जिसने भी 10+2 में विज्ञान को अपनाया है, वो इस किताब ‘कान्सैप्ट ऑफ फ़िज़िक्स’ न पढ़ा हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। ‘गीता’ की तरह ये आईआईटी/एआईपीएमटी के उम्मीदवारों के लिए ये पुस्तक पूज्य होती थी, जब परीक्षा के लिए फ़िज़िक्स तैयार करनी होती थी। इसे पूरा करने का अर्थ होता था की अपने मनचाहे परिणाम की तरफ अपना कदम बढ़ाना, और जिस विभूति ने इसे दो भागों में रचा है, उस प्रोफेसर, आचार्य हरीश चन्द्र वर्मा ने आखिरकार अपने इस स्वर्णिम कैरियर को विराम दिया और कल आईआईटी कानपुर से सेवानिर्वृत्ति ले ली। इसे इनहोने अपने ट्विट्टर हैंडल पर भी प्रकाशित किया।
https://twitter.com/HCVermaIITK/status/880964424537735168
ये निर्णय देखते ही उनका फ़ेसबुक वौल और ट्विट्टर वौल काफी संवेदनशील, भावपूर्ण संदेशों से भर गया, जिनमें उन्हे अश्रुपूर्वक विदाई दी। उनके आईआईटी कानपुर के अनुयायी हों या फिर वो जिनहोने इस पुस्तक को हाथ भी नहीं लगाया, उन सभी ने इन्हे फ़िज़िक्स या भौतिकी को सरल और मज़ेदार बनाने के लिए धन्यवाद प्रकट किया।
डॉ. एचसी वर्मा ने आईआईटी कानपुर में 1994 में बतौर प्रोफेसर प्रवेश लिया, और स्नातक और परास्नातक कोर्सेज के लिए इनहोने भौतिकी पढ़ाई। इसके साथ साथ इन्हे इनके सामाजिक दायित्वों के लिए भी जाना जाता है, जैसे शिक्षा सोपान, उत्साही फ़िज़िक्स टीचर्स, स्कूल फ़िज़िक्स प्रोजेक्ट इत्यादि।
शिक्षा सोपान का मुख्य उद्देश्य है आर्थिक रूप से गरीब बच्चों को शिक्षा मुहैया कराना। इसने सफलता के झंडे भी गाड़े हैं। आज ये कार्यक्रम ज़रूरतमन्द बच्चों को छात्रवृत्ति भी प्रदान करता है, बिना जाति या धर्म की दीवार खड़ी किए। ये सभी ज़रूरतमन्द बच्चों के लिए खुला है। शिक्षा के सड़े गले तरीकों के बजाए दिलचस्प कार्यशालाओं के माध्यम से पढ़ाया जाता है।
भौतिकी को सरल और दिलचस्प करने की जिजीविषा इनके पुस्तकों में भी दिखती है। इन पुस्तकों की सरल भाषा और भौतिकी के सिद्धांतों को असल जीवन से जोड़ने की कला में इनका कोई सानी नहीं है, अगर हम रेसनिक्क हैलिडे वॉकर की किताबों को उठाकर देखें!
यहाँ तक की गणित के सवालों में भी दिलचस्प कहानियाँ ढूँढने पर प्राप्त होती हैं। इनकी किताब में हमें उस पंक्ति को ढूँढना होता है जहां गेंद बल्ले से पिटने के बाद दर्शक दीर्घा में गिरेगी। सबने क्रिकेट रोलर को पिच पर पारी से पहले चलते हुये देखा होगा। पर कभी यह सोचा है रोलर को धक्का देने के बजाए खींचा क्यों जाता है? सिर्फ एचसी वर्मा ही ऐसे प्रोफेसर हैं जिनहोने इस जिज्ञासा को भी शांत किया होगा, अपने सरल फ्री बॉडी डायग्राम का इस्तेमाल करते हुये।
अपने फेस्बुक वौल पर श्री एचसी वर्मा ने रोटेशनल मैकेनिक्स से संबन्धित एक सवाल डाला, जिसमें ये पूछा गया था की किस वेग से अर्जुन को अपना तीर चलाना पड़ेगा, जिससे वो घूमती हुई मछ्ली की आँख को भेद सके और द्रौपदी का साथ स्वयंवर में प्राप्त कर सके? इस तरह फ़िज़िक्स को अपने आस पास के माहौल से संबन्धित करने की जो कला श्री वर्मा जी में है, वही फ़िज़िक्स को एक मज़ेदार विषय बना देता है।
इनकी पुस्तक भौतिकी को एक गूढ और अझेल विषय होने के आरोप से राहत देता है। जब तक किसी ने इस पुस्तक से एक पंक्ति भी पढ़ ली हो, तो वो इसे उत्तर देने के लिए प्रतिबद्ध हो जाता है।
ये पुस्तक ऐसी है की लेखक चाहता है की आप पहले सोचें, उसके बाद इन समस्यों का समाधान निकालें, जो कैसे 10+2 के विद्यार्थी अपने परीक्षाओं के लिए तैयारी करते हैं, से बिलकुल विपरीत है। इस बात का समर्थन करते हुये मैं यह कहना चाहता हूँ की इसे पढ़ने में समय अवश्य लगेगा, पर इसे किसी भी प्रकार से दरकिनार न करें। ये भौतिकी पे कम, एक कलात्मक पुस्तक ज़्यादा लगती है।
विडम्बना तो यह है की आज के कोचिंग सेंटर और विद्यालय ऐसे विषयों में विद्यार्थियों की जिज्ञासा बढ़ाने पर कोई ध्यान नहीं देते। पढ़ाई पढ़ाई कम, बोझा ज़्यादा लगती है। बच्चे समझने के बजाए रट्टा मारते हैं, जिससे वे परीक्षा उतीर्ण कर सके। परिणाम काफी भयानक होता है और कई लोग विज्ञान को एक विषय के तौर पर लेना ही छोड़ देते हैं, जिससे ग्रेजुएशन में ज़्यादा नंबर ला सके। ये सिर्फ विद्यार्थियों की क्षति नहीं, इस विषय की क्षति है।
अब जब एचसी वर्मा ने ऐसे स्वर्णिम कैरियर के पश्चात रिटायरमेंट ली है, हम आशा करते हैं की उनकी रिटायरमेंट के पश्चात ज़िंदगी भी यूं ही सुखदायी और समृद्धि से परिपूर्ण हो। हम उनके कुशल स्वास्थ्य की भी कामना करते हैं, जिससे वे आने वाले कई पीढ़ियों की और हमारे देश की ऐसे ही अपनी सेवाएँ देते रहे।
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— The Frustrated Indian (@FrustIndian) July 1, 2017