अभी सिर्फ पिछले हफ्ते ही दिल्ली ने अफ़ग़ानिस्तान से विकसित हो रहे दिल्ली काबुल एयर कॉरिडॉर के रास्ते माल का पहला बेड़ा आते देखा। दूरी भले ही हजारों मीलों की हो, पर इन दो देशों के दिलों में बढ़ती नज़दीकियों को तो पूरी दुनिया देख रही है। हालांकि इस रिश्ते को मजबूत होने में बड़ी लंबी दूरी तय करनी है, पर भारत अफ़ग़ानिस्तान की नयी दोस्ती की शुरुआत तो हुयी है। एक नज़र ज़रा डालते हैं अपने इतिहास पे, जो अपने आप में एक अजूबा है।
कभी आर्यावर्त एवं चाणक्य के समय के अखंड भारत का अभिन्न हिस्सा रहा अफ़ग़ानिस्तान का भारत के साथ बड़ा ही पुराना नाता है। लगभग दो हज़ार वर्षों तक मित्रता की मजबूत मिसाल रही भारत अफ़ग़ानिस्तान की जोड़ी को पिछले कुछ दशकों में मानो किसी की नज़र लग गयी। इसके बावजूद 1980 में अफ़ग़ानिस्तान को भारत ने ही राजनैतिक सहयोग दिया, और दक्षिण एशिया में अफ़ग़ानिस्तान के लोकतान्त्रिक गणराज्य को सहमति देने वाला एकमात्र देश बना।
भारत और पाकिस्तान की आज़ादी के बाद इन तीनों देशों के बीच के रिश्ते बड़ी तेज़ी से बदलते रहे हैं, जो कभी टूटते, फिर जुडते और फिर टूट जाते। अफ़ग़ानिस्तान पर सोवियट कब्जे ने इस मुल्क में तालिबान जैसे खूंखार और अमानवी आतंकी संगठन का उत्थान देखा, जिसका साया आज भी अफघानियों को रह रह कर डराता है। काबुल-इस्लामाबाद-दिल्ली के त्रिकोण को मशहूर इतिहासकर विलियम डार्लिंपल ने घातक त्रिकोण की संज्ञा भी दी है, और जिसमें से इस्लामाबाद अपनी अहमियत खोता जा रहा है।
अगर हम सदी दर सदी जाकर भारत और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्तों के इतिहास को ढूँढे, तो ईसा पूर्व, हम एक ही सभ्यता के वासी थे। शायद इसमें कोई अतिशयोक्ति की महाभारत के समय का गांधार आज का कंधार हो सकता है, और भारतीय यवन संस्कृतियों के संगम की भूमि अफ़ग़ानिस्तान हुआ करती थी। आने वाले सदियों में दोनों सभ्यताओं के शासन ने अफ़ग़ानिस्तान की शक्ल काफी हद तक बदल दी।
7वीं सदी में इस्लाम के आक्रमण के बाद ही हिन्दू और बौद्ध शासन का पतन शुरू हुआ। बाहरी, खासकर अरब, इस क्षेत्र को ‘अल हिन्द’ के नाम से बुलाते थे, जो बाद में चलकर भारत का मध्यकालीन नाम ‘हिंदुस्तान’ बना। 11वीं सदी में गज़नवी के महमूद ने इस क्षेत्र का सम्पूर्ण इस्लामिकरण करने में अहम भूमिका निभाई, और साथ ही साथ स्थानीय इस्लामिक शासकों और भारत के हिन्दू और बौद्ध शासकों के बीच दूरियाँ और तल्ख कर दी।
फिर अफ़ग़ानिस्तान और अरब देशों में काफी गहरी दोस्ती बनी, जो सोविएत आक्रमण तक खूब चली। अगर 20वीं और 21वीं सदी तक छलांग लगाई जाये, तो अफ़ग़ानिस्तान और अफघानियों के लिए आज भी भारत एक विश्वसनीय मित्र है, और अफ़ग़ानिस्तान हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक सहयोगी।
सोविएत कब्जे और अमेरिका के तख्तापलट के बंदारबाट के बीच अफ़ग़ानिस्तान को शैतान का अक्स दिखा तालिबान नाम के संगठन में। प्रकृतिक संसाधनों एवं उद्यमी जनता से परिपूर्ण अफ़ग़ानिस्तान पर सालों तक उत्पीड़न और हिंसा का भयानक दौर चलता रहा। अब क्योंकि चीन के पाकिस्तान में दिलचस्पी और अमेरिका के शांति बहाल करने की जुगत से तालिबान लगभग हाशिये पर आ चुका है, अफघानी अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिलती दिख रही है। इसके साथ सबसे बड़ी दुविधा इसका चारों तरफ से ज़मीन से घिरा होना है। भारत और पूर्वी एशियाई देशों में जाने वाले निर्यात पहले पाकिस्तान से निकालने वाली सड़कों के रास्ते होता था, और अब भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच की बढ़ती नज़दीकियों ने इस रास्ते को ही बंद करवाने पर मजबूर कर दिया।
इसीलिए 2016 में हुयी एक मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी जी और अफ़्घानी राष्ट्रपति अशरफ ग़नी ने मिलकर इस समर्पित एयर कॉरिडॉर की परिकल्पना कर इससे योजनाबद्ध तरीके से अमल में लाया गया।
इसे अमल में पिछले ही हफ्ते लाया गया, जब लगभग 60 टन हींग का काबुल से निर्यात कराया गया, जिसके उपलक्ष्य में पीएम मोदी ने शुभकामना संदेश भी ट्वीट किया। इसी प्लेन ने भारत से वापसी की दवाई, वॉटर पूरिफायर्स सहित। इस कॉरिडॉर से कई फायदे होंगे। भारतीय अर्थव्यवस्था में अस्थायी वस्तुओं की खरीद और सेवन को एक नई उड़ान मिलेगी। स्थानीय व्यापार को इस नए कॉरिडॉर से एक नई दिशा मिलेगी, जिसमें अफ़्घानी उत्पादन से भरपूर एक तैयार बाज़ार मुहैया कराया जाएगा।
लाख हो, सूखे फलियाँ हो, केसर और अदरक, और सेब ही क्यों न हो, इन्हे अफ़ग़ानिस्तान से भारत की ओर आयात किया जाता है, जो उसका दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य है। पहले ज़मीन से घिरी रहने वाली अफ़ग़ानिस्तान के लिए ये एयर कॉरिडॉर न सिर्फ एक ताज़ी हवा का झोंका है, बल्कि भारतीय मदद, जो विशेष साझेदारी अनुबंध के तहत 2011 से दी जा रही है, उसे और मजबूत करता है। इस नए रिश्ते से, जो दिन ब दिन नए आयाम स्थापित कर रही है, एक सधा कदम है पाकिस्तान की अफ़ग़ानिस्तान के अर्थव्यवस्था को उलझाने की मंशा को नाकाम करने में। अब इस लिहाज से पाकिस्तान की पुंगी बजना तो तय है।
लाख हो, या सूखी फलियाँ, केसर हो या अदरक, यहाँ तक की सेब भी अफ़ग़ानिस्तान से भारत की ओर आयातित वस्तुओं में गिना जाता है, जो अफ़ग़ानिस्तान के लिए दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य है। ज़मीन से घिरे रहकर कभी पाकिस्तान पर निर्भर रहने वाली अफ़ग़ानिस्तान के लिए ये एयर कॉरिडॉर न सिर्फ ताज़ी हवा का एक झोंका है, बल्कि विशेष साझेदारी अनुबंध, जिसके तहत भारत 2011 से सहायता करता आ रहा है, को भी एक नई ताकत दे रहा है। इन दोनों देशों में बढ़ती नज़दीकियाँ पाकिस्तान के अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था को जकड़ने के मंसूबों पर भी पानी फेर रहा हैं।
जैसा जगजाहिर है, कोई भी कदम जो पाकिस्तान को भारत अफ़ग़ानिस्तान संबंध से बाहर रखता है, उसके अफ़ग़ानिस्तान की नीतियों पर पकड़ रखने के इरादों को नेस्तनाबूद करने में सफल रहता है। 2014 के चुनावों से मिली स्थिरता एवं यूएन और अन्य महत्वपूर्ण देशों की सहायता [जिसमें भारत प्रमुख रूप से शामिल है] से प्रेरित होकर अफ़ग़ानिस्तान ने न सिर्फ पाकिस्तान के संरक्षक रवैये को ठेंगा दिखाया, बल्कि अमृतसर में दिसम्बर 2016 में एक मुलाकात के दौरान पाकिस्तानी हुक्मरानों की खिल्ली भी उड़ाई।
साथ ही साथ, इनहोने पाकिस्तान की 50 करोड़ डॉलर्स की मदद की पेशकश भी ठुकरा दी। इसपे भी जले पर नमक छिड़कते हुये अशरफ ग़नी साहिब ने पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के जरिये हुड़दंग न मचाने की जहां सलाह दी, वहीं उनसे तालिबानियों पर कड़ी कारवाई या उन्हे वार्ता की मेज़ तक लाने का आदेश भी दिया।
द डिप्लोमैट के अनुसार, इस सख्त रवैये से पाकिस्तानी हुक्मरानों में खलबली मची हुई है। बेइज्जती से बचने के लिए विदेशी सलाहकार सरताज अज़ीज़ को इस साहसिक प्रतिक्रिया को ‘भारत की खुशामद करने की चाल’ की संज्ञा देनी पड़ी।
दिल्ली और काबुल ने बेशक अपने सम्बन्धों में कई उतार चढ़ाव देखे हैं, और कभी इस्लामाबाद को खुश करने के पीछे काबुल ने दिल्ली को दरकिनार भी किया था। खूंखार एवं वांछित आतंकवादियों को इस्लामाबाद को सौंपना, भारत को गणमान्य व्यक्ति भेजना बंद करना इनमें प्रमुख थे। पर जब इस्लामी जहर में डूबे पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ समय समय पर विश्वासघात किया, और भारत ने भी धीरे धीरे अफ़्घानियों की अनदेखी करनी शुरू की, तब जाकर इन्हे भारत के दोस्ती की अहमियत समझ आई, की असल में हर वक़्त साथ देने वाला भारत ही हो सकता है, पाकिस्तान नहीं।
हाल ही में कई ताबड़तोड़ फैसलों ने ये साबित किया की इस्लामाबाद को ठेंगा दिखाकर अफ़ग़ानिस्तान अब दिल्ली की ओर कदम बढ़ा रहा है। सबसे पहले राष्ट्रपति गनी साहिब ने पाकिस्तान ‘को एक अघोषित युद्ध’ रोकने की दरकार की। 2015 के मार्च महीने में राष्ट्रपति गनी से पहले एक अफगानी कंपनी के सीईओ का आगमन हुआ, जिसके बाद जो विशेष साझेदारी अनुबंध ठंडा पड़ गया था, उसे फिर से नया रूप देने का सिलसिला चल पड़ा।
इसके बाद चाहे सुरक्षा के मसले से ही सही, पर पहले अफघान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, और उसके बाद उप विदेश मंत्री के दौरे ने बातचीत का नया दौर शुरू किया। भारत अफघान सम्बन्धों ने एक नयी उड़ान भरी है, और अब दिल्ली – काबुल एयर फ्रेट कॉरिडॉर इसी दिशा में एक स्वागत योग्य कदम है, जिससे न सिर्फ इस क्षेत्र में पाकिस्तान को अलग थलग किया जाएगा, बल्कि उसकी गुंडई को अफ़ग़ानिस्तान से दूर भी कराया जाएगा।