अपने उपलब्धियों के टोकरी में एक और सफलता का फल जोड़ने जा रहे हैं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जो सनातन धर्म की महिमा को पुनर्स्थापित करने में भारतीय इतिहास के एक अहम पड़ाव होगा, जिसे हम आज हिन्दू धर्म के नाम से जानते हैं।
सिर्फ एक ही दो महीने पहले, एक प्रेस विज्ञप्ति में शिवराज सिंह चौहान ने यह घोषणा की कि मध्य प्रदेश सरकार एक नयी योजना के साथ उतरेगी, ‘ पुरोहित्यम ’, जो एक डिप्लोमा कोर्स होगा, जिससे पंडिताई का रास्ता सबके लिए खुलेगा।
सनातन धर्म के पवित्र रीतियों में एक अहम कड़ी माने जाने वाले पंडित पुरोहित्यम डिप्लोमा कोर्स के अंतर्गत पंडित होने की शिक्षा ग्रहण करेंगे, जिसके तहत विद्यार्थियों को सनातन धर्म के मूलभूत सिद्धान्त समझाये जाएँगे, जैसे मंत्रोच्चार, पंडिताई, संस्कार शास्त्र [गृह्य सूत्र], संस्कार शास्त्र के सिद्धान्त, जिनकी आवश्यकता पड़ती है पंडित बनने से संबन्धित सोलह संस्कारों की प्राप्ति के लिए, जैसे महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान के निदेशक श्री पी आर तिवारी जी ने बताया है।
पुरोहित्यम कोर्स के लिए सिर्फ किसी मान्यता प्राप्त विद्यालय से अपनी 12वीं कक्षा तक की शिक्षा सफलतापूर्वक पूरा करने की आवश्यकता है।
पर ऐसा क्या विशेष है इस योजना में? पुरोहित्यम की अनोखी बात यह है की पंडित होने के लिए जाति का कोई बंधन नहीं है। हाँ, आपने ठीक सुना, पंडित बनने के लिए जाति अवश्यंभावी नहीं है।
अगर वे आवश्यक शर्तों और योग्यताओं पर खरा उतरता है, तो पिछड़े जाति या वर्ग का व्यक्ति भी एक पंडित होने का समान अधिकार रखता है, जो हमें ऋग वैदिक काल की याद दिलाती है, जहां जाति एक आवश्यकता नहीं, विकल्प हुआ करता था।
हाँ भाई, कुछ कट्टरपंथियों ने इसके विरुद्ध प्रदर्शन भी किए हैं, जिनहे ये लगता है की यह तो सिर्फ ब्राह्मणो का एकाधिकार है, पर मैं उन्हे ये बता दूँ की ब्राह्मण शब्द की उपज भी एक गर्व से परिपूर्ण उपाधि के तौर पर ऋगवेद में पुरुषासूक्ता की पंक्तियों में मिलती है, जिसमें ब्राह्मण की पहचान एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर हुई है, जो एक सच्चा बुद्धिजीवी है, और समाज को जगाकर शिक्षा भी देता है।
गौतम के धर्मसूत्र [वैदिक काल के प्राचीनतम शास्त्रों में से एक] के अनुसार, पंक्तियाँ 9.24 -9.55 के बीच में ब्राह्मण बनने के लिए उचित अवश्यकताएँ लिखी गयी हैं।
वह सदैव सच बोले
वह अपने आप को एक सच्चे आर्य के तौर पर अपना आचरण उचत्तम रखे
सिर्फ सच्चे व्यक्तियों को ही अपनी ज्ञान का दर्शन दें
रीतियों के शुद्धिकरण का वो पालन करे
वेदों को वह चाव से पढे
किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान न पहुंचाए
उसे कोमल होना चाहिए, पर दृढ़ भी होना चाहिए।
उसे सभी सच्चे मनुष्यों के प्रति दयालु एवं उदारवादी भी होना चाहिए।
गौतम के इसी धर्मसूत्र [जिसे बाद में पैट्रिक ओलेविल ने अनुवादित किया] के आठवें अध्याय में ब्राह्मणों के कर्तव्यों को भी बताया गया है, जो कुछ इस प्रकार है:-
वेद सीखना
विज्ञान सीखना
वैदिक कुंजियों को सीखना
संवाद, महाकाव्य और पुरानों का उचित ज्ञान
इन ग्रन्थों की रीतियों को समझ अपने आचरण में बदलाव लाना
संस्कारों और रीतियों का उचित पालन कर एक आदर्श जीवन व्यतीत करना।
इस उपलक्ष्य में एक ब्राह्मण वो है जो ज्ञान की दीक्षा लेकर इसके लाभ सम्पूर्ण समाज में बदलाव लाता है। अगर ब्राह्मण महज एक जाति मात्र थी, तो फिर निचली जातियों से आने वाले वाल्मीकि, व्यास और याज्ञवाल्क्य जैसे ऋषियों का हम क्यों गुणगान करते हैं।
हालांकि निचली जातियों से पंडित नियुक्त की बातें मीडिया में काफी पहले से चर्चित थी, जिसमें कुछ राष्ट्रवादी संगठन अपने स्तर पर योगदान भी करते आए हैं, यह पहली बार है की सरकार ने इस काम में पूरे होशो हवास में योगदान किया है, और सनातन धर्म और उसके अनुयाइयों को पुनर्स्थापित करने का बीड़ा उठाया है।
और जैसे स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, ‘वेदान्त कोई पाप नहीं देखता, वो देखता है तो भूल। और सबसे बड़ी भूल है ये कहना की तुम कमजोर हो, तुम पापी हो, नकारा हो, और तुम्हारे पास कोई शक्ति है, इत्यादि….’ यही बात सनातन धर्म पर भी लागू होती है।
पंडिताई के लिए पुरोहित्यम डिप्लोमा कोर्स की प्रस्तावना से शिवराज सिंह चौहान ने न सिर्फ एक मिसाल पेश की है बाकी पंथों के लिए, बाकी एक जाति की पाश्चात्य ठेकेदारी से भी पंडिताई को छुड़ाया है। कुछ भी कह लो, पर मुझे एक और ऐसा प्रशासक बता दो, जिसके अंदर ऐसा क्रांतिकारी निर्णय लेने का बल हो। आप तीन तलाक से मुस्लिम औरतों पर होने वाले अत्याचार तो नहीं भूले है न?
इसी के साथ शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चल रही मध्य प्रदेश सरकार ने उन बावले भारतीय सुधारकों की फौज में प्रवेश लिया है, जो गूढ सनातन समाज को अंदर से साफ करते आए हैं। एक समय पर ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानन्द और रामकृष्ण परमहंस ने सनातन धर्म और भारतीय समाज दोनों को सुधारने और इनमें व्याप्त गंदगी को हटाने का बीड़ा उठाया था। अब यही परंपरा का पालन बड़े शान से शिवराज सिंह चौहान जैसे लोग कर रहे हैं। देश को ऐसे सेवकों पर गर्व महसूस होता है।
मध्य प्रदेश को ऐसे दूरदृष्टि की सोच रखने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बड़े सौभाग्य से मिले होंगे। शायद इससे दिल्ली वाले भी कुछ सीख लें। वैसे भी, 2020 ज़्यादा दूर नहीं है।