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राहुल गांधी के हिन्दू-विरोधी स्वर, विकिलीक्स ने खोली पोल

Shailesh Subramanian द्वारा Shailesh Subramanian
30 July 2017
in मत
राहुल गांधी विकिलीक्स

New Delhi: Congress Vice President Rahul Gandhi during a press conference at Parliament in New Delhi on Wednesday. PTI Photo by Subhav Shukla (PTI12_14_2016_000052B)

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सत्तर साल पहले जब हमें अंग्रेजों से स्वतन्त्रता मिली थी, तबसे काँग्रेस ने इस देश पर एक अधिकांश समय तक राज किया। और अगर थोड़ी और परतें निकली जाएँ, तो पता चलेगा की अधिकांश समय सिर्फ एक परिवार का ही सिक्का चला। लाल बहादुर शास्त्री के संक्षिप्त शासन और पीवी नरसिम्हा राव के पाँच साल के सुशासन को छोड़ दें, तो काँग्रेस का दूसरा नाम नेहरू गांधी परिवार रहा है। 19 साल तक जवाहरलाल नेहरू ने राज किया, फिर 15 साल तक इन्दिरा गांधी का राज रहा, और 6 साल तक राजीव गांधी ने और फिर 10 साल तक सोनिया गांधी ने इस देश पर राज किया, हालांकि वो आधिकारिक रूप से प्रधानमंत्री नहीं थी।

निस्संदेह काँग्रेसी इस बात का विरोध करेंगे, पर सत्य तो यही है की इस परिवार और इस पार्टी ने सदैव ही लोगों को धर्म और जाति के आधार पर बांटा है और सदैव ही हिन्दू विरोधी पक्ष लेते रहे हैं।

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जवाहरलाल नेहरू और उनकी कैबिनेट ने हिन्दू कोड बिल को संसद में प्रस्तावित कराया था, जिसके टहट अलग धर्मों के लिए अलग क़ानूनों के तर्क का ईजाद किया गया। इनहि के शासन में आरक्षण की विफल प्रणाली शुरू हुई थी। भई हम में से कोई भी दबे कुचलोन और निर्धन लोगों के लिए छात्रवृत्ति और रियायतों के विरुद्ध नहीं है, पर आरक्षण को जाति के आधार पर देकर योग्यता और प्रतिभा को हाशिये पर धकेल दिया गया है। जब इन्दिरा गांधी की हत्या हुई, तब सिख विरोधी दंगे कराये गए, जिसमें जगदीश टाइटलर जैसे काँग्रेसी चाटुकार मुख्यरूप से शामिल थे। राजीव गांधी के शासन में वोट बैंक राजनीति अगले स्तर पर पहुँच गया था और कुख्यात शाह बानो केस में इनकी सरकार ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसने सूप्रीम कोर्ट के फैसले को ही बदल डाला, जिसमें ये कहा गया था की शाह बानो का पति उसे तलाक के बाद गुज़ारा भत्ता प्रदान करे।

पर जब सोनिया गांधी के दस वर्षीय शासन की बात आई [जिसका चेहरा थे डॉ. मनमोहन सिंह], तब इस हिन्दू विरोधी सोच की असलियत खुलकर सामने आई। 2009 के आम चुनावों से ठीक पहले मनमोहन सिंह का बयान आया की अल्पसंख्यकों का देश के संसाधनों पर पहला हक़ है और रहेगा। क्यों भई, अल्पसंख्यकों का पहला हक़ क्यों होना चाहिए? क्या हर भारतीय को समान अधिकार नहीं दिये गए हैं? इसी दस वर्ष के कार्यकाल में इशरत जहां जैसे आतंकियों को शहीद का दर्जा दिया गया, ओसामा बिन लादेन को ओसामा जी कहा गया और ज़ाकिर नायक जैसे कट्टरपंथियों को खुले आम शह दी गयी थी।

पर यूपीए के इस शासन में जो सबसे बड़ा पाप किया, वो था अपने गंदे वोट बैंक राजनीति के उद्देश्य के लिए भगवा आतंकवाद के मिथ्या का निर्माण करना। 2007 में सम्झौता एक्सप्रेस में आतंकी धमाके हुये थे, जिसमें 68 लोग मारे गए और कई और घायल हो गए थे।

शुरुआती छानबीन में इशारे लश्कर ए तैयबा और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया [सिमी] की तरफ जा रहे थे, जिनहे इस हमले का मास्टरमाइंड बताया गया। पर यूपीए के दबाव में एनआईए ने यह जताना चाहा की यह हिन्दू संगठन अभिनव भारत के सदस्य थे, जो इस हमले के पीछे थे। स्वामी असीमानन्द को हिरासत में लिया गया और उनसे झूठे कबूलनामे लिखवाये और बुलवाए गए की वही इस हमले के सूत्रधार थे। बाद में स्वामी असीमानन्द ने बताया की उन्हे मानसिक और भौतिक, दोनों रूप में इन बयानों को बोलने के लिए बाध्य किया गया था।

पिछले महीने ही टाइम्स नाऊ ने खबर दी थी की इस केस का एक अभियुक्त, पाकिस्तान का रहने वाला अजमत अली, 14 दिनों में डिस्चार्ज कर दिया गया है। इस चैनल एक और सनसनीखेज टेप निकाला है, जिसमें सिमी सदस्य सफदर नागौरी ने कबूल लिया है की इन हमलों के पीछे सिमी भी थी। इनका मुख्य निशाना था तत्कालीन भाजपा प्रमुख  लाल कृष्ण आडवाणी।

इस खबर के सामने आने के बावजूद यूपीए सरकार पाकिस्तान और उनके द्वारा पोषित आतंकवादी संगठनों  को निर्दोष साबित करने पे क्यों तुली हुई थी? वो भगवा आतंकवाद के झूठ को साबित करने पर क्यों तुली हुई थी?

एक, इससे सुनहरा अवसर तो मिल ही नहीं सकता था आरएसएस को एक आतंकवादी संगठन के तौर पर बदनाम करने के लिए । दूसरा उद्देश्य था भारतीय मुसलमानों का दिल जीतना। इसमें कोई संदेह नहीं की अभी भी अपने देश में अपने देश में राष्ट्रवादी और उदार मुसलमानों भाई बहन अभी भी भारत में हैं, पर विडम्बना यह है की दुनिया में लगभग सभी आतंकवादी इस्लामी हैं और इनसे इतर मुसलमानों की आवाज़ इनही कट्टरपंथी मुल्लों ने दबा रखी है, जिनकी वजह से पूरा पंथ बदनाम होता है। अब यहाँ एक ऐसी सरकार थी, जो पूरी शिद्दत से इस बात में यकीन रखती थी की आतंक का कोई मजहब नहीं होता, पर हिन्दू या केसरिया आतंकवाद अवश्य होता है। t

ऐसा ही कुछ हुआ 2006 के मालेगांव धमाकों में, जहां पहले इशारा इस्लामिक आतंकियों की तरफ था, पर अपनी राजनीति के लिए अचानक से सारा दोष अभिनव भारत और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर मढ़ा गया। इनके खिलाफ कोई सबूत न होते हुये भी, इन्हे पकड़ कर महाराष्ट्र एटीएस के कुछ चाटुकार अफसरों ने ज़बरदस्त प्रताड़ना दी, क्योंकि कभी इनके स्वामित्व में रही एक बाइक में बम रखा गया था।

काँग्रेस पार्टी के भावी युवराज, श्री राहुल गांधी, जो बिना स्मार्ट फोन एक सांत्वना संदेश भी नहीं लिख सकते, इसी बहती गंगा में हाथ धोने के लिए तत्पर थे और केसरिया आतंकवाद के सिद्धान्त को भारत के बाहर ले गए।

विकिलीक्स केबल के अनुसार, राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर को कहा था की इस्लामी आतंकवाद के गुटों से ज़्यादा खतरा देश को उग्रवादी हिन्दू गुटों से है।

इन महाशय ने तो यहाँ तक कह दिया की हालांकि कुछ सबूत हैं, जिसमें युवा लश्कर में भर्ती हो रहे हैं, पर जितने युवा हिन्दू संगठनों में भर्ती हो रहे हैं, वो ज़्यादा है और इस देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है।

माननीय राहुल गांधी जी, हमारे देश के लिए सबसे बड़ा खतरा काँग्रेस और उसके जैसे सेकुलर पार्टी हैं, जो कुछ वोट और आरएसएस को बदनाम करने के लिए पाकिस्तान जैसे आतंकवादी देश से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं। ये आप ही के पार्टी के सदस्य हैं को खुले आम एक गाय के बछड़े को मार कर उन्हे भड़काने का प्रयत्न करते हैं। ये आप ही के पार्टी सदस्य हैं जो आरएसएस की साजिश नाम के पुस्तक का विमोचन करने के लिए दौड़े चले जाते हैं, जबकि यह बिलकुल साफ था की ये लश्कर ही था जिसने 26/11 के हमले करवाए थे। हमें तो शुक्रिया अदा करना चाहिए एएसआई तुकाराम आंबले का, जिनहोने अजमल कसाब को ज़िंदा पकड़ लिया, वरना काँग्रेस की चलती तो 26/11 भी भगवा आतंकवाद का एक बेहतरीन नमूना होता।

ये आपकी ही पार्टी थी राहुल गांधी, जिनहोने 2जी, कोल गेट, ऑगस्टा वेस्टलैन्ड, कॉमनवैल्थ जैसे कई करोड़ के घोटाले किए। ये आप ही के पिता थे, जिनहोने देश को झकझोरने वाले बोफोर्स घोटाले में हिस्सा लिया था। ये आप ही की माँ थी जो बटला हाउस एंकाउंटर में आतंकियों के मारे जाने पर फूट फूट के रोयी थी। ये आप ही की दादी माँ थी, जिनहोने लोकतन्त्र को खतरे में डालते हुये आपातकाल लागू किया था। ये आपके पार्टी की ही नीतियाँ थी, जिनके कारण कश्मीर की समस्या अभी तक व्याप्त है, और ये आपके सहयोगी नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी की ही कृपा है की कई लाख कश्मीरी पंडितों का सफाया कर दिया गया। आपके परिवार और पार्टी ने जितने पाप किए है, उसके बारे में जितना भी बोलो, कम है।

अंत में, चाहे धर्मनिरपेक्षता काँग्रेस की सबसे बड़ी कुंजी क्यों न हो, सच्चाई इससे कोसों दूर है। काँग्रेस जैसी सांप्रदायिक पार्टी इस देश ने कभी नहीं देखि होगी, जो इस देश को हर तरह से तोड़ने पर आमादा है, चाहे वो धर्म हो या जाति, और इनही के, और इनके जैसे अन्य राजनैतिक पार्टियों के ही कारण हिन्दू अपने ही देश में बहुमत में होकर भी दूसरे दर्जे के नागरिकों सा जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं। हम यही आशा कर सकते हैं की जल्द से जल्द काँग्रेस मुक्त भारत का सपना पूरा होवे और जिस पार्टी ने इस देश को तबाह कर के रखा , उसका विनाश हो जाये।

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