प्रारम्भ में मैं इस लेख को 3 भागों में बांटना चाहता हूँ। पहले भाग में पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा जीएसटी के उदघाटन के शुभ अवसर पर काँग्रेस के गंदी चालों के विभाग की करतूतों की पोल खोलूंगा। दूसरे भाग में मैं मैक्डॉनाल्ड और मुरूगन इडली शॉप के जीएसटी रसीद को विस्तृत करूंगा और तीसरे भाग में मैं जीएसटी पर राजस्व सचिव श्री हसमुख अधिया द्वारा कुछ झूठों के फैलाये जाने पर इनकी सफाई का विश्लेषण करूंगा।
काँग्रेस को अपने ही माँद में मिली मात
काँग्रेस पार्टी के कुटिल दिमागों के उतावलेपन का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है, की जीएसटी का उदघाटन हो, इससे पहले ही इसके नायक नरेंद्र मोदी की मिट्टी पलीद करना शुरू कर दी। और शुरू किया उन्होने ये झूठ फैलाना की मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होने जीएसटी के असफल होने की भविष्यवाणी की थी, और एक सुनियोजित और छाँटे हुये विडियो को ट्विट्टर पर अपलोड कर इनहोने इस झूठ का प्रचार करना शुरू किया। कितने दुख की बात है की काँग्रेस पार्टी ने ऐसा तभी किया जब मोदी जी इस क्रांतिकारी कदम को मूल रूप देने जा रहे थे, वो भी उनके [काँग्रेस पार्टी] अपने ही विश्वसनीय और वर्तमान राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी के आशीर्वाद से।
एक पार्टी, जिसका नेतृत्व एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जाने माने अर्थशास्त्री कर रहे हो, एक वित्त मंत्री जिसके पास व्यवसाय प्रशासन में हावर्ड बिज़नस स्कूल की डिग्री हो और 35 साल से भी ज़्यादा प्रशासन और राजनीति की समझ हो, वो सरकार के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित कर जीएसटी को एक नया आयाम देने के बजाए सोश्ल मीडिया पर भाजपा की मिट्टी पलीद करने में जुट गए, और साथ ही साथ प्रोटोकॉल को ठेंगा दिखा संसद के विशेष सत्र का भी बहिष्कार किया, जो सिर्फ उनका अक्खद्पना और हारी हुई मानसिकता प्रदर्शित करता है।
काँग्रेस के नेता निस्संदेह धर्मसंकट में थे, पर आखिर में पूरी पार्टी ने एकसाथ इस सत्र का बहिष्कार किया, जो इनके दिमागी दिवालियापन का भी प्रत्यक्ष प्रमाण देता है।
श्रीमति सोनिया गांधी ने सोचा होगा की यह दृश्य तो किसी अपमान से कम न होगा की उनके सामने, एक पूर्व विपक्षी पार्टी उन्ही के कथित बिल जीएसटी को पारित करा रहा है [इस्पर चर्चा बाद में], और पूरा देश पीएम मोदी और उनके भारतीय जनता पार्टी की जयजयकार लगा रही है, जब जीएसटी का बटन दबाया गया था।
अब देखते हैं की कैसे काँग्रेस के कुटिल विभाग मोदी जी के भाषण की छँटी हुई विडियो का प्रसारण कर उन्हे बदनाम करने पर तुली थी। नीचे वो ट्वीट है, जिसका मुख्य उद्देश्य मोदी की छवि को बिगाड़ना था:-
Modi ji how quickly you forget your own words. Why are you rolling out GST without developing the proper infrastructure #GSTTamasha pic.twitter.com/5urSMepFN3
— Congress (@INCIndia) June 30, 2017
ये विडियो एक आंशिक रूप से छँटी हुयी, सुनियोजित तरीके से काटी हुई छोटी विडियो है। अगर आप एक दूसरे विडियो को देखें, जहां मोदी ने पूरे होशो हवास में जीएसटी के महत्व और उससे संबन्धित टास्क फोर्स और एक उचित नेटवर्क के गठन की बात सामने रखी थी, जिससे जीएसटी का सफलतापूर्वक पारण संसद से किया जा सके। सो इस विडियो से साफ है की मोदी जीएसटी के खिलाफ नहीं थे, पर अधपकी जीएसटी के पारित होने के पक्ष में कतई नहीं थे, जो पिछले सरकार की असफल नियमावली को झलकाती है।
पूरा विडियो देखें :
https://youtu.be/gBg8_OA3YQg
इतने स्पष्ट विचारों के पश्चात भी हमारे पारंपरिक निंदकों ने बड़े सफाई से उचित जगह को काट छाँटकर हमें ये दिखाने का प्रयास किया है, की मोदी ने शुरू से जीएसटी पर अपना विरोध जताया है। मज़े की बात, मोदी के विचारों पर प्रणब मुखर्जी ने ही अमल करते हुये जीएसटी कर नेटवर्क का 2013 में गठन, जो यह साबित करने के लिए उपयुक्त है की पिछली सरकार इस बिल के उदघाटन के लिए कितनी तैयार थी, और कितनी नहीं।
कथन के अनुरूप मोदी ने जबसे सत्ता की कमान संभाली है मई 2014 में, तबसे मोदी जी जीएसटी को पारित कराने में तुले हुए हैं। मोदी जी ने इस बीच जीएसटी के सफल क्रियान्वयन के लिए क्या कदम उठाए हैं?
इनहोने कई क्रांतिकारी कदम उठाए, जिससे जीएसटी के सफल क्रियान्वयन के लिए उचित मंच तैयार किया जा सके, जैसे :- आयकर रिटर्न दाखिल कराने में व्यापक सुधार, पैन और व्यक्तिगत आयकर खातों से आधार को जोड़ना, ऑपरेशन स्वच्छ मुद्रा या विमुद्रीकरण, कर माफी योजना, प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना पारित कराना इत्यादि।
सितंबर 2016 में आर्थिक मसलों पर बनी कैबिनेट समिति, जिसकी अध्यक्षता खुद नरेंद्र मोदी ने की थी, ने ‘सक्षम परियोजना’ के लिए 2256 करोड़ रुपयों को स्वीकृत कराया, जो एक नई अप्रत्यक्ष कर नेटवर्क है, और जिसका सफल क्रियान्वयन आगामी 7 वर्षों के अंदर अंदर होगा। ‘सक्षम परियोजना’ जीएसटी के सफल क्रियान्वयन में सहायता करेगा, जो इंडियन कस्टम्स सिंगल विंडो इंटरफ़ेस फॉर फ़ैसिलिटेटिंग ट्रेड [स्विफ्ट] और दूसरे करदाता के अनुकूल गतिविधियों का डिजिटल इंडिया अभियान और एक्साइज़ एवं कस्टम्स के केन्द्रीय बोर्ड के दूरदृष्टि के अंतर्गत एक उचित विस्तार होगा।
इससे आशा है की करदाताओं, आयातकों, निर्यातकों और डीलरों, जिनका प्रबंधन सीबीईसी के विभिन्न अप्रत्यक्ष कर कानून द्वारा किया जाता है, से इनकी संख्या मौजूदा 36 लाख से 65 लाख तक बढ़ेगी। जब जीएसटी का सफल क्रियान्वयन पूरा होगा, तब इन लोगों की संख्या 1 करोड़ तक भी पहुँचने की आशा है।
आगे, वर्तमान कस्टम्स के ईडीआई प्रणाली, जो 140 स्थानों पर संचालित की जा रही है, अपने आप को और सीबीईसी केन्द्रों को अपने दायरे में लेने के लिए विस्तृत होगी।
सीबीईसी के आईटी प्रणालियों को जीएसटी को अब अपने दायरे में लेना पड़ेगा, जिससे पंजीकरण की प्रक्रिया हो, संबन्धित भुगतान हो, या जीएसटीएन द्वारा सीबीईसी को भेजे गए रिटर्न डाटा हो, इन प्रक्रियाओं में आगे किसी प्रकार की कोई बाधा न आए। जीएसटी संबन्धित सीबीईसी और जीएसटीएन प्रणालियों में कोई भी ओवरलैप मौजूद नहीं है।
और भी कई सुविधाएं है, जो वर्तमान जीएसटी प्रणाली के तहत संबन्धित करदाताओं को मुहैया कराई जाएंगी, जैसे:-
सीबीईसी की कस्टम्स, केन्द्रीय एक्साइज़ और सेवा कर में ई सेवाएँ, करदाता संबन्धित सेवाओं का कार्यान्वयन, जैसे स्कैंड दस्तावेज़ों को अपलोड करने की सुविधा, स्विफ्ट प्रोग्राम का विस्तार, और संबन्धित सरकारी सेवाएँ जैसे ई निवेश, ई ताल और ई साइन से एकीकरण सुनिश्चित करवाना।
अफसोस की बात है की 2011 के जीएसटी कार्यान्वयन में यूपीए सरकार ने ऊपर के किसी भी बिन्दु पर ध्यान देने की समझदारी नहीं दिखाई। इसी तत्परता के बारे में मोदी ने अपने भाषण में व्याख्या देने का प्रयास किया था, जिसे काट कर उनकी प्रतिबद्धता पर काँग्रेस एक बेबुनियाद सवाल उठा रही है।
और तो और, पीएम मोदी ने जो भी कहा और सुझाया, उन सभी बिन्दुओं पर उन्होने अपने जीएसटी बिल में अमल भी किया, जिसका सफल क्रियान्वयन जुलाई 2017 में संभव हुआ।
मोदी सरकार के नए जीएसटी बिल पर राज्यों की चिंता लाज़मी थी, और साथ ही साथ उनकी कुछ अहम मांगें भी थी, जिनहे 2013 में प्राथमिकता के आधार पर सदन में न तो चर्चा के विषय में शामिल किया गया, और न ही इन मांगों पर पुराने जीएसटी बिल में कोई तवज्जो दी गयी:-
1.पैट्रोलियम को जीएसटी के दायरे से बाहर रखना
2. शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखना
3. प्रवेश कर को जीएसटी के दायरे से बाहर रखना
4. केंद्र से संभावित राजस्व संबंधी नुकसान पर किसी प्रकार की गैरंटी, इत्यादि
पर वर्तमान सरकार ने इन मांगों पर विचार करते हुये प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली के नेतृत्व में आम सहमति की तरफ न सिर्फ अपने कदम बढ़ाए, अपितु प्रथमत्या राज्यों की चिंताओं का भी अपने बिल के जरिये निवारण किया।
पैट्रोलियम से संबन्धित उत्पाद, मानव सेवन के लिए मौजूद शराब और बिजली को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया।
आखिरकार, जीएसटी का सफलतापूर्वक संसद से पारित होना भारत के आर्थिक इतिहास में एक मील के पत्थर के तौर पे दर्ज होगा , जिसका पूरा पूरा श्रेय प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री, श्रीमान अरुण जेटली को जाता है। इस संवैधानिक आश्वासन से जीएसटी पर आम सहमति का रास्ता खुल पाया, और विरोधियों की आशा के विपरीत 1 जुलाई की रात को जीएसटी का ऐतिहासिक उदघाटन संभव हो पाया।
इस तरह मोदी सरकार ने राज्यों की भी सुनते हुये जीएसटी में संबन्धित परिवर्तन, और उनके राजस्व खोने के डर को भी सफलतापूर्वक दूर किया, जिससे जीएसटी को संसद में 1 जुलाई 2017 में ऐतिहासिक समर्थन मिला और आखिरकार राष्ट्रपति ने भी अपनी मुहर लगाई।
अब समय है काँग्रेस पार्टी के लिए आत्ममंथन करने का, और ऐसे गलतियाँ दोहराने से बचने का, क्योंकि इस तरह के कई क्रांतिकारी सुधार अभी आने बाकी है।
1 जुलाई 2017 के मैक्डॉनाल्ड और मुरूगन इडली शॉप के रसीदों का विश्लेषण
पर कुछ लोग होते हैं न, न खुद चैन से रहेंगे, न दूसरे को रहने देंगे। सो हुआ भी वही। 1 जुलाई की सुबह विवादास्पद लेखिका और कथित बुद्धिजीवी शोभा डे ने नांगनल्लूर, चेन्नई की यात्रा सिर्फ इस उद्देश्य से की मोदी के जीएसटी के सफल उदघाटन का मज़ाक उड़ा सके, जैसे इनहोने रियो ओलिंपिक्स में भारतीय दल के साथ करने की कोशिश की थी। कुछ ही घंटे तब हुये थे जब संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में मध्यरात्रि को जीएसटी का मोदी और प्रणब दा के आशीर्वाद से ऐतिहासिक उदघाटन हुआ था। नांगनल्लूर चेन्नई के प्रसिद्ध मुरूगन इडली शॉप पहुँचकर, वो भी सुबह सुबह, उन्होने एक गरमागरम घी पोंगल का कॉफी के साथ सेवन किया और बड़े गर्व से जीएसटी का भुगतान करने वाले प्रथम ग्राहकों की सूची में अपने आप को शामिल भी किया।
जब शोभा डे ने इस अवसर की तस्वीर खींचकर ट्वीट किया, मोदी द्वारा उद्घाटित जीएसटी का मज़ाक उड़ाने के लिए पोंगल को इडली बताया, तो भाई बहती गंगा में हाथ धोने के लिए प्रसिद्ध ट्विट्टर यूज़र्स भला क्यों पीछे रहते? इस तस्वीर का खूब मज़ाक उड़ाया गया, यह कहते हुये की कैसी बुद्धिजीवी है, जिनहे इडली और पोंगल में अंतर ही नहीं पता। हालांकि वे पूरी तरह गलत भी नहीं है, क्योंकि इडली और पोंगल दोनों चावल और दाल के मिश्रण से बनता है। पर हंसी मज़ाक को अलग रखते हुये, आइये ज़रा विश्लेषण करें इन दोनों जीएसटी बिल का, जिनहे 1 जुलाई को उत्पन्न किया गया था।
GST ke side effects. Unaffordable idlis pic.twitter.com/1wZCaHjT4h
— Shobhaa De (@DeShobhaa) July 1, 2017
और हाँ, ये निष्कर्ष पर बिना तर्क कूदने से पहले की कैसे जीएसटी ने ज़िंदगी दुष्कर बनाई है, ये अवश्यंभावी है की इन परिस्थितियों का निष्पक्ष आंकलन किया जाये, ये यही वस्तुएँ जीएसटी के पहले किस दर पे मिलती थी, और अब किस दर पर मिलती है। ऊपर दिये गए बिल को ज़रा गौर से देखिये।
यहाँ पर वैसे कोई खास व्याख्यान देने की आवश्यकता तो नहीं है, पर इडली और पिज्जा प्रेमियों को कोई दिक्कत न हो, इसलिए इस कर प्रणाली के इस पेचीदा भाग की गुत्थी मैं इन लोगों को सुलझाकर बताता हूँ। जो कीमत रैस्टौरेंट के मालिक ने पोंगल और कॉफी के लिए निर्धारित की है, वो आने वाले दिनों में और कम होगी, क्योंकि अभी मालिक ने अपनी कीमतों पर काम नहीं किया है, और आईटीसी के अनुसार अपने कीमतों का निर्धारण नहीं किया है।
तो आईटीसी क्या है भाई?
आईटीसी है इनपुट टैक्स क्रेडिट, जो जीएसटी के वर्तमान विधि के एक अंदरूनी प्रावधान के अनुसार ग्राहकों के ऑर्डर पर आगे लगाया जाएगा। धारा 171 के अनुसार, ये अनिवार्य है की रैस्टौरेंट के स्वामी द्वारा टैक्स के दरों में कमी से अर्जित लाभ के विषय में, या फिर कच्चे माल और अन्य सेवाएँ से प्राप्त लाभार्जन, जिनका उपयोग रैस्टौरेंट स्वामी इडली या पिज्जा बनाने में करता है, को दूसरी जगह हस्तांतरित किया जाना चाहिए।
क्योंकि जीएसटी 1 जुलाई 2017 की मध्यरात्रि को पारित हुआ था, इसलिए प्रदायक को आईटीसी सिर्फ आने वाले दिनों में ही मिल सकती है, सीधे 1 जुलाई को ही नहीं, इसलिए ये सोचना ही हास्यास्पद है की उक्त रैस्टौरेंट के स्वामी को टैक्स के दरों में आई कमी या आईटीसी के फायदे ग्राहकों को पहले ही दिन, यानि 1 जुलाई को ही बांटने लगे। पर शोभा डे को क्या, उनका तो बस चले तो 2 महीने के दूध पीते बच्चे से 100 मीटर की रेस करवा दे। मुमकिन है क्या भाई? जीएसटी है, जादू की छड़ी की घूमाते ही स्वर्ग का आनंद मिले।
पर पिछले केन्द्रीय एक्साइज़ कानून या सेवा कर कानून के अंतर्गत एक प्रावधान पहले भी था, और अब भी है, की कच्चे माल पर लगी ड्यूटी और इनपुट सेवाओं पर व्याप्त करें चुकाने के लिए उचित क्रेडिट की सुविधा प्रदान की जाएगी, उस माल पर, जो 1 जुलाई से पहले क्लोसिंग स्टॉक में रखा था।
यहाँ जीएसटी कानून 2017 के प्रावधानों के अनुसार रूल 40 में ऐसी सुविधा प्रदान की गयी है।
इस केस में 30 जून की मध्यरात्रि का क्लोसिंग स्टॉक [1 जुलाई की सुबह का ओपेनिंग स्टॉक], जो वस्तुओं के प्रदायक द्वारा घोषित की जानी है, सेवाओं का एक प्रदाता प्रदान किया जाएगा, जिससे आरएम स्टॉक पर चुकाए जाने वाले करों और ड्यूटी के क्रेडिट की सुविधा उठाई जा सके। जैसे ही यह सुविधा उक्त स्वामी को प्राप्त होगी, खाने की कीमत अपने आप नीचे आ जाएगी।
बिल में 9% की दर से लगाई गयी राज्य और केन्द्रीय स्तर की जीएसटी दर का तात्पर्य उक्त वस्तुओं पर पारित 18% की जीएसटी दर का केंद्र और राज्य सरकार में विभाजन से है। यानि जो भी दर लगेगी, वो बराबर केंद्र और राज्य सरकार में बांटी जाएगी।
केंद्र सरकार के पिछले टैक्स यानि सेवा कर की जगह केन्द्रीय जीएसटी दर ने ली है, जबकि राज्यों में व्याप्त वैट दर की जगह राज्य जीएसटी दर ने ली है।
अब फिर से बिल पर आते हैं। पहले बिल पर 6% की दर से सेवा कर लगता था, जबकि असली दर 14% थी। इसे रैस्टौरेंट और होटलों में मिलने वाले भोजन के लिए 6% तक निर्धारित किया गया था। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये सेवाकर सिर्फ कुल लागत के सेवा वाले हिस्से पर लागू होता था [पोंगल की लागत को हटाकर] और वैट केवल बिकने वाले पोंगल के लागत पर लगाया जाता था। यानि वैट सेवा के हिस्से पर नहीं लगाया जा सकता, और एसटी पोंगल की लागत पर नहीं लग सकता, और इससे विरोधाभासी बात कोई नहीं हो सकती।
तो इसलिए इस समस्या का वैधानिक समाधान यह था की अगर पोंगल की सेवा का हिस्सा 40% है, तो उसपर सेवाकर 6% की दर से लागू किया जाये। एसटी के दर में ऐसी छँटाई सिर्फ एक शर्त पर संभव थी, की उक्त स्वामी किसी प्रकार के इनपुट वस्तुओं पर इनपुट क्रेडिट न ले पाये। पर स्टॉक पर चुकाए सारे योग्य कर अब 1 जुलाई से ओपेनिंग क्रेडिट पर लिए जा सकते थे। इतना ही नहीं, जब और जैसे वस्तु और सेवाओं की आपूर्ति प्रदायक को मिलती थी, तो वो उसके क्रेडिट का विवरण दायर कर सकता था संबन्धित कार्यालय में, और महीने के अंत में बकाया क्रेडिट उसके सम्पूर्ण कर देयता [माने liability] से एडजस्ट कर ली जाती। ये महीने के स्तर पर दाखिल होने वाले रिटर्न्स के समय की जाती है।
तो इस विस्तृत स्ट्रक्चर के अनुसार, जो भी करों में छँटाई होगी, उसका फायदा उपभोक्ताओं को पहले मिलेगा। कानून के अनुसार, यहाँ पर अतिरिक्त कर के निस्तारण का सफल प्रावधान भी है, जिससे करदाता किसी प्रकार के अतिरिक्त कर को अपने पास न रख सके।
तो जो भी खाने का शौकीन है, वो इन जीएसटी के दरों पर चिंता करे बगैर [जिनहे सोश्ल मीडिया पर प्रचारित किया जा रहा है] अपने प्रिय भोजन का सेवन कर सकते हैं। वक़्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाता है, बस थोड़े सब्र की आवश्यकता है।