26 जनवरी 1992 को देशद्रोहियों के एक समूह ने श्रीनगर में लाल चौक पर कब्जा कर लिया और भारतीयों को वहां तिरंगा फहराने की चुनौती दी। चुनौती स्वीकार कर ली गई, प्रतिबद्ध भाजपा कार्यकर्ताओं के एक जुलूस ने दृढ़ता से चुनौती के फरमान को खारिज करते हुए तिरंगा फहरा दिया।
25 साल बाद, वही स्थल और वही मुद्दा था। केवल फरमान जारी करने वाला व्यक्ति बदल गया था। जब दुश्मनों की सेना ने कश्मीर के लाखों असहाय लोगों पर अपना आतंकी शासन स्थापित करने के लिए हमला किया, तब ये व्यक्ति वहां से भाग गया था। ये वही आदमी है, जिसने सर्जिकल हमलों की प्रामाणिकता पर संदेह करने में अरविंद केजरीवाल का साथ दिया। जब बुरहान वानी और सब्ज़ार अहमद भट जैसे खतरनाक आतंकवादियों को मारा गया तो वह खूब चिल्लाया था। उसने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को मुक्त कराने के विचार का मज़ाक उड़ाया। हाँ, हम जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख़ अब्दुल्ला के बारे में बात कर रहे हैं।
6 दिसंबर 2017: –
देशभक्तों ने कहा – मिशन संपन्न!
हां, 25 साल बाद, श्रीनगर के लाल चौक पर भारतीय तिरंगा गर्व से फहराया गया। कट्टर देशभक्तों के एक समूह ने, जिसमें मूल कश्मीरी और राजनीतिक दल शिवसेना के कश्मीरी गुट के कुछ उत्साही सदस्य शामिल थे। उन्होंने फारूख़ अब्दुल्ला को मुंह चिढाते हुए चुनौती को स्वीकार किया और लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का फैसला किया।
बुधवार की एक ठंडी सुबह, समूह ने ‘भारत माता की जय’ की गूंज के साथ लाल चौक पर तिरंगा फहराया।
बीएसएफ और सीआरपीएफ द्वारा लाल चौक में घंटा-घर पर ध्वज फहराए जाने की प्रथा को बंद करने के बाद, पुलिस 2009 से देशभक्तों को रोकने में सफल रही है। देशभक्तों का समूह न केवल लाल चौक में सभा करने में कामयाब रहा, बल्कि तिरंगा फहराने में भी सफल रहा।
हालांकि, इस कहानी का अंत सुखद नहीं था। इससे पहले कि वे प्रसिद्ध घंटा-घर पर तिरंगा फहरा सकें, अपनी ‘असफलता’ से शर्मिंदा होकर राज्य पुलिस ने समूह को गिरफ्तार कर लिया। इसके साथ ही शर्मिंदगी से बचने के लिए, यह दावा करते हुए कि समूह ने तिरंगा कभी नहीं फहराया, उन्होंने झूठी खबरें फ़ैलाने का भी सहारा लिया। यहाँ तक कि मीडिया ने भी अंधानुकरण किया और पूरी तरह से गलत अफवाहें फैलाईं, जैसे:-
http://www.asianage.com/india/all-india/071217/jk-attempt-to-hoist-tr-colour-at-ll-chowk-foiled.html
पर उनके लिए अफसोस की बात है क्योंकि वहाँ पर टाइम्स नाउ के कुछ पत्रकार भी मौजूद थे जिन्होंने लाल चौक पर तिरंगा फहराते हुए कार्यकर्ताओं के समूह का वीडियो रिकॉर्ड किया। वीडियो देखें: –
कश्मीर का स्वरूप बदल रहा है। अब तक 210 से अधिक आतंकियों को गोली मार दी गई है। पत्थरबाजी की घटनाएं अब दुर्लभ हो गयीं हैं। हाल ही में कश्मीरी लोगों ने, बंदूक की नोक पर बैंक को लूटने की कोशिश कर रहे आतंकवादियों को पत्थरों से मारा था। कुछ महीने पहले ही एक कश्मीरी पंडित महिला उसी स्थान पर गई और भारत की ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता को 70 साल पूरे होने के अवसर पर ललकारते हुए ‘भारत माता की जय!’ के नारे लगाए। यह कश्मीर में समाज के ठेकेदारों के लिए चेतावनी की घंटी है और ये उनके बयानों में भी दिखता है।
श्री फारूख़ अब्दुल्ला के बारे में बात करें तो यह सक्रिय राजनीति से उनके रिटायर होने का या स्वयं को बार-बार हँसी का पात्र बनने से बचाने का समय है। 2014 में सत्ता से बाहर होने के बाद फारूख़ अब्दुल्ला ने अक्सर मणि शंकर अय्यर को कड़ी टक्कर देते हुए सामाजिक आचरण के सभी नियमों को कलंकित किया है। जब कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर घाटी में लौटने के लिए उनसे बुलावा प्रस्ताव पेश करने की मांग की तो श्री अब्दुल्ला ने उलटे शब्दों में जवाब दिया, कि क्या उन्हें अपनी मातृभूमि पर लौटने के लिए पंडितों से ही भीख मांगने की आवश्यकता है। 2014 विधान सभा चुनाव में हारने के बाद भी इस व्यक्ति ने कुछ भी सीखने-समझने से इनकार कर दिया है और ज्यादातर अलगाववादियों के पक्ष में ही रहता है, कभी-कभी तो खुले तौर पर देशद्रोह की वकालत भी करता है।
तिरंगा फहराने के साथ ही कार्यकर्ताओं के छोटे से समूह ने न केवल श्री अब्दुल्ला को एक उचित जवाब दिया, बल्कि एक जोरदार और स्पष्ट संदेश भी भेजा है कि ‘इस देश में प्रत्येक राष्ट्रद्रोही के लिए हजारों राष्ट्रवादी हैं।’
अंततः शिवसेना के बारे में कुछ अच्छा लिखना वास्तव में अच्छा लगता है। एक राष्ट्रवादी पार्टी को कांग्रेस और तृणमूल की पसंद वाली गप्पें हांकते देखना अत्यंत दर्दनाक रहा है। ऐसे कार्य के साथ लोग शिवसेना को जोड़ते हैं। हमें उम्मीद है कि वे उन आदर्शों पर वापस होंगे, जिनके साथ बाला साहेब ने पार्टी की स्थापना की।