बड़ी खबर: भारत की जीडीपी को लेकर संयुक्त राष्ट्र की भविष्यवाणी

जीडीपी

“2018 में भारत की अर्थव्यवस्था में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना जताई जा रही है और अगले साल यह दर मजबूत निजी खपत, सार्वजनिक निवेश और वर्तमान समय में हो रहे ढांचागत सुधारों के दम पर आगे बढ़कर 7.4 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। “इससे पहले कि सभी मोदी विरोधी लोग मुझे ऐसा कहने पर मोदी का भक्त कहने लगें और मुझ पर देश को गुमराह करने का आरोप लगायें, मैं उनसे इस टैग (भक्त) को किसी और को नहीं बल्कि  “संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए)” को देने का अनुरोध करना चाहता हूँ। ‘विश्व आर्थिक स्थिति और संभावना 2018‘ नामक एक रिपोर्ट में उपरोक्त विवरण प्रकाशित किया गया है। इस रिपोर्ट में आगे बताया गया कि “भारत के लिए दृष्टिकोण काफी हद तक सकारात्मक रहा है और मजबूत निजी खपत और सार्वजनिक निवेश के साथ-साथ चल रहे ढांचागत सुधारों से भी भारत ने स्वंय को मजबूत किया है। इसलिए, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 2017 में 6.7 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 7.2 प्रतिशत और 2019 में 7.4 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है।”

इस रिपोर्ट की व्याख्या करने से पहले और यह रिपोर्ट क्या कहना चाहती है, यह जानने से पहले चलिए बुनियादी मापदंड को समझने का प्रयास करें जिस पर यह पूरी रिपोर्ट आधारित है – जो है सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)जीडीपी को एक निश्चित अवधि के लिए देश के भीतर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसे अच्छे से समझने के लिए, मान लीजिए कि संयुक्त राज्य में क्वांटिको नामक टीवी सीरीज को 68 मिलियन डॉलर में टीवी चैनलों को बेच दिया गया। क्या इसकी गिनती सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में होगी? इस सवाल का जवाब होगा, बिल्कुल नहीं। क्या इस सीरीज की अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा जो कि भारतीय हैं, उनके द्वारा अपने परिवार और दोस्तों को दिए जाने वाले उपहार, दान और पैसा जीडीपी में कोई योगदान देंगे? जवाब फिर से, ‘नहीं’ ही है। भारत की भौगोलिक सीमा के अन्दर जो भी उत्पादन किया जाता है, केवल वही जीडीपी में योगदान देगा। समझने वाली बात तो यह है कि नागरिकों द्वारा स्वामित्व वाली सभी चीजें जीडीपी में योगदान नहीं देंगी। टाटा मोटर्स एक ब्रिटिश कंपनी जैगुआर के मालिक हैं और सभी उत्पादित जैगुआर कारें देश की जीडीपी में योगदान नहीं देंगीं। इसी तरह जैगुआर (भारत के बाहर का उत्पादन) के वेतन, लाभ, ब्याज, लाभांश आदि भी देश की जीडीपी में योगदान नहीं देंगे।

अगला सवाल यह है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) आर्थिक विकास को कैसे दर्शाता है?

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना बाजार मूल्य के आधार पर की जाती है और फिर जीडीपी अपस्फीतिकारक के इस्तेमाल से मुद्रास्फीति की कीमत का समायोजन किया जाता है, जो जीडीपी को एक स्थिर मूल्य प्रदान करता है। इसके बाद इसका उपयोग पिछले वर्ष की विकास दर को मापने के लिए किया जाता है। इस पर जीडीपी के आलोचकों का अपना एक अलग दृष्टिकोण है। उनकी सबसे बड़ी समस्या ये है कि यह आय असमानता को ध्यान में नहीं रखती। यदि कोई एक व्यक्ति, किसी एक देश की जीडीपी में 90 का योगदान करता है और किसी अन्य देश में, 3 लोग और प्रत्येक द्वारा जीडीपी में 30 का योगदान दिया जाता है, तो ऐसे में दोनों देशों का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक जैसा ही रहेगा। विश्व बैंक के गिनी गुणांक द्वारा इस समस्या से निपटने की कोशिश की गई है।

इससे पहले, मॉर्गन स्टेनली ने 2018 में भारत की जीडीपी की वृद्धि दर 7.5 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद जताई थी। इस तथ्य से ये मजबूती मिलती है कि पांच तिमाहियों के बाद जहां जीडीपी में हुई वृद्धि में गिरावट देखने को मिली, वहीं दूसरी तिमाही में जीडीपी में वृद्धि 6.3 प्रतिशत तक पहुच गयी (Q1 की तुलना में 0.6% अधिक)। ये संरचनात्मक सुधारों के परिवर्तन कालिक चरण के अल्पकालिक प्रभावों से उबरने की ओर इशारा करता है। विपक्ष के जाने पहचाने हमलों के हिसाब से बढ़ती हुई जीडीपी के बावजूद भी कोई विकास नहीं हुआ है और ये मूर्खतापूर्ण तर्क दिया है कि यह एक चुनावी स्टंट है; यहां कुछ चीजें दी गई हैं जिन्हें आपको देखना चाहिए –

1) मूडीज़ ने भारत की रेटिंग को सुधारा

मूडीज ने भारत की रेटिंग को न्यूनतम निवेश ग्रेड रेटिंग बीएए3 (Baa3) से बीएए2 (Baa2) में बढ़ा दिया और भारत के लिए जड़ दृष्टिकोण को सकारात्मक दृष्टिकोण में बदला। किसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी से उन्नति मिलना एक उपलब्धि क्यों है? भारत की रेटिंग में 14 वर्षों में पहली बार सुधार किया गया है इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे पोर्टफोलियो (portfolio) निवेश बढ़ेगा और बाहरी वाणिज्यिक ऋण सस्ता होगा। यह आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करेगा और यह बिल्कुल वही है जो विपक्ष अपनी फर्जी आलोचनाओं के साथ चाहता है कि आप इस पर यकीन न करें।

2) विश्व बैंक की ‘व्यापार करने में आसानी’ की रैंकिंग में ३० स्थानों की छलांग

आइए, उन मापदंडों पर नजर डालते हैं जिन पर रिपोर्ट बनाई गई है। विश्व बैंक के अनुसार, “बिल्डिंग परमिट प्राप्त करने की प्रक्रिया और समय में कमी, ऋण लेने में आसानी, छोटे निवेशकों की सुरक्षा, कर भुगतान करने में आसानी और दिवालियापन का आसानी से समाधान करना“ जैसे मापदण्ड थे। इन सभी मोर्चों पर सुधार का मतलब है अधिक व्यवसाय और अधिक व्यवसाय का मतलब है अधिक विकास।

3) विनिर्माण क्षेत्र में उच्च वृद्धि

यह इन्फोग्राफिक (चित्रित जानकारी) भारत में विनिर्माण क्षेत्र में सफलता की कहानी के बारे में बताता है जिसमें मेक इन इंडिया ने एक नीति के रूप में बड़ी भूमिका निभाई। इसके अलावा जीएसटी ने कई विनियामक मुद्दों का समाधान किया है। इस तरह की उच्च वृद्धि से ज्यादा रोजगार पैदा होगा जो आखिरकार फिर से समग्र विकास दर को बढ़ाएगा। यहां कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे नौकरियां अचानक ही पैदा हो जाएंगी बल्कि यह सकारात्मक संकेतों के साथ प्रगति के लिए एक क्रमिक कार्य है जो धीरे धीरे होता रहेगा।

4) ‘S&P’ का कहना है कि यह वृद्धि 2 वर्षों तक मजबूत बनी रहेगी

ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ‘S&P’ ने अपने एक बयान में कहा, कि “भारत को दी गई ये रेटिंग देश की जीडीपी में मजबूत वृद्धि, शानदार वैश्विक छवि और आर्थिक विश्वसनीयता में सुधार को दर्शाती है। भारत के मजबूत लोकतांत्रिक संस्थानों और उनकी स्वतंत्र प्रेस को बढ़ावा देने की स्थिर नीति और मेल जोल रेटिंग को और मजबूत करते हैं।”

या तो सभी क्रेडिट और रेटिंग एजेंसियों ने अपनी अर्थशास्त्र की समझ खो दी है या विपक्ष के पास बहुत बड़े बौद्धिक अर्थशास्त्री और निवेश पेशेवर हैं जिनका खर्च ये एजेंसियां वहन नहीं कर सकतीं। जहां भी क्रेडिट आवश्यक हो वहां दिया जाना चाहिए और तथ्य यह है कि लगभग सभी क्रेडिट और रेटिंग एजेंसियां भविष्य में होने वाली वृद्धि के बारे में आशावादी हैं और उन्हे एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों पर विश्वास है। विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ये आँकड़े गलत हैं। इस तर्क के साथ समस्या यह है कि जब कोई श्रोत जीडीपी में कमीं के आँकड़े पेश करता है तो विपक्ष इसपर पूरी तरह से यकीन कर लेता है और सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा देता है वहीं जब वही श्रोत यह आँकड़े पेश करता है कि जीडीपी में वृद्धि या आर्थिक बढ़ोत्तरी हो रही है तो विपक्ष इसे अस्वीकार कर देता है। विपक्ष के हाथ लग रही निरंतर निराशा ही इन दोहरे मानकों का एकमात्र तर्क है।

कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि लोग बैंक से ऋण नहीं ले रहे हैं और निजी पूंजी निवेश भी कम है। तो ऐसे परिदृश्य में जीडीपी में वृद्धि कैसे हो सकती है? आइए हम उनके इस झूठ से पर्दा उठाते हैं।

निजी पूंजी निवेश के बारे में बात करें, तो यह हमेशा के स्तर से ऊपर है।

यह इन्फोग्राफिक (infographic) ऑडिट और कंसल्टेंसी कंपनी ईवाई (EY) के द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट से उद्दृत है। 2017 के पहले छह महीनों में, भारत में पीई(PE) और वेंचर कैपिटल (VC) का निवेश बढ़कर 11.2 बिलियन डॉलर हो गया। यह पिछले वर्ष इसी अवधि में 8 बिलियन डॉलर था।

हाई एग्जिट डील्स का मतलब है कि अधिकतर निवेशक अपना पैसा वापस लेने में सफल रहे हैं। इसमें 53% की वृद्धि हुई है जो भविष्य में निवेश के लिए एक महत्वपूर्ण सुधार और सकारात्मक संकेत है।

जहाँ तक बैंक से लोन लेने का सवाल है, केन्द्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि प्रधान मंत्री मुद्रा योजना के तहत 9 करोड़ लोगों को 4 लाख करोड़ रुपये का ऋण दिया गया है। सरकार समाज के कम वित्त पोषित वर्गों को संस्थागत वित्त तक पहुँच दिलाने में समर्थ हो चुकी है, जिससे विकास को और गति प्राप्त हुई है।

अंत में, मैं ये निर्णय पाठकों पर ही छोड़ता हूँ कि वे ही निर्णय लें कि अर्थव्यवस्था ऊपर उठ रही है या नीचे गिर रही है। ये पाठकों पर ही निर्भर है कि वे रेटिंग और क्रेडिट एजेंसिओं की विश्वसनीयता तय करें। ये पाठकों पर ही निर्भर है कि वे तय करें कि विपक्ष तर्कसंगत है या हताश। जहाँ तक आर्थिक स्थिति का सवाल है, ऐसा प्रतीत होता है कि रेटिंग एजेंसिओं, संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक निवेशकों ने अपना पक्ष चुन लिया है।

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