जब श्री मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तब हमें कोई संदेह नहीं था की यह कठपुतली का नाटक चल रहा है, जिसे कभी कहीं दुनिया में नहीं देखा गया था। आतंकवादियों से संधि करने में इस पार्टी का सच में भारत में कोई सानी नहीं है, चाहे वो सम्झौता एक्सप्रेस पर हमले हों, या फिर बाटला हाउस की मुठभेड़, इनहोने तो मुंबई के आतंकी हमलों का दोष तक आरएसएस पर मढ़ा है, क्योंकि आतंकियों ने कलावे जो पहने थे।
इनके नेताओं ने अपनी पेशेवर क्षमता में अजमल कसाब एवं याक़ूब मेमन की फांसी रुकवाने में सूप्रीम कोर्ट का मध्य रात्रि तक में दरवाजा खटखटाया है। इनके एजेंडा को ‘माननीय’ पत्रकारों की रजामंदी प्राप्त थी, और इनके चाटुकार मीडिया हाउस विलासिता की गोद में आराम फरमाते थे।
अब प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत एक सुप्त आदिमानव से एक तेज़ी से उभरते आर्थिक महाशक्ति के तौर पर उभर रहा है। ये अब और ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि पाश्चात्य अर्थव्यवस्थाएँ धीरे धीरे अपने पतन की ओर गिरने की तरफ बढ़ रही है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में कई क्रांतिकारी कदम उठाए गए हैं, जिन्हे काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। इनके फैसलों पर फब्तियाँ कसी जाती, कहते की विमुद्रीकरण से अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी, प्रलय आ जाएगी, पर इनकी एक न चली। अब तो क्रांतिकारी जीएसटी के कार्यान्वयन से काँग्रेस और बाकी क्षेत्रीय पार्टियों के पसीने छूट रहे हैं। इनके अनुसार तो लोगों को ऊंचे मूल्य के बैंक नोट हटाने के विरोध में विद्रोह करेंगे, और शायद इनके नेताओं पर ही इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ा था और कर्मचारी श्रेणी के लोगों को टीवी पर प्रसारित चर्चों में इनकी नौटंकी झेलनी पड़ती थी। अब ये न सिर्फ अफवाहें फैला रहे हैं, बल्कि अब तो अमिताभ बच्चन को जीएसटी का प्रचार करने के खिलाफ धमका भी रहे हैं।
काँग्रेस जहां इस बात पे आदि है की अवैध धंधों को मोदी के इस फैसले से कोई नुकसान नहीं पहुंचा है, तो भाई एक बार के लिए सभी सोचेंगे न की इन्हे कैसे पता? सच बताने में इतना शर्माते क्यूँ है यह?
अभी हाल ही में द एकोनोमिस्ट में एक लेख छपा, जिसका शीर्षक था ‘नरेंद्र मोदी एक कुशल प्रशासक ज़रूर है, पर एक उत्कृष्ट सुधारक कतई नहीं’। इसमें जब बोला गया की
विमुद्रीकरण ने वैध उद्योगों को भारी नुकसान पहुंचाया है, तो हम भी सोचते हैं की इसे विस्तार में क्यूँ न बताया जाये। पर अगर ऐसा हुआ, तो इनकी ढोंग की दुकान नहीं बंद हो जाएगी?
यह रिपोर्ट बड़ी जल्दी इस निष्कर्ष पे पहुँच गया की तेल की कीमतों में गिरावट ने 0.02% की वृद्धि कराई है भारतीय जीडीपी में, पर इसमें पिछले दो साल के सूखे, वैश्विक मंडी, ब्रेक्ज़िट, मिडिल ईस्ट में व्याप्त तनाव पर कोई निगाह तक न डाली। बड़े बेशर्मी से इनहोने मोदिनीति की बड़ी दर्दनाक तस्वीर उकेरी, पर निवेशकों का बढ़ता विश्वास ज़रा भी दिखाने की कोशिश नहीं की। 2016-17 में एफ़डीआई 60 अरब डॉलर्स के उच्चतम स्तर पे पहुँच गया था, जो भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्वास का प्रतीक है।
क्या इस रिपोर्ट में ‘कैसे नितिन गडकरी आधारभूत सुविधाओं में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं, इसके बारे में बात की गयी है? नहीं।
क्या इस रिपोर्ट में पीयूष गोयल के ताबड़तोड़ गांवों में विद्युतीकरण के प्रक्रिया को दर्शाया गया है? क्या यह दिखाया गया है की कैसे वो अपने तय समय से कोसों दूर आगे बढ़ रहा है? नहीं
रेल्वे में क्रांतिकारी बदलाव की बात हुई? बिलकुल नहीं।
तो ये एक आलोचनात्मक और विश्लेषक लेख कैसे भाई?
जीएसटी की 6 दरों वाली संरचना की आलोचना ज़रूर तबीयत से की है, पर इसमें भी ये बताना भूल गए हैं की कैसे सबसे अड़ंगेबाज विपक्ष से लड़ते हुये मोदी और जेटली की जोड़ी ने इस बिल को संसद से पारित करवाया है। भाई, ये क्यूँ नहीं कोई देखता, की जिस देश में नेहरू प्रेरित समाजवाद उठते बैठते खाया और सोया जाता हो, वहाँ ऐसा क्रांतिकारी कदम उठाना अपने आप में एक उपलब्धि है।
चलिये, आपकी सुविधा के लिए वर्तमान कर प्रणाली और जीएसटी को आमने सामने करते हैं, और देखते हैं किस्में ज़्यादा दम है। इसमें दिमाग लगाने के की कोई आवश्यकता नहीं है, पर इस रिपोर्ट ने भारत की जीएसटी की तुलना ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया और सिंगापुर की सरल जीएसटी से की है, जो अपने आप में हास्यास्पद है। भाई, इन 3 देशों की मिलके जितनी आबादी नहीं होगी उससे ज़्यादा समृद्ध और विविधता से भरा हुआ है अपना भारत। यह तो सेब और अनानास के बीच तुलना समान है, पर जैसे सर्वविदित है, की प्रोपगैंडा की दुकानें लॉजिक जैसी छोटी चीज़ के लिए अपना सामान बेचना क्यों बंद करें भाई?
भारत के पास युवा कर्मचारियों की सबसे लंबी और तगड़ी फौज है, जो सालों से अति समाजवाद, लाल फीताशाही और बाबूगिरी में फंसी हुई थी, पर जिसमें प्रधानमंत्री मोदी अब व्यापक सुधार लाने में लगे हुये हैं। एक सकारात्मक बयार चल रही है और एफ़डीआई नित नए आयाम छू रहा है।
पर कुछ लोग कभी सुधरने का नाम न लेंगे, जैसे अपनी काँग्रेस पार्टी, जो हर नीति में अपना क्रेडिट लेने के लिए पहले कूद पड़ेगी। इनके इसी घमंड की बानगी है की भारत की सबसे वृद्ध और विशाल पार्टियों में से एक आज लोकसभा में महज 44 सीटों पर सिमटी हुई है। ठीक है, चलो माना, की विचार काँग्रेस के थे, पर उन्हे अमल में लाने के लिए कौन रोक रहा था। ऐसे तो सुब्रमणियम स्वामी ने भारत के वैश्वीकरण और निजीकरण की नीतियों की नींव रखी थी, पर अमल में लाकर उसका क्रेडिट तो काँग्रेस और उनके तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने उड़ाया न। इसी तरह अमल में विचारों को लाने की कमी ही पीएम मोदी को विश्व के महान नेताओं में शुमार करती है, क्योंकि वो काम करवाना और उसके उचित परिणाम निकलवाना बखूबी जानते है।
रक्षा क्षेत्र में सुधार आए है, एलओसी पे हमले का उचित जवाब मिल रहा है, भारत हो या भारत के बाहर, हर जगह इनके नागरिकों का उचित ख्याल रखा जा रहा है। नए निवेश आ रहे है, कौशल विकास योजनाएँ चल रही है, इत्यादि। ऐसे सुप्त इलाकों में इनके करिश्मे काँग्रेस को ऐसा झकझोर के रखा है की अब उनको ख्याल आ रहा है, ‘ओए, यह तो पहले हमने सोचा था।‘ यह वही चिलगोजे के छिलके हैं जो राजीव गांधी के कथित रूप से एटीएम, मोबाइल और कम्प्युटर लाने पर तारीफ करते नहीं थकते। पर इससे बुरी क्या बात हो सकती है की आधुनिक तकनीक को लाकर उसे देश की प्रगति में न लगा पाना, इतना की वर्षों बाद भी काँग्रेस की कृपा से कई घरों और गांवों में न ढंग की बिजली है, और न उचित शौचालय की व्यवस्था। इसकी कल्पना मात्र ही इन लोगों को गांधी परिवार की जकड़न से मुक्त करने के लिए बाध्य करना चाहिए। काँग्रेस के पास बड़े ही सुलझे और कुशल युवा नेता भी हैं, पर वो सब काँग्रेस के वही पुराने सिस्टम में जकड़े हुये हैं।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सुधार काफी मेहनत और सोच विचार के बाद लाये गए हैं। नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज और सुरेश प्रभु जैसे नेता व्यापक सुधार करने में सफल रहे हैं, जिससे भारत के लाखों लोगों के जीवन में काफी बदलाव आया है।
पर जब देश प्रगति के पथ पर बिना काँग्रेस के आशीर्वाद के बढ़े, तो उन्हे यह कैसे हजम होगा। रचनात्मक आलोचना करने के बजाए बेइज्जती पर आमादा काँग्रेस उन सास बहू सीरियल्स की औरतों की तरह हैं, जो वक़्त वक़्त पर न सिर्फ चुगली करेंगी, बल्कि चाहे खुद का राजपाट खत्म हो जाये, पर षड्यंत्र करना न छोड़ेंगी। इस विचार से यह लोग बिलकुल अंजान है की नया भारत उन्हे देख रहा है, और अगर उन्होने आत्ममंथन नहीं किया, तो उनके हाथ से सत्ता की आखरी कुंजी भी फिसल जाएगी, जो युवा भारतियों की इनके बांटनेवाली नीतियों और मुफ्त में सब्सिडी और फ्रीबीज बांटने की इनकी योजना के लिए उचित प्रतिक्रिया होगी।
राजनैतिक हालात इस वक़्त प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में है, और आगे भी होंगे। उत्तर प्रदेश के सीएम ही इसकी एक बानगी होनी चाहिए की कैसे आवश्यकता है एक ऐसे प्रशासक की, जो राज्य में व्यवस्था भी दुरुस्त रखे, और सरकारी अफसरों या गलतियाँ करने वाले मंत्रियों पर कारवाई करने से भी न हिचके, जिससे पिछली सरकारें, चाहे क्षेत्रीय हों, या काँग्रेसी, सब बचते आ रहे हैं।
कभी अंधाधुंध पूजी जाने वाली भारतीय मीडिया का एक काला अध्याय भी है, जो अब सबके सामने बाहर आ चुका है, और ये उन्हे कदापि प्रिय नहीं लग रहा है। जैसे प्रणय रॉय के अलमारी से उनके पापों का कच्चा चिट्ठा बाहर निकलने लगा, हमेशा की तरह स्वतन्त्रता के नारे गूंजने लगे, और यहाँ मेरा मानना है की इन्हे नियमों की धज्जियां उड़ाने की स्वतन्त्रता चाहिए। जिस तरह ये लोग बदला का रोना रो रहे हैं, कभी इनहोने सोचा था की नरेंद्र मोदी पे क्या बीत रही होगी, जिनहे गुजरात दंगों के पीछे 12 साल तक न चैन से सोने दिया गया, न सीबीआई की नौटंकियाँ बंद हुई, और न ही उन्हे इन्ही लोगों ने अमेरिका में घुसने दिया। कर्म आपके सामने है।
वैसे काँग्रेस और मीडिया दोनों के लिए हिन्दू आस्था को चोट पहुंचाना एक आम पेशा है, जैसा की केरल में खुले आम गौहत्या से व्याप्त है, पर इनकी कट्टरता की नीति अभी तक नहीं बदली है, और अभी भी यह हिंदुओं का मज़ाक उड़ाने से बाज़ नहीं आते। मीडिया भी इसमें पीछे थोड़ी न है, उन्हे तो लगता है की कटे बछड़े को बैल की संज्ञा दे वो अपने इस टटपुंजिये रवैये से हिंदुओं को काबू में रख सकेंगे। इनकी आकाओं के तलवे चाटने और उनका प्रोपगैंडा फैलाने की कला का कोई सानी नहीं है। पर सोश्ल मीडिया की कृपा से मीडिया अब अभेद्य या निर्विवाद नहीं रह गयी है। और सबसे बड़ी उपलब्धि इसकी यह है की इनके बीते कल को बड़े करीने से सहेज के रखते हैं, जिससे मीडिया खुद अब चैन से नहीं सो पाता। भले ही यह इनके झूठ का पर्दाफाश करने वाले को ‘ट्रोल’ की संज्ञा दे, और कहें की ये ग्रुप एक संगठित खतरा है देश के लिए, मुझे यकीन तो नहीं होता, पर उम्मीद है की यह मीडिया के संबंध में सच साबित हो।
प्रधानमंत्री मोदी यहाँ लम्बी पारी के लिए तैयार हैं, और अगर आपके पर ज़्यादा तिलमिलाहट में फड़फड़ा रहे थे, तो आने वाले संकट के लिए तैयार रहे।