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निकोलस बग्रुएन के साथ इंटरव्यू में राहुल गाँधी ने अपनी निरक्षरता का नायाब नमूना पेश किया है

Manoranjan Chaudhary द्वारा Manoranjan Chaudhary
15 October 2017
in मत
राहुल गांधी, साक्षात्कार
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रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक “पैट्रियट्स एंड पार्टिशन्स’ में लिखा है, “यदि शास्त्री जी को 5 साल दिया गया होता तो वहां नेहरु-गांधी वंश जैसा कुछ भी नहीं होता। संजय गांधी और राजीव गांधी निश्चित रूप से जिंदा होते और निजी जीवन जी रहे होते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री शायद एक उद्यमी (असफल) होते बाद में एक सेवानिवृत्त पायलट जिसे फोटोग्राफी का जुनून होता। यदि शास्त्री लंबे समय तक रहते, सोनिया गांधी अभी एक समर्पित और प्रेमी ग्रहणी रहती और राहुल गांधी शायद किसी निजी क्षेत्र की कंपनी में एक मध्यम स्तरीय प्रबंधक होते।”

गुहा की शायद नेहरु गांधी परिवार के अन्य सदस्यों के भविष्य की भविष्यवाणी सही हो सकती है लेकिन उन्होंने राहुल गांधी पर अधिक जोर दिया। यह उनके कमजोर बुद्धिमत्ता के कारण नहीं है जोकि राहुल गांधी किसी भी कंपनी के योग्यता परीक्षा को पार नहीं कर सकते हैं -जिससे नौकरी पाने की कोई संभावना नहीं- बल्कि उनके बहुआयामी निरक्षरता के कारण प्रश्नों को समझ कर उसके जवाब को पुनः उत्पन्न करने में उनकी अक्षमता को देखते हुए कि वह किसी भी परीक्षा कक्ष में एक आपदा की तरह साबित होंगे, यह सोच कर कहा होगा।

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हाल ही में निकोलस बेग्रुएन के साथ हुए राहुल गांधी के साक्षात्कार में कुछ ऐसा ही देखने को मिला।

हालांकि मीडिया के बड़े हिस्से में साक्षात्कार के बीच से एक अनावश्यक कथन “मोदी नफ़रत की राजनीति करते हैं’ को जोर देकर उसे सुर्खियां बनाने की कोशिश की; अगले कुछ पैराग्राफ में मैं राहुल से पूछे गए प्रश्नों पर उनके जवाबों का विश्लेषण कर उनके उनके बहुआयामी निरक्षरता के बारे में आपको बताता हूँ।

पहला सवाल “भारतीय लोकतंत्र कैसे विभाजनकारी तत्वों की चुनोतियों के खिलाफ खुद को प्रदर्शित करता है?” के जवाब में राहुल गांधी ने बेझिझक अमेरिका यूरोप और चीन से भारत की तुलना की। राहुल गांधी ने लगभग एक वाक्य को कहते हुए खुद का ही विरोध कर दिया, उन्होंने भारत की यूरोप से तुलना करते हुए कहा कि “हमारी विविधता यूरोप की तरह अधिक है लेकिन यदि आप तमिलनाडु और मिजोरम जैसे राज्य देखेंगे तो वह यूरोप से भी बड़ा है।” यह समझ से परे है कि क्यों राहुल गांधी ने अमेरिका और भारत की संस्कृति की तुलना करने के बारे में सोचा, लेकिन यह तो चौंकाने वाला समय था जब देश की सबसे पुरानी पार्टी के उपाध्यक्ष ने लोकतंत्र के प्रश्न के उत्तर देने के लिए चीन के साथ भारत की तुलना की।

इसके अलावा राहुल ने अपने सवाल के जवाब में शहरी प्रवास, आर्थिक सुरक्षा, यूआईडी, आरटीआई का भी जिक्र किया जिसका उस सवाल से कोई लेना देना ही नहीं था। यदि लोकतंत्र के मुद्दे पर चीन की तुलना भारत से करना राजनीतिक निरक्षरता थी तो आसान सवालों के संदर्भ में भी जवाब नहीं दे पाना को पूरी तरह से समझने में अक्षमता कहा जा सकता है।

राजनीति के लिए सोशल मीडिया के बीमारियों वाले दूसरे प्रश्न के उत्तर में राहुल गांधी ने काफी आक्रामक बयान दिया, उन्होंने कहा “जनजातीय, दलित और मुस्लिमों को सत्ताधारी पार्टी द्वारा कहा जा रहा है कि वह भारत के विजन के हिस्सा नहीं हो सकते। पत्रकारों को गोली मारी जा रही है।” दिए गए उत्तर का प्रश्न से फिर से कोई संबंध ही नहीं था। राहुल की प्रश्न को समझने की अक्षमता को देखते हुए, वह यह कैसे समझाएंगे कि एक दलित भारत के सर्वोच्च कार्यालय में बैठे हैं और शायद वह या भूल गए कि भारत का राष्ट्रपति कौन है?

अगले सवाल के जवाब में राहुल ने कहा “चीन की तुलना में आज के समय में भारत में शक्ति केंद्रीकृत है।” हालांकि यह किसी कांग्रेस पार्टी के नेता के लिए विडंबना की बात है कि वह सत्ताशीर्ष पर शक्ति के केंद्रीकृत होने के बारे में बात कर रहा है, लेकिन भारत के बारे में बात करते हुए वह शक्ति के पीएमओ के केंद्र में होने को चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की तरह बताया, जो दिखाता है कि उन्हें संविधान में विश्वास नहीं रहा या तीन स्तंभों के लोकतंत्र में खड़े भारतीय संविधान के बारे में उन्हें जानकारी का अभाव है।

राहुल गांधी के चीन के निरंतर संदर्भ को समझकर साक्षात्कारकर्ता निकोलस बग्रुएन नए सिल्क रोड पहल से संबंधित चीन-केंद्रित प्रश्न पूछा। अपेक्षित तौर से राहुल गांधी का जवाब एक विद्यालय जाने वाले छात्रों के जवाब से बेहतर नहीं था, जो कि पूरी तरह सिलेबस से बाहर था। “यह एक शक्तिशाली नीति है” सिवाय इस एक वाक्य के राहुल गांधी अपने जवाब में अधिक कुछ नहीं जोड़ सके और उन्होंने इसके बारे में कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया भी नहीं मांगी।

हफिंगटन पोस्ट में दिए साक्षात्कार के अनुच्छेद में बहुत स्पष्ट रुप से कहा गया कि “साक्षात्कार संपादित, संक्षेपण और स्पष्टता के लिए अनुकूलित था।” हालंकि इतनी विशाल संपादन के बाद भी इसे सही ठहराने के लिए तीन विभिन्न शब्दों की आवश्यकता पड़ी। यह शर्म की बात है कि भारत की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी एक ऐसे इंसान को अपना सर्वोच्च नेता मानकर ढो रही है जो भारत के संविधान, लोकतंत्र, राजनीति और संस्कृति के सामान्य ज्ञान के परीक्षा के भी योग्य नहीं हो सकता।

https://www.huffingtonpost.com/…/modi-rahulgandhi-india_us…
https://www.telegraphindia.com/…/jsp/opi…/story_12304113.jsp

 

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