पिछले कुछ दिनों से हम भारतीय अर्थव्यवस्था के कमजोर होने के बारे में बहुत कुछ सुन रहे हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों द्वारा जीडीपी वृद्धि दर कम होकर 5.7 प्रतिशत आने, निजी निवेश में कमी, रोजगार सृजन उम्मीद गति से नहीं होना, जैसे मुद्दों पर चिंता जताई गई, इन बातों को विपक्ष और मुख्यधारा के मीडिया द्वारा भरपूर प्रचारित किया गया, प्रोपेगंडा मशीन होने के बाद भी वह लोग अर्थशास्त्री का चोला ओढ़े हुए हैं, एक विचारधारा और खासकर एक व्यक्ति (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) के लिए घृणा के चलते वह भारत में किसी भी चीज के बारे में नकारात्मकता फैलाने की तलाश में रहते हैं। निश्चित रूप से विरोधियों में कुछ वास्तविक अर्थशास्त्री भी शामिल थे जैसे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह, बेशक ज्ञान के मामले में वह एक इंस्टिट्यूशन हैं लेकिन पहले परिवार की प्रति उनकी निष्ठा में आंख मूंदे हुए हैं। फिर पुराने एनडीए के वरिष्ठ योद्धा, पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा जिन्हें रोलबैक सिन्हा के रूप में जाना जाता है और अरुण शौरी, इन दोनों को सरकार द्वारा साइडलाइन कर दिया गया है और यह स्पष्ट है कि इन्हें नहीं पसंद नहीं किया जाता।
दो घोषणाओं ने नए नवेले अर्थशास्त्रियों को जैसे हाथ में कुछ दे दिया हो। पहली वह, जब आरबीआई ने यह घोषणा किया कि 99% मुद्रा विमुद्रीकरण से वापस बैंक में आ चुकी है और इन्होंने विमुद्रीकरण को असफल करार दे दिया। एक कहानी गढ़ी गई कि नगद के रूप में कुछ भी काला धन नहीं था और जनता को व्यर्थ में तकलीफ दी गई। हजारों शेल कंपनियों का पता चला, चोरी के अपराधों को दंडित करने के लिए आगे की कार्यवाही के साथ पैसों का सिस्टम में वापस आना, नए करदाताओं की संख्या में वृद्धि होना और डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा मिलना इन सभी मुद्दों को आसानी से नजरअंदाज कर दिया गया। दूसरी घोषणा यदि की जीडीपी विकास दर गिरकर 5.7 प्रतिशत हो गई है। इसका कारण विमुद्रीकरण और जीएसटी को जल्द लागू करने को बताया गया। एक दशक से अधिक समय तक संसद में अटके कानून को केवल भारत भारत में “जल्दबाजी में प्रभाव में लाया गया” कहा जा सकता है।
सभी विपक्षी दल कानून बनाने का हिस्सा थे, साथ ही राज्यसभा में विधेयक पारित करने के दौरान एक भी सदस्य का विरोध नहीं हुआ था। जीएसटी परिषद में भी सभी पार्टियों का प्रतिनिधित्व है।
भारतीय जनता इन दूषित ताकतों से अच्छी तरह परिचित हैं और इन्हें बार-बार उजागर किया गया है। हाल ही के तीन निष्पक्ष विचारों ने उन्हें फिर से उजागर किया है कि अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है, यह अल्पकालिक परेशानियां है और विमुद्रीकरण से कहीं से भी आपदा नहीं हुआ है। 2017 में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले रिचर्ड थैरर ने अपनी राय में विमुद्रीकरण का समर्थन किया है। उन्होंने उल्लेख किया कि यह एक ऐसी नीति है जिसका वह लंबे समय से समर्थन करते आ रहे हैं और भ्रष्टाचार से निपटने एवं कैशलेस समाज की तरफ बढ़ने के लिए यह एक अच्छी शुरुआत है। हालांकि 2000 के नोट पेश करने के सरकार के फैसले कि उन्होंने आलोचना की थी।
मॉर्गन स्टैनली ने भविष्यवाणी की है कि आने वाले दशक में भारत सालाना 10% की दर से बढ़ेगा। मॉर्गन स्टैनली का कहना है कि भारत एक मजबूत प्रक्षेप पथ पर है और डिजिटलीकरण विकास को बढ़ावा देने में काफी मदद करेगा। उन्होंने भविष्यवाणी की है कि भारत की 2027 तक 6 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था होगी। उन्होंने आगे कहा कि अधिक संख्या में युवाओं के कार्य बल में शामिल होने से डिजिटलीकरण को बढ़ावा मिलेगा और मोबाइल बैंकिंग तकनीक में एक असाधारण वृद्धि दिखेगी।
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण आश्वासन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड से आया है। क्रिस्टीन लेगार्ड का कहना है कि हालांकि बदलावों ने भारत को थोड़ा डाउनग्रेड किया है लेकिन मध्य अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ही ठोस ट्रैक पर है। क्रिस्टीन लेगार्ड ने विमुद्रीकरण और जीएसटी के कार्यान्वयन दोनों को ही ‘स्मारकीय प्रयास’ के रूप में वर्णित किया है।
मंदी जो हम अभी देख रहे हैं वह केवल एक अस्थाई है और इन संरचनात्मक सुधारों के परिणाम स्वरुप अर्थव्यवस्था स्थिर है। क्रिस्टीन लेगार्ड ने कहा कि, राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने और मुद्रा स्थिति की जांच होने के कारण अर्थव्यवस्था की मूल बातें अभी भी बरकरार है।
कांग्रेस के पास 2G, कोयला घोटाला, अगस्ता वेस्टलैंड, कॉमनवेल्थ, बोफोर्स, नेशनल हेराल्ड और कई अन्य घोटालों की विरासत है। यूपीए-2 के दौरान उन्होंने अर्थव्यवस्था में काफी गड़बड़ी कर दी थी राजकोषीय घाटा जीडीपी का लगभग 5% हो चुका था, मुद्रास्फीति उच्च और विदेशी भंडार कम हो चुके थे। इस तरह के एक बहुत ही दूषित रिकॉर्ड के साथ, अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के बारे में व्याख्यान देने के लिए कांग्रेस का कोई नैतिक स्तर नहीं होता है। कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए काले धन के खतरे की जांच के लिए एक भी कदम नहीं उठाया और चीजों को यथास्थिति ही बनाए रखा। एक जिम्मेदार विपक्ष और सरकार से आवश्यकता पर सवाल पूछने के बजाय कांग्रेस सिर्फ गंदे विद्वेष के खेल में शामिल है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम जो यूपीए-2 के दौरान एफआईपीबी के प्रमुख भी थे जिसके परिणाम स्वरुप उनके भगोड़े बेटे कार्ति चिदंबरम को कई फायदे मिलते थे, नकारात्मकता फैलाने के बजाय उन्हें पहले उत्तर देना चाहिए कि उनका पुत्र कार्ति भारत कब लौटेगा।
अंत में, जिस गड़बड़ी में हम हैं उसके लिए भारत के लोग भी उतने ही जिम्मेदार हैं। रिश्वत देना और स्वीकार करना, संपत्ति का अवमूल्यन करना, कर चोरी करना यह सभी आदर्श बन गए हैं। किसी सड़े हुए को साफ करने के लिए एक बड़े धमामें कदम से अल्पावधि अवरोध आ सकते हैं, और उन लोगों को तो समस्याएं होंगी ही जो अभी तक सिस्टम से बाहर थे और अब उन्हें सिस्टम का हिस्सा बनने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। भारत के लोगों ने भ्रष्टाचार को कभी गंभीर अपराध के रूप में नहीं देखा और यह लालू यादव, शशीकला, सोनिया गांधी, यदुरप्पा जैसे भ्रष्ट नेताओं द्वारा सिद्ध किया जा सकता है। इस मानसिकता को बदलने के लिए कुछ और लोकप्रिय कदम उठाए जाने की आवश्यकता तो होगी ही। जब आईएमएफ प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड ने बिना किसी स्वार्थ के साथ उल्लेख किया है, तो चीजों के बदलने के लिए थोड़ी प्रतीक्षा करना और धैर्य बनाए रखना आवश्यक है।