हिंदुओं के लिए रामनवमी का दिन बहुत विशेष होता है। रामनवमी के पर्व को सभी हिंदू भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। पूरे देश में इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। या यूं कहें कि पूरा देश इस दिन भगवा रंग में रंग जाता है, रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जुलूस निकाले जाते हैं।
यहां तक कि पश्चिम बंगाल जहां आम तौर पर दबंगई, भ्रष्टाचार, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का ही माहौल होता है वहां भी रामनवमी के अवसर पर केसरिया सैलाब उमड़ पड़ा जब विभिन्न दक्षिणपंथी संगठनों ने श्री राम के लिए जुलूस निकाला। कहने की आवश्यकता नहीं है कि समाज के एक विशेष तबके को यह रास नहीं आया और समारोह का माहौल धार्मिक उन्माद के माहौल में परिवर्तित हो गया.
पहला मामला, पुरुलिया (स्रोत: Firstpost, Zee News)
रामनवमी जुलूस अपने चरमोत्कर्ष पर था। पुलिस की कड़ी निगरानी में भेल्दी गांव में यह जुलूस निकाला गया था। जुलूस खत्म होने के बाद जब राम भक्त भुरसा नामक अल्पसंख्यक वर्चस्व वाले गांव के मार्ग से लौट रहे थे तब जो हुआ वो खौफनाक था। जुलूस पूरा कर लौट रहे सभी लोगों पर अचानक कुछ अज्ञात बदमाशों ने पत्थर, पेट्रोल बम फेंकने शुरू कर दिए। इस हमले ने दो समूहों के बीच के तनाव को बढ़ा दिया। दोनों समूहों के बीच हिंसा बढ़ गयी। रिपोर्ट्स की मानें तो इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गयी जबकि सुब्रत पल जिले के डिप्टी एसपी समेत 5 पुलिसकर्मी घायल हो गए। हिंसा फ़ैलाने वाले अज्ञात बदमाशों को पकड़ने की जगह जुलूस में शामिल लोगों की अपील को सुने बिना ही आरएएफ के अधिकारीयों ने उनपर लाठीचार्ज शुरू कर दिया। रिपोर्ट्स की मानें तो इसमें 10 से ज्यादा लोग घायल हुए।
दूसरा मामला, रानीगंज हिंसा (स्रोत: इंडिया टुडे, डेक्कन क्रॉनिकल)
रानीगंज हिंसा पुरुलिया हिंसा से कहीं ज्यादा भयावह और हिंसात्मक थी। यहां जुलूस बजरंग दल, वीएचपी और दुसरे दलों ने मिलकर निकाली थी। ये जुलूस जैसे ही बर्धमान जिले के मुस्लिम इलाके में पहुंचा वहां जुलूस पर पत्थर, पेट्रोल बम और तलवारों से हमला कर दिया गया। इस दौरान कई दुकानों और घरों में आगजनी की घटना को भी अंजाम दिया गया। यही नहीं कुछ बदमाशों ने कई हिंदुओं को उनके घरों से निकालकर उन्हें जमकर पीटा। रामनवमी के पंडालो में तोड़-फोड़ भी की गयी। इस दौरान 4 लोग घायल हुए थे।
रानीगंज हिंसा के दौरान पिछले मामले की तरह पुलिस ने इस मामले में सख्ती दिखाते हुए हमलावरों को रोकने के प्रयास किये जिसमें एक आम नागरिक, आईपीएस अधिकारी और डिप्टी कमिश्नर अरिंदम दत्ता चौधरी समेत 4 पुलिसकर्मी घायल हो गए। इस हिंसा में डिप्टी कमिश्नर अरिंदम दत्ता चौधरी का दाहिना हाथ बम की वजह बुरी तरह से घायल हो गया था। उस वक्त के हालात पर एक अधिकारी ने कहा था, ‘आसनसोल-दुर्गापुर के डिप्टी कमिश्नर अरिंदम दत्ता चौधरी इस हिंसा में बुरी तरह से घायल हो गए हैं और उन्होंने इस हिंसा में अपना दाहिना हाथ खो दिया है। गंभीर हालत में उन्हें एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया है।”
रानीगंज हिंसा के सवेंदनशील मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने बयान में कहा था, ‘क्या कभी भगवान राम को तुमने तलवार के साथ देखा है? क्या भगवान राम ने कभी अपने भक्तों को अपने साथ हथियार रखने के निर्देश दिए हैं ?’ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस बेतुके बयान ने हिंदुओं के प्रति उनके दोहरे रवैये को उजागर किया। ये तो किसी से छुपा नहीं है कि अवैध तरीके से कैसे अप्रवासी बंगलादेशी खासकर रोहिंग्या पश्चिम बंगाल में रह रहे हैं और इनकी बढती जनसंख्या ने राज्य में हिंसा को बढ़ावा दिया है। जिस समय में मुख्यमंत्री को राज्य में सख्ती के साथ कानून व्यवस्था को दुरुस्त कर उसे मजबूत बनाने की कड़ी पर ध्यान देना चाहिए उस समय में ममता बनर्जी के असवेंदंशील बयान ने आग में घी डालने का काम किया।
हालांकि, ममता बनर्जी का ये बयान तो बस उनके राज्य में हिंदुओं के प्रति रवैये का एक छोटा सा नमूना था। पश्चिम बंगाल की पुलिस भी कथित तौर पर राज्य सरकार के साथ मिली हुई है और पीड़ितों के साथ अन्याय कर रही है। जब भी हिंसा होती है पुलिस उल्टा जुलूस में शामिल लोगों पर आरोप मढ़ती है कि वो जानबूझकर अल्पसंख्यकों के इलाके से गुजरते हैं और शांति भंग करते हैं। पुलिस दबंगों के खिलाफ कार्रवाई न करते हुए निर्दोषों पर लाठीचार्ज करती है। राज्य सरकार रामनवमी के अवसर पर जुलूस निकालने वाले लोगों पर तलवार और बन्दुक लहराकर शांति भंग करने का आरोप लगाती है। इसके साथ ही राज्य की बीजेपी महिला इकाई की प्रमुख लॉकेट चटर्जी के खिलाफ बीरभूम रैली के दौरान त्रिशूल के साथ हिस्सा लेने के जुर्म में मामला भी दर्ज किया गया है।
अगर हम मान भी लें कि ममता बनर्जी की हथियारों के साथ प्रदर्शन वाली बात को मान भी लें तो क्या मुस्लिम त्योहारों जैसे मुहर्रम और ईद-ए-मिलाद के बारे में भी यही बोलेंगी? आखिर हिंदुओं के त्योहारों के प्रति उनका कानून निष्पक्ष क्यों नहीं है ? हम ये कैसे भूल सकते हैं कि ये वही पश्चिम बंगाल है जहां धुलागढ़ और बशीरहाट हिंसा में पहले भी हिन्दुओं के साथ हिंसा हुई है और अब इस कड़ी में रानीगंज हिंसा का नाम भी जुड़ गया है।
देखा जाए तो रानीगंज हिंसा राज्य सरकार के कार्यों की नाकामी को दिखाती है, हिंदुओं को उनके पर्व को मनाने से रोकना पश्चिम बंगाल के संस्कृति कभी नहीं रही है। ममता बनर्जी को यह समझना चाहिए कि जो उनकी सरकार हिंदुओं के साथ अन्याय कर रही है वो पूर्णरूप से गलत है उन्हें जल्द ही सभी नागरिकों के प्रति एकरूपता की नीति अपना लेनी चाहिए। अगर उन्हें इसकी समझ जल्द ही नहीं आई तो हो सकता है कि ये उनकी राजनीतिक पारी की उलटी गिनती साबित हो।