भारतीय संविधान के मुताबिक, भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां हर व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता है कि वह अपने मज़हब-धर्म-पंथ का पालन करें। हालांकि, भारतीय राजनीति में कुछ घटनाओं ने लोगों को धर्मनिरपेक्षता पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है। हाल ही में ममता बनर्जी द्वारा जारी किए गए तुगलकी फरमान इस तरह की घटना का एक उदाहरण था, जो हमें धर्मनिरपेक्षता के बारे में सवाल करने के लिए मजबूर करता है। 23 अगस्त, 2017 को ममता बनर्जी ने शाम 6 बजे के बाद दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर अस्थायी प्रतिबंध घोषित कर दिया था। विजया दशमी (30 सितंबर) पर इस साल 1 अक्टूबर तक यह प्रतिबंध मुहर्रम के कारण लगाया गया था, जो 1 अक्टूबर को है, दशमी के एक दिन बाद।
जैसी कि उम्मीद की गई थी ममता के खिलाफ जनता के गुस्से की ज्वालामुखी फूट पड़ी। और जब कोलकाता हाइकोर्ट पूछताछ करते हुए कहा पश्चिम बंगाल सरकार से इस फरमान के पीछे की मंशा बताने को कहा तब सरकार ने कहा कि अब उन्होंने एक नया फैसला किया है जिसके अनुसार अब रात में 10 बजे तक दुर्गा विसर्जन हो सकता है।
ज्ञात हो कि कई लोगों और संगठनों ने इस फरमान के खिलाफ आपत्ति दर्ज की थी, और कुछ लोग इस फैसले के खिलाफ अदालत में भी गए थे।
कोलकाता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार से पूछा- यदि मुंबई के लोग गणेश विसर्जन और विजयादशमी को एकजुट हो कर सकते हैं, तो कोलकाता के लोग ऐसा क्यों नहीं कर सकते? इसलिए, पश्चिम बंगाल सरकार समय सीमा को बढ़ाकर 10 बजे तक करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी।
इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि ममता बनर्जी के दुर्गा विसर्जन पर अस्थायी रोक के खिलाफ कोलकाता हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया गया था। ममता बनर्जी के 23 अगस्त को ट्वीट के बाद यह मुक़दमा दायर किया गया था कि दुर्गा विसर्जन को केवल 6 बजे तक ही अनुमति दी जाएगी क्योंकि अगले दिन मुहर्रम होगा। पहले निर्देशों में यह भी निर्दिष्ट किया गया था कि दुर्गा विसर्जन 2 अक्टूबर के बाद ही फिर से शुरू हो सकता है
बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अधिकारियों सनप्रीत सिंह अजमानी, कुलदीप रॉय और रिकी रॉय द्वारा यह मुक़दमा दायर किया था जिसमें बताया गया था कि ममता बनर्जी मुस्लिम समुदाय के बीच खासी लोकप्रिय है और इसलिए उन्हें खुश करने के लिए कि वह बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं के साथ खेल रही हैं । मुकदमे में उल्लेख किया गया है कि इस तरह के आदेश असंवैधानिक है और आर्टिकल 14, 25 और 26 का स्पष्ट उल्लंघन है। इसमें यह भी कहा गया है कि ऐसा कदम हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक विभाजन को और बढ़ा देगा।
पश्चिम बंगाल में यह कुछ भी नया नहीं है पिछले साल ममता बनर्जी ने एक समान आदेश जारी किया था और अदालत ने हस्तक्षेप किया था। कोर्ट ने राज्य सरकार को बताया कि यह मुसलमानों के तुष्टिकरण, धर्म के दुरुपयोग का और राजनीतिक एजेंडा का भौंडा प्रदर्शन है। अदालत ने पिछले वर्ष उल्लेख किया था कि 1982 और 1983 में मुहर्रम और विजयादशमी एक ही दिन पड़े थे लेकिन कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था और सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से हुआ था।