‘अगर कोर्ट को लगता है कि तीन तलाक धर्म का हिस्सा है तो वे इसमें दखल नहीं देंगे |
ये बेंच है सेक्युलर:
दिलचस्प बात ये है कि इस बेंच को सेक्युलर दिखाने के लिए बेंच में अलग-अलग धर्मों से जुड़े पांच जजों को रखा गया है माने सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम जज इस पीठ का हिस्सा हैं | जिसमें चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आर. एफ. नरिमन, जस्टिस यू. यू. ललित और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं | राजनितिक पार्टियाँ तो इसपर अपनी रोटियां सेंक ही रही है लेकिन सुप्रीम कोर्ट भी इसे धर्म के चश्मे से देखने लगा है | क्या फर्क पड़ता था अगर किसी भी धर्म के 5 जज महिलाओ के सम्मान को ध्यान में रखकर फैसला सुना देते |
इलाहाबाद HC तीन तलाक को असंवैधानिक बता चुका है:
तीन तलाक का मुद्दा मुस्लिम महिलाओं के आत्मसम्मान से जुडा तो है ही लेकिन ये अब इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक बताया था और इसे एकतरफा और कानून की दृष्टि से खराब करार दिया था | उत्तराखंड की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाईं थी और तीन तलाक कहने और निकाह-हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी |
सरकार का पक्ष है एकदम साफ़:
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार अपना पक्ष रख चुकी है | केंद्र की ओर से एएसजी पिंकी आनंद ने कहा, सरकार याचिकाकर्ता के समर्थन में है कि ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है | बहुत सारे देश इसे खत्म कर चुके हैं | सरकार तीन तलाक को मानव अधिकारों के विरुद्ध मानती है | हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम धार्मिक नेताओं से मुलाकात में अपील की थी कि तीन तलाक के मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा न बनने दें और इसमें सुधार में अग्रणी भूमिका निभाएं |
AIMPLB ने बताया अंदरूनी मामला :
हर डिबेट की तरह आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के मौलवी जैसे हर टीवी डिबेट में इसे धार्मिक मामला घोषित करते फिरते है वैसे ही यहाँ भी AIMPLB ने साफ़ सुप्रीम कोर्ट को कह दिया ये उनका धार्मिक मामला है सरकार और कोर्ट इसमे हस्तक्षेप न करें | वैसे भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तो उनके लिए है जो इसे मानते है लेकिन देश में एक तबका ऐसा है जो अपने कानून खुद बनाता है और सुप्रीम कोर्ट या कानूनों को ताक पर रख देता है | बड़ा ही अजीब कानून है इस देश का जो सब के लिए बराबर होने की दुहाई तो देता है लेकिन मुस्लिम महिलाओं को अपना आत्मसमान दिला पाने में भी सक्षम नहीं है | माने पुरुष तीन तलाक दे सकते है बिना कोर्ट और जरुरी करवाई के लेकिन महिला नहीं दे सकती क्योंकि वो कमजोर होती है…वाह क्या गजब का तर्क है !
इस देश में जब-जब मुस्लिम समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए या समाज में व्याप्त बुराइयों को मिटाने के लिए आवाजें उठती है तो इस देश की सरकारें और मीडिया ही नहीं इस देश के अदालतों के मुंह पर भी ताले लग जाते है | जैसा की फिर एक बार हुआ माननीय सुप्रीम कोर्ट खुद पूछती है पर्सनल लॉ बोर्ड से की पहले ये तय करेगे की ये धर्म से जुड़ा मसला है या नहीं, अगर है तो फिर अदालत इसमे हस्तक्षेप नहीं करेगी मतलब महिलाएं अब भी 17 वीं सदी में जी रही है तो जियें लेकिन हम हस्तक्षेप नहीं करेगे | तो फिर बराबरी की दुहाई देनेवाली कोर्ट सिर्फ पुरुषों के लिए ही है क्या? महिलाओ का क्या? वें कहाँ जाएगी न्याय के लिए?
इस देश के न्यायलय को ये बताने का अधिकार है कि दहिहांदी की उंचाई कितने फीट होनी चाहिए, ये बताने का अधिकार है की जलिकट्टू खेला जाना चाहिए या नहीं ये भी बताने का अधिकार है की शनि शिन्ग्नापुर मंदिर में महिलाओ को प्रवेश देना चाहिए या नहीं क्योंकि ये सब तो धर्म से जुड़े मसले नही है ये तो समाज को सुधारने के लिए है लेकिन ट्रिपल तलाक में महिलाएं घुट-घुट के आत्मसम्मान के लिए लडती रहें, समाज में बराबरी मांगें तो ये समाज का नहीं धर्म का मामला हो जाता है | हाजी अली में महिलाओ का प्रवेश धर्म से जुड़ा मामला है उसमे न्यायलय का क्या काम? यही तो है मेरे देश की न्यायव्यवस्था !
एक मजेदार तर्क जो हमेशा मौलवी और मुस्लिम धर्मगुरुओं की तरफ से दिया जाता है वो है की ट्रिपल तलाक, हलाला उनका धार्मिक मसला है, शरिया कानून के तहत है इसलिए ये बाध्य है महिलाओ के लिए मतलब जहाँ बात तलाक, हलाला और बहु विवाह की आयेगी तो संविधान को ताक पर रख हम शरिया की सुनेगे लेकिन जब इसी समुदाय से कोई चोरी करता है या बलात्कार करेगा तब हम शरिया की नहीं सुनेंगे क्योंकि वहां तो सीधे हाथ काट दिए जाते है तब हम भारतीय संविधान की सुनेगे | माने कस्टमाइज्ड कर सकते है अपने हिसाब से | खैर …
वैसे यह मसला धर्म से जुड़ा हो या न हो लेकिन इसे धर्म से अलग करके देखा जाना चाहिए क्योंकि ये पूरी तरह महिला के मौलिक अधिकारों से जुड़ा है, उनके आत्मसम्मान से जुड़ा है, उनकी समाज में आजादी और उनके गर्व से जुड़ा है | ये सब ध्यान में रखकर ही सुप्रीम कोर्ट को फैसला देना चाहिए न की ये देखकर की फैसले से किस धर्म को फर्क पड़ता है | अगर समाज और देश को बदलना है तो उसमे व्याप्त बुराइयों को मिटाना ही होगा चाहे वो किसी भी धर्म से जुड़ा मसला हो |