आदरणीय रवीश कुमार जी,
नमस्कार, उम्मीद है प्रधानमंत्री को पत्र लिखने के बाद आप प्रफुल्लित होंगे। मुझे यह देखकर अच्छा लगा कि आपने सोशल मीडिया में हो रहे अभद्रता के मुद्दें को प्रधानमंत्री जी के सामने रखा। लेकिन ऐसा लगा कि मानो कुछ अधूरा रह गया। बस उन्ही अधूरी बातों को पूरा करने और इस पत्र में मैं आपसे कुछ सवाल करना चाहता हूँ, कुछ विचार रखना चाहता हूँ, कुछ बातें याद दिलाना चाहता। आशा रखता हूँ इस महान लोकतंत्र में मुझ जैसे एक आम इंसान को भी देश के सबसे जाने माने पत्रकार से कुछ सवाल करने का हक़ तो होगा ही। अब तक आप सवाल पूछते आएं हैं, खैर सवाल पूछना तो आपकी ड्यूटी है जो बखूबी निभाते हैं, लेकिन उम्मीद है कि आप मेरी बातों का जवाब जरूर देंगे, आखिर इस महान लोकतंत्र का हिस्सा आप भी तो हैं और मैं भी हूँ।
रवीश कुमार जी, आपने एक सवाल किया कि सोशल मीडिया के मंचों पर शालीनता कुचली जा रही है, अभद्र भाषा और धमकी के लहजे का इस्तेमाल किया जा रहा है, और जिन्हें प्रधानमंत्री द्वारा सोशल मीडिया में फॉलो किया जाता है वो भी अभद्रता करते हैं। तो रवीश जी आपसे एक सवाल करूँगा, आप तब कहाँ थे जब देश के सबसे पुराने पार्टी के दो बड़े नेता जिन्हें आप भी फॉलो करते हैं और जो आपको भी फॉलो करते हैं, उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया। ‘चु*यों को भक्त बनाया, और भक्तों को चु*या बनाया’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने वालों में आपको कैसी शालीनता और भद्रता नज़र आई ? सार्वजनिक रूप से उजागर होने के बाद, विवाद होने के भी बाद आप लगातार उनको फॉलो करते रहे। तो क्या जिस तरह किसी निखिल दाधीच को फॉलो करने के बाद उसके ट्वीट करने के लिए प्रधानमंत्री जिम्मेदार हैं तो प्रधानमंत्री के लिए अपशब्द निकालने वाले ट्वीट के लिए भी आपको जिम्मेदार माना जाये, क्योंकि आप भी उनको फॉलो करते हैं और अब तक कर रहें हैं ?
मानता हूँ कि काम कम होने की वजह से रवीश कुमार जी आप आजकल व्यस्त नहीं होते हैं तो सोशल मीडिया जिसे आप फालतू कहते थे उसमें घुमने निकल पड़ते हैं। आप कहते हैं यह शोभा नही देता कि लोग आलोचकों के जीवित होने पर दुःख जताते हैं। अच्छा महोदय एक बात बताइए, आप ही के जमात के ‘सुप्रतीक चटर्जी’ ने आप के ही प्रधानमंत्री जी के जन्मदिन पर उनके मौत की बात की थी, एक महिला पत्रकार ने प्रधानमंत्री की तुलना एक जानवर से की थी, तब आप कहाँ थे ? आप खुद को विरोधी ना कहकर आलोचक कहते हैं तो आपके आलोचना के स्वर उस वक़्त कहाँ थे जब आपके ही प्रधानमंत्री के लिए आपके द्वारा फॉलो किये जाने वाले लोगो द्वारा अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा था ?
किसी व्हाट्सऐप ग्रुप में मिली धमकियों को आप प्रधानमंत्री के समक्ष रख रहें हैं, बिल्कुल रखिए, आपके ही प्रधानमंत्री हैं, लेकिन यदि आपके पास पर्याप्त सबूत हैं तो पुलिस में जाकर शिकायत दर्ज कराइए, यूँ सोशल मीडिया में ढिंढोरा पीटने से सच बाहर आ जायेगा क्या ? आपने किसी आकाश सोनी का नाम लिया, आपने व्हाट्सऐप ग्रुप के एडमिन के नाम के साथ आरएसएस जैसे संगठन का नाम लिया, तो यूँ किसी संगठन का नाम लेने के बजाय आप पुलिस में जाकर इसकी जाँच कराये। मुझे नहीं लगता कि आरएसएस हो या आपके अन्य पसंदीदा संगठन किसी को भी अभद्रता करने वाले लोग पसंद होंगे। लेकिन आपने बिना किसी जाँच के सिर्फ उसके व्हाट्सऐप नाम के आधार पर उसे एक संगठन से जोड़ कर सोशल मीडिया में उसके संघ से जुड़े होने पर सवाल कर रहें हैं, और देखिए आपके ही पेज पर कॉमेंट करने वाले लोग भद्दी भद्दी गालियां और अभद्रता का कैसा नजारा पेश कर रहें हैं। यदि मैं अपने नाम के साथ किसी सोशल मीडिया में शुभम उपाध्याय की जगह, शुभम उपाध्याय वामपंथी जोड़कर किसी जगह अभद्रता पेश करूँ तब क्या आप बिना जाँच के ‘वामपंथियों’ को कटघरे में खड़ा करेंगे ? आपने ये भी जिक्र किया की उस एडमिन की तमाम बड़े नेताओं के साथ तस्वीर है, तो आपने उस केदार कुमार मंडल के लिए ये बात क्यों नहीं कही ? वही केदार कुमार मंडल जिसकी तस्वीर आपके प्रिय कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जी के साथ थी और नवरात्री के पहले ही दिन जिसने माँ दुर्गा को ‘वैश्या’ कहा था, तब आपको तस्वीरों वाली कहानी याद नहीं आई, क्यों पत्रकार साहब ?
रवीश कुमार, आप वाकई सामान्य नागरिक हैं, मैं भी सामान्य नागरिक हूँ, और समय आज ऐसा बदल चुका है कि देश का प्रधानमंत्री भी खुद को प्रधानसेवक कहता है। उस प्रधानसेवक को आपकी नौकरी छीनने की भला क्या आवश्यकता पड़ेगी ? हर इंसान अपनी नौकरी की रक्षा खुद करता है, अपने काम से, अपनी मेहनत से, अपने लगन से। यदि आपका काम अच्छा होगा तो मालिक आपको और प्रमोशन देंगे यदि नहीं होगा तो शायद आपको बाहर भी किया जा सकता है, अब इसमें प्रधानमंत्री जी का कैसा हाथ ? यदि सबूत है तो पेश कीजिए, वरना हवा हवाई बातों में तो कभी भी कुछ भी कहा जा सकता है। सांत्वना पाने का ही शौक है तो जी भर कर कीजिए, लेकिन खुद को पत्रकार ना कहिए। मैं भी एक पत्रकार का पुत्र हूँ, और मुझे बुरा लगता है कि ‘कलाकारों’ द्वारा खुद को पत्रकार कहा जाता है। आप कहते हैं बॉबी घोष जी को प्रधानमंत्री के नापसंदगी के कारण नौकरी से निकाल दिया गया, यदि गलत हुआ है तो आप कोर्ट जाइए, केस कीजिए, सत्यता साबित कीजिए, यूँ सोशल मीडिया में सांत्वना पाने के लिए बेबुनियाद बातें ना कीजिए। इस देश में न्यायपालिका स्वतंत्र है।
महिलाओं के अभद्रता पर तो रवीश कुमार जी, आप कहिए ही ना महोदय, आपके मुँह से यह दोहरी बातें शोभनीय नहीं है। एक सामान्य से व्यक्ति के जवाब में आपने खुद जशोदा बेन जी को ही ले आये थे। आप खुद जिनको फॉलो करते हैं उन्होंने महिलाओं के लिए ‘टंच माल’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया था, तब कहाँ था आपकी महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने का जुझारूपन ? जब प्रधानमंत्री जी की पत्नी को आप एक अनजान शख्स के जवाब में ला रहे थे तब कहाँ था आपका महिला सम्मान ?
रवीश कुमार जी आपने जो पत्र लिखा है वो पत्र नहीं, बौखलाहट है! मानता हूँ आप एक छंटे हुए कथाकार हैं, लेकिन जनता अब इन बातों से दिग्भ्रमित नहीं होने वाली, क्योंकि जनता ने उन कहानियों और कथाओं के पीछे छुपे पहलुओं को समझना सीख लिया है। प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर खुद की ही प्रधानमंत्री से तुलना करना आपकी मानसिक स्थिति को दिखाता है कि कैसे आप एक पक्ष के पैरोकार हैं। पत्रकार की आड़ में यदि आपको राजनीति करनी है तो उससे बेहतर है आप खुलकर नेतागिरी कीजिए। उतरिए चुनावी मैदान में, लड़िए चुनाव। फिर आपको भी पता चल जाएगा कि जनता का समर्थन किसे है। लेकिन यदि आपको पर्सनल व्हाट्सऐप ग्रुप की शिकायत करनी है तो नजदीकी पुलिस थाने में जाकर कर सकते हैं।
यदि रवीश कुमार मेरे सवालों का ठीक ठीक उत्तर दे दें, तो मैं लिखना छोड़ दूंगा, उम्मीद करता हूँ इस महान लोकतंत्र को बचाने के लिए आप मेरे उठाए प्रश्नों का जवाब जरूर देंगे। खैर जवाब नहीं देना भी आपका लोकतांत्रिक अधिकार है। फिर भी आपके जवाब का इंतजार रहेगा, तब तक स्वस्थ रहिए, मस्त रहिए।
|| जय श्री राम ||
एकतरफा.. लाजवाब क्यूंकि खुद रवीश कुमार जी के पास जवाब नहीं होगा..
बहुत अच्छा लिखा है, तथाकथित पत्रकार और स्वघोषित बुद्धिजीवियों को यह लेख पसंद नही आएगी, फिर भी उम्मीद करता हूँ, की *पत्रकार साहब* इस लेख को पढ़कर अपना एजेंडे वाला जबाब तैयार रखेंगे।
भक्त मानसिकता के सिवाय कुछ भी नही बातों में , सरेआम देश में डर को बढ़ावा दिया जा रहा है और तुम जैसे उस डर को बढाने में लगें है जिन कांग्रेस के नेताओं का वाकया तुम सुना रहें हो ,रविश उन्हें समर्थन नही करते लेकिन आपके मोदी जी और निखिल दाधीच के गुण, विचार और सोच एक ही तरह के है
U tried your Best, but Ravish will destroy you in 2 minute, I also hate him but u have to accept he is the best right now as a reporter. Maybe he is agenda is antinational or anti BjP but still he is good in his job. Your this letter don’t stand anywhere near him
कहना क्या चाहते हो मित्र?
Totally agree wid u…People wid two faces r d most dangerous persons for society…But as off now People in India are so again at our PM that they have started opposing our nation..well for now I will say only one thing that u r going really well..I appreciate ur work a lot and I m wid u brother…Good Luck..aur ye upar Jo comment kiya hai isko reply de dena,1 ka 1000 tumhara kuch nai bigaad sakte…saale khud kuch kar nai sakte aur faltu comments jaruri hai..
well said brother… Though i haven’t read the OPEN LETTER which Ravish kumar has put out,,coz I knew somewhere that everything which he will be writing will be presented in a manner which depicts his Anti BJP mentality… Though I m not saying that people can’t have varied or different opinions on a matter but opposing everything won’t do any good…
bhakto ka yahi kaam hain, galat kyo kiya uspe nahi bolenge, tum galat kiye uspe bolenge. har baat me 60 saal congress wali raag alapna shuru kar dete hain.
वो तो केवल चुनें हुए मुद्दे उठाता है ,जिसका खाता है उसी का गाता है ।
itna kharab opne letter aaj tak nahi dekha bina kisi tark ke bina kisi refrance ke jo referance diya woo bhi jhuta referance kuch aur reserch kar ke likh the tho thik rahta dubara reserch karo ravish ke bare me fir likho
Isko post ke link ko ravish kumar ke fb page pe daal du kya , dekhte hai kya jawab aata hai
Daal Dijiye