कर्नाटक विधानसभा चुनाव के चलते कांग्रेस पार्टी की कमियां और उनकी बुरी योजनाएं सामने आ रही हैं। उनकी हिंदुओं को बाटने के लिए लिंगायत समुदाय को एक अलग धर्म बनाने की साजिश पहले ही सामने आ चुकी है। अब रिपोर्ट्स की मानें तो यह दर्शाता है कि पार्टी में भाई-भतीजावाद आज भी बरकरार है। कांग्रेस नेताओं ने 224 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों की सूची में अपने करीबी रिश्तेदारों के नामों का प्रस्ताव दिया है। मौजूदा विधायकों और एमएलसी के रिश्तेदारों को टिकट देने के फैसले का पार्टी के अन्य नेता विरोध कर रहे हैं।
ऐसे में दो दिन के अंदर में अब राहुल गांधी तय करेंगे कि उन्हें टिकट दिया जाए या नहीं।
बेहतरीन कदम, ‘भाई-भतीजावाद’ को रोकने के लिए यह एक उत्कृष्ट कदम है! राहुल गांधी जोकि खुद चौथी पीढ़ी के राजकुमार हैं वो तय करेंगे कि अन्य राजकुमार और राजकुमारियों को टिकट मिलनी चाहिए या नहीं। कांग्रेस पार्टी की कर्नाटक में स्थिति विडंबनापूर्ण है और यह परिस्थिति हास्यास्पद!
न्यूज़ 18 के द्वारा एक्स्पोज़ की गयी एक सूची के मुताबिक, कुल 15 मंत्रियों की नजर अपने बच्चों और संबंधियों के लिए टिकट पर है। इस सूची में वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्दरमैय्या, गृह मंत्री आर रामलिंगा रेड्डी की बेटी, कोलार सांसद के एच मुनियाप्पा की बेटी, मार्गरेट अल्वा के बेटे, बी शंकरानन्द के दामाद और अन्य नेताओं के रिश्तेदारों के नाम शामिल है। ऐसा लगता है कि वरिष्ठ नेता अपने भाइयों और रिश्तेदारों के लिए टिकट सुरक्षित करने के लिए एक-दूसरे से ही विवाद कर रहे हैं।
कांग्रेस के उम्मीदवार चुनने की प्रक्रिया ने तब नया मोड़ लिया जब पूर्व मुख्यमंत्री एम वीरप्पा मोइली ने पीडब्लयूडी मंत्री महादेवप्पा का खुलकर विरोध किया। उनके ट्वीट ने सड़क ठेकेदारों और पीडब्ल्यूडी मंत्री के बीच संभावित संबंधों के संकेत दिए थे। अनुमान लगाया जा रहा है कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वर्तमान पीडब्ल्यूडी मंत्री एच सी महादेवप्पा वीरप्पा मोइली के बेटे की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे।
कर्नाटक कांग्रेस के नेता भी अपनी पसंद की सीटों के लिए जोर दे रहे हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया चाहते हैं कि उनके बेटे वरुण मैसूर से चुनाव लड़े ताकि वह अपनी जीत आसानी से सुनिश्चित कर सकें, रामलिंगा रेड्डी अपनी बेटी को जयनगर से लड़वाना चाहते हैं, और मार्गरेट अल्वा की नजर उत्तर कन्नड़ जिले की सिरसी सीट पर है। कुछ अन्य नेता अपने भाई और रिश्तेदारों को आसानी से जीते मिलने वाले निर्वाचन क्षेत्रों से सीट प्राप्त कराने की कोशिश में हैं। हालांकि, यह कांग्रेस पार्टी के भीतर लोकतंत्र के अस्तित्व पर गंभीर सवाल खड़े करता है, सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि जब तक उम्मीदवार जीत सकते हैं, तब तक इसमें कुछ गलत नहीं है। यह विडंबना है कि पार्टी उस लोकतंत्र के चैंपियन होने का दावा करती है जो पार्टी के भीतर बहुत ही कम है। इन सबके ऊपर राहुल गांधी अन्य वंशजों के भविष्य का फैसला करेंगे। कोई सोच भी नहीं सकता कि बिना वंशवाद की राजनीति के वह आज कहां होते। यह किसी से छुपा नहीं है कि कांग्रेस ने जबरदस्ती राहुल गांधी को एक नेता के तौर पर बढ़ावा दिया है। पार्टी में दूसरे योग्य नेताओं के होने के बावजूद कभी भी उन्हें अपने मेरिट के आधार पर अवसर नहीं दिए गए। कांग्रेस के भाई-भतीजावाद का ताजा उदाहरण कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव था जहां किसी को मौका नहीं दिया गया। उल्लेखनीय है कि पार्टी छोड़ने से पहले शहज़ाद पूनावाला ने खुलेआम भाई-भतीजावाद की आलोचना जिससे कांग्रेस पार्टी के अंदर घमासान मच गया था।
यह बात हैरान करती है कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने एक ऐसे नेता पर भरोसा जताया जिसने खुद को पार्टी के भीतर भाई-भतीजावाद का सबसे ज्यादा फायदा उठाया है। उम्मीद की जा रही है कि उम्मीदवारों की अंतिम सूची 15 अप्रैल को जारी की जाएगी।