मित्रों, योगी शासन के स्वर्णिम युग में आप सभी का सादर स्वागत है। जिस तरह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन योगी आदित्यनाथ कार्य पूर्ण करने में लगे हैं, हमें तो ये लग रहा है की इन्हे प्रदेश की गंदगी साफ करने के लिए 5 नहीं, सिर्फ 2 या 3 साल ही चाहिए। चाहे वो अप्रत्याशित छापे हों, या सरकारी परिसर में प्लास्टिक, गुटखा और पान मसाला पर सख्त पाबंदी, या फिर महिलाओं से छेड़खानी के विरुद्ध एंटि रोमियो दल का गठन, या फिर कैराना से निष्काषित हिंदुओं की घर वापसी, योगी आदित्यनाथ तो इस गति से काम कर रहे हैं, मानो कल इनके लिए है ही नहीं। जितना 15 साल में मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश को न सुधार पाये, उतना महज एक महीने से ऊपर में ही योगी आदित्यनाथ ने न सिर्फ सुधारा, अपितु उसे और आगे बढ़ा भी रहे हैं!
इसी शुभ कड़ी में योगी आदित्यनाथ ने एक नया कीर्तिमान रचा है, शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव का।
अंबेडकर जयंती के अवसर पर उन्होने सिकुड़ते शैक्षणिक सत्रह पर गहरी चिंता जताई और उसे सुधारने का वचन भी दिया। किसे पता था की इस वचन को इतनी जल्दी पूरा किया जाएगा।
अभी थोड़े ही दिन पहले, मंगलवार को एक कैबिनेट मीटिंग के पश्चात ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कैबिनेट के परिणाम को प्रैस के समक्ष रखा, जिसमें उत्तर प्रदेश के समस्त शिक्षा के मंदिरों में सिकुड़ते शैक्षणिक सत्र को ध्यान में रखते हुये निम्नलिखित 15 सरकारी छुट्टियों को रद्द करने का बीड़ा उठाया है:-
- कर्पूरी ठाकुर का जन्मदिवस
- चेती चंद महोत्सव
- महर्षि कश्यप और महाराज गुहा जन्मदिवस
- हज़रत ख्वाजा मोइनूद्दीन चिश्ती अजमेरी गरीब नवाज़ उर्स
- चन्द्रशेखर जयंती
- परशुराम जयंती
- महाराणा प्रताप जयंती
- जमात उल विदा
- विश्वकर्मा पूजा
- महाराजा अग्रसेन जयंती
- महर्षि वाल्मीकि जयंती
- छठ पूजा
- सरदार वल्लभभाई पटेल जयंती और आचार्य नरेंद्र देव जयंती
- ईद ए मिलाद उल नबी
- चौधरी चरण सिंह जयंती
ये सारी छुट्टियाँ पूर्व सरकारों ने तय की थी, जिसमें समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मुख्य रूप से शामिल थी। इन छुट्टियों से सिर्फ अपने सहूलियत के हिसाब से नेताओं को श्रद्धांजलि देना भर मकसद था। अब्दुल कलाम जैसे ओजस्वी राष्ट्रपति की दूरगामी सोच [मेरी मृत्यु पर छुट्टी रखने के बजाए उस दिन और अधिक काम करें] इनके जैसे छोटी सोच रखने वाले नेताओं को क्या आती? और तो और, धर्मनिरपेक्षता की डुगडुगी बजाने वाले इन छद्म उदारवादी नेताओं ने छुट्टियों को मज़ाक की प्रतिमूर्ति बना दिया। विद्यार्थी का भविष्य खराब हो तो हो, पर इनके प्रिय वोट बैंक की सेवा सुश्रुषा अवश्यंभावी है।
योगी आदित्यनाथ के इस कडक फैसले ने अगर छद्म उदारवादियों को झकझोरा हो या नहीं, कम से कम उनकी मीठी नींद ज़रूर उड़ा दी है। वैसे भी, ईद ए मिलाद उल नबी और जमात उल विदा के अलावा माननीय कांशी राम के जयंती को रद्द करके योगी आदित्यनाथ ने आग से खेलने से कम जोखिम का काम नहीं किया है। पर वो क्या है न, जब आप राजधर्म निभाते हो, तब आप प्रजा को एक ही लाठी से हांक सकते हो, किसी धर्म या पंथ विशेष को विशेष तवज्जो देने से आप धर्मनिरपेक्ष ज़रूर बन जाऊगे, पर एक कुशल शासक कदापि नहीं, औ यह बात योगी आदित्यनाथ से बेहतर कोई नहीं जानता ।
यह तो कुछ भी नहीं, योगी आदित्यनाथ ने छद्म उदारवादियों और अफजल प्रेमी भारतीय मीडिया के अगुआ पत्रकारों के जले पर नमक छिड़कते हुये यह भी कहा है :-
‘जिस योग्य महापुरुष का जन्मदिवस पड़े, उस दिन छुट्टी देने के बजाए उन महापुरुषों के बारे में विद्यालय और महाविद्यालय दोनों में बताया जाये, और उन पर आधारित प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाये……’
इस वक़्त मैं भी जानता हूँ की भारत के छद्म उदरवादी और तथाकथित बुद्धिजीवी इस ‘तानाशाही’ फैसले पर पछाड़े मार मार कर ज़मीन पर लोट रहे हैं, पर इस विषय में योगी जी की धुलाई नहीं कर सकते, क्योंकि योगी जी मोदी तो है नहीं, और उनका गोरखपुर का बुलावा तो मानो इन उदारवादी ब्रिगेड के लिए काल समान है।
बाकी जाते जाते ये भी बता दें की एमसीडी चुनाव के हार के सदमे से उबरने के लिए दिल्ली सरकार ने योगी जी के क्रांतिकारी कदम का अनुसरण करने का फैसला किया है!