विदेश मंत्री, श्रीमती सुषमा स्वराज सही कारणों से ही अखबारों की सुर्खियों में रहती है। तीन साल हो गए हैं सरकार के कार्यकाल में और वर्तमान कैबिनेट की वो न सिर्फ सबसे लोकप्रिय, बल्कि सबसे सम्मानित चेहरों में से एक हैं, और इन्हीं तीन सालों में देश ने इनके राजनैतिक से एक कुशल राजनेत्री में परिवर्तित होते देखा है।
ऐसा लगता था की सुषमा स्वराज बिना एक भी शब्दबाण चलाये अपने काम चुपचाप करती चली जाएंगी, पर संसद के अपने भाषण में जो विपक्ष की इन्होने तबीयत से धुलाई की, उससे इनकी जुझारू रूप की भी एक झलक मिली।
तथ्य, उचित तर्क और अनुशासित भाषण से कैसे कोई अपने विरोधियों को चारों खाने चित कर सकता है, कोई इनसे सीखे। पुराने दिनों में इन्होने मनमोहन सिंह के कॉंग्रेसी अपराधों पर मौनता और लालू प्रसाद यादव द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों पर इस्तेमाल की गयी अभद्र भाषा पर निशाना साधा, तो इस बार विपक्ष द्वारा पेश किए गए कमजोर तर्कों की इनहोने हर उचित बिन्दु को गिनाते हुये धज्जियां उड़ा दी। नीचे दिये गए भागों में हम इनके भाषण के कुछ हिस्सों का विश्लेषण करेंगे, जिससे मोदी सरकार में भारत से अंतर्राष्ट्रीय अलगाव के झूठ का न सिर्फ पर्दाफाश होगा, अपितु बिना ज़्यादा जोश व्यक्त किए इनहोने अपने विपक्षियों को कैसे धूल चटाई, इसका भी बखान यहाँ किया जाएगा।
खराब सम्बन्धों के झूठ का पर्दाफाश करना –
राज्य सभा में विपक्ष के नेता आनंद शर्मा ने विपक्ष के अन्य नेताओं के साथ ये प्रश्न उठाया :- क्या भारत अपने पड़ोसियों के साथ अपने संबंध बनाए रखने में सक्षम है? उन्होने यह प्रश्न विशेषकर पाकिस्तान के साथ वर्तमान तनाव और चीन के साथ डोकलम तनाव को देखते हुये उठाया। इसपर एक विस्तृत जवाब देते हुए सुषमा स्वराज ने बताया की कैसे भारत एक जिम्मेदार पड़ोसी की भूमिका बखूबी निभा रही है, और देशों के साथ अपने संबंध भी मजबूत कर रही है, जिसके लिए उन्होने तार्किक उदाहरण भी दिये, जैसे भारत की नेपाल में आए भूकंप के दौरान दी गयी मदद हो या फिर श्रीलंका को भीषण बाढ़ के बाद दी जाने वाली राहत हो। उन्होने ये भी बताया की कैसे सार्क देशों के सभी प्रमुखों को न सिर्फ प्रधानमंत्री के शपथ समारोह में बुलाया, बल्कि सार्क देशों के साथ इनहोने एक के बाद एक मुलाकातें भी की।
इसी के साथ विदेश मंत्री ने पड़ोसियों के साथ खराब होते संबंध की निरधार आलोचनाओं पर ताला जड़ दिया, जो बौखलाई हुई विपक्ष काफी दूर तक फैलाने की जुगत में भिड़ी हुई थी। उन्होने विपक्षी नेता से प्रश्न भी किया, की हंबांटोटा और ग्वाडर बन्दरगाहों पर चीनी प्रभाव को रोकने में नाकाम रही यूपीए सरकार के खिलाफ कोई विरोध क्यों नहीं किया गया?
पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंध –
पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण सम्बन्धों पर सुषमा स्वराज ने विस्तार से बताया की कैसे भारत बातचीत के मसले पर अपने कदम पीछे नहीं खींचे है, पर जब से पाकिस्तान ने कश्मीर में व्याप्त आतंकवाद का मजहब के नाम पर महिमामंडन किया है, तब से भारत ने भी ये साफ किया है की बिना आतंकवाद को बीच में से हटाये पाकिस्तान के साथ किसी प्रकार की बातचीत नहीं होगी।
डोकलम का तनाव –
उन्होने डोकलम मुद्दे को उठाते हुये सम्पूर्ण विपक्ष और काँग्रेस को राज्य सभा में घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, ये पूछते हुये की उनके उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने चीनी राजदूत से गुप्त मुलाक़ात क्यों की? क्या वे सरकार से इस बारे में अपना मुद्दा साफ और स्पष्ट रखकर चीनियों से अपनी बात नहीं कह सकते थे?
भारत की मजबूत अंतर्राष्ट्रीय उपस्थिति –
विपक्ष के इस खोखले दावे की भारत को दुनिया से अलग थलग किया जा रहा है का करारा जवाब देती हुई सुषमा स्वराज ने वहाँ तीर चलाया जहां काँग्रेस को सबसे ज़्यादा चोट लगती है, यानि मोदी और नेहरू की नीतियों में तुलना। इनके अनुसार जहां नेहरू की नीतियों ने उनकी छवि बनाई, पीएम मोदी की नीतियों ने देश की छवि सुधारी। इसके साथ साथ इनहोने ये भी बताया की कैसे भारतियों ने अमेरिका और रूस जैसे प्रतिद्वंदीयों से भी मित्रता रखकर इन्हे अपनी तरफ खींचा है। उन्होने इजराएल और फ़लस्तीन के उदाहरण देते हुये भी ये बताया की कैसे भारत इन दोनों देशों के बीच मध्यस्थता स्थापित करने में जुटा हुआ है। ये अलग बात की अब भी कुछ तुष्टीकरण समर्थक भारत के इजराएल के साथ प्रगाढ़ सम्बन्धों पर अपना अनुचित विरोध जता रहे हैं।
निष्कर्ष –
हमने सुषमा स्वराज को एक आक्रामक वक्ता के रूप में विपक्ष की धज्जियां उड़ाते हुये देखा है। पर इस नए अवतार में भी वो इतनी ही प्रभावशाली रहेंगी, इसकी किसी ने भी कल्पना नहीं की होगी। इस प्रक्रिया में आक्रामकता को दायित्वबोध के साथ निभाने की कला का प्रचुर उपयोग जो विपक्ष के खोखले दावों का जवाब देने के लिए लोकतन्त्र के मंदिर में किया गया है, वो अपने आप में काबिले तारीफ है।