गुजरात चुनाव दिलचस्प तो है ही लेकिन कई मायनों में महत्वपूर्ण भी है बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए। इसीलिए दोनों पार्टी इस चुनाव में पूरी ताकत झोंकती दिखाई दी। गुजरात चुनाव पिछले 25 सालों में कभी भी इतने दिलचस्प नहीं रहा न ही मीडिया इसे सीरियसली लेती रही है क्योंकि अब तक नतीजे आने के पहले हर कोई परिणाम जानता था। चुनाव कांग्रेस और मुख्यमंत्री मोदी के बीच ही हमेशा रहा लेकिन इस बार कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण लेकर आये हार्दिक, जिग्नेश, अल्पेश की तिकड़ी तो राहुल गाँधी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी चुनाव प्रचार में और धुआंधार प्रचार कर डाला।
इस बार गुजरात चुनाव में नयी बात जो देखने को मिली वो यह की कांग्रेस का मंदिर प्रेम, हिन्दू प्रेम, न मुस्लिमों का जिक्र न उनके हक़ की बात, न टोपी का दिखावा न मस्जिदों में नमाज यह इसलिए भी बहुत ज्यादा दिलचस्प था क्योंकि अब तक देश ने इसी कांग्रेस को हमेशा प्रभु श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण, रामसेतु, राम के अस्तित्व और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का विरोध करते ही देखा है तो ऐसे में राहुल का अचानक से 2002 का रोना रोये बिना सीधे मंदिर-मंदिर माथा टेकना गले नहीं उतर रहा है। जब पिछले 2 महीनों से लगातार राहुल ने पूरी मेहनत से मंदिरों में माथा टेक सॉफ्ट हिंदुत्व के तरफ अपना रास्ता मोड़ा ही था की कपिल सिब्बल ने श्रीराम मंदिर के लिए अयोध्या मामले की सुनवाई में जो किया उसमें राहुल की महीनों की तपस्या पर पानी फिर गया।
कपिल सिब्बल की मामले को 2019 के लोकसभा चुनाव तक टालने की अजीब-सी मांग
सिब्बल ने कोर्ट से मांग की कि मामले की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद की जाए। उन्होंने दलील दी कि सुनवाई का 2019 के आम चुनाव पर असर पड़ सकता है। इस पर केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि सरकार मामले की रोजाना सुनवाई के पक्ष में है। सुन्नी बोर्ड के दूसरे वकील राजीव धवन ने कहा कि अगर मामले की रोज सुनवाई हो तो सुनवाई पूरी होने में एक साल लगेंगे।
कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था की अयोध्या मामले में अदालती फैसले का बड़ा राजनितिक असर होगा लिहाजा सुनवाई को जुलाई 2019 तक डाल दिया जाए। चूँकि कपिल सिब्बल कांग्रेस के बड़े नेता है और कांग्रेस इस मामले में पक्षकार नहीं है और जो पक्षकार है यानी सुन्नी वक्फ बोर्ड वो मामले की सुनवाई जल्द चाहती है तो ऐसे में सवाल यह उठता है कपिल सिब्बल किसके कहने से मामले की सुनवाई टलवाना चाहते है। क्या वो कांग्रेस की बात यहाँ रख रहे है या अपने मुवक्किल की। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने आरोप लगाया की एक तरफ तो राहुल गाँधी मंदिर मंदिर घूम रहे है और दूसरी तरफ राम मंदिर का मामला लटकाने के लिए कपिल सिब्बल को आगे कर रहे है। कांग्रेस ने सिब्बल की दलीलों को वकील के तौर पर उनकी निजी राय बताकर मामले से पल्ला झाड़ना चाहा लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने सिब्बल और पूरी कांग्रेस पार्टी को आड़े हाथों लिया।
उत्तर प्रदेश चुनाव के बावजूद तीन तलाक पर हमने स्पष्ट किया अपना स्टैंड: प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने कहा कि जब तीन तलाक का मसला सुप्रीम कोर्ट में था और सरकार ने इस पर अपना हलफनामा दाखिल किया तो अखबारों ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यूपी चुनावों के मद्देनजर मैं इस पर खामोश रहूंगा। लोगों ने भी मुझसे कहा कि इस मुद्दे पर नहीं बोलिए क्योंकि चुनावों में नुकसान हो सकता है। लेकिन मैंने स्पष्ट कर दिया कि मैं इस पर चुप नहीं रहूंगा। हर चीज चुनाव के लिए नहीं होती। यह मुद्दा महिलाओं के अधिकारों से जुड़ा है चुनाव बाद में आते हैं लेकिन मानवता पहले आती है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल के इस बयान पर मचे बवाल के बीच गुजरात की एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि साल 2019 का कांग्रेस को लड़ना है या फिर सुन्नी वक्फ बोर्ड को? साथ ही उन्होंने कहा कि ‘मुझे इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है कि कपिल सिब्बल मुस्लिम समुदाय की तरफ से लड़ रहे हैं पर वह यह कैसे कह सकते हैं कि अगले चुनाव तक अयोध्या मामले का कोई हल नहीं होना चाहिए? इसका संबंध लोकसभा चुनाव से कैसे है?’
पढ़िए क्या है अयोध्या का पूरा मामला?
राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था। फैसले में कहा गया था कि विवादित भूमि को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए। लेकिन इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी और अब मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और इसकी सुनवाई जारी है।
सिर्फ चुनाव के वजह से अयोध्या विवाद को लटकाना कहा तक सही है?
सिब्बल अगर अयोध्या मामले को सिर्फ चुनाव के वजह से लंबित करना चाहते है तो जाहिर सी बात है इसमें उनके पक्षकार का पक्ष नहीं है क्योंकि इस मामले के सारे पक्षकार मामले का जल्द निपटारा चाहते है और कपिल सिब्बल की चुनाव के बाद निपटारा करने वाली यह दलील बड़ी बेतुकी इसलिए भी नजर आती है क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर दो महीने में किसी ना किसी राज्य में चुनाव आते है ऐसे में अगर चुनाव में ध्रुवीकरण को देखकर मामले को टाला गया तो वह दिन कभी नहीं आएगा जब चुनाव नहीं आने वाले हो और मामले की सुनवाई बड़ी शांतिपूर्वक की जा सके।
2018 में जहाँ कई राज्यों के और महापालिकाओं के चुनाव है वहीं 2019 में फिर लोकसभा का आम चुनाव है और फिर से पांच महत्वपूर्ण राज्यों के चुनाव है। इसके बाद 2020 में फिर से 4 प्रमुख राज्यों में चुनाव करवाए जायेंगे। अगर यही दलील चलती रही तो वो दिन कभी नहीं आने वाला जिस साल राम मंदिर मसले की स्पष्ट सुनवाई हो सके।
दरअसल कांग्रेस का खुद का राम मंदिर निर्माण को लेकर पक्ष स्पष्ट नहीं है ऐसे में कांग्रेस अच्छी तरह जानती है की अगर राम मंदिर पर फैसला 2019 के पहले आता है तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को जायेगा और एक बार फिर बीजेपी बहुमत की सरकार बनाने में सफल हो सकती है यही मुख्य वजह है की सिब्बल सुन्नी वक्फ बोर्ड की दलील से किनारा कर कांग्रेस पार्टी की दलील को कोर्ट के समक्ष रख रहे है।
कांग्रेस गुजरात में मंदिर तो जा रही है लेकिन मंदिर बनने नहीं देना चाहती
अयोध्या के जमीन विवाद में कांग्रेस पक्षकार नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टलवाने की कोशिश के लपेटे में कांग्रेस आ चुकी है। मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल की इस दलील से पक्षकार हाजी महबूब ने भी किनारा कर लिया है कि सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई जुलाई 2019 में करें। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात की चुनावी रैलियों में कहना शुरू कर दिया है कि कांग्रेस राम मंदिर को भी चुनाव से जोड़ रही है।
कांग्रेस राम मंदिर मामले को लटकाना चाहती है। क्या अयोध्या का ये नया विवाद कांग्रेस के गले की फांस बन जाएगा? अगर मुवक्किल नहीं चाहते तो फिर किसके कहने पर सुनवाई टलवाना चाहते हैं कपिल सिब्बल?
राम मंदिर विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई तो 8 फरवरी तक टल गई, लेकिन मंगलवार को इस मामले में कपिल सिब्बल की दलीलों ने जो बवंडर खड़ा किया, वो अब टलता नहीं दिख रहा। अगर कांग्रेस गुजरात चुनाव बड़े अंतर से हारती है तो इसका बड़ा श्रेय श्रीमान कपिल सिब्बल को ही जाएगा!
खैर, इस मामले को राजनीति से दूर रखना चाहिए और इस मसले का जल्द निपटारा किया जाना चाहिए। कांग्रेस का राम मंदिर पर यह रुख दर्शाता है की कांग्रेस का मंदिर प्रेम बस एक ढकोसला है उसे न तो अयोध्या मसले की सुनवाई करवानी है न राम मंदिर बनने में कोई दिलचस्पी है लेकिन खुद को जनेउधारी हिन्दू कहने वाले राहुल गाँधी और उनकी कांग्रेस पार्टी का हिन्दू और श्रीराम विरोधी चेहरा एक बार फिर जनता के सामने आ गया तो एक बार फिर कांग्रेस के लिए गुजरात की डगर मुश्किल नजर आ रही है।
बदलते हुए मौसम का परवाना हूं मैं,
गुजरात में जनेउधारी हिंदु हूं तो यूपी बिहार में मौलाना हूं मैं !!