ममता बनर्जी के दिल्ली दौरे ने तीसरे मोर्चे के गठन की अटकलों को तेज कर दिया है। यह तो साफ़ है कि ममता बनर्जी कई विपक्षी पार्टियों के संपर्क में हैं और वह खुद को तीसरे मोर्चे की मुखिया के रूप में देख रही हैं। इन सबके बीच राहुल गांधी से न मिलने की उनकी इच्छा ने उनकी प्रधानमंत्री बनने की काल्पनिक उम्मीदों को बढ़ा दिया है।
आम सहमति बनाने की प्रक्रिया में ममता बनर्जी ने कई राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से बातचीत का दौर जारी रखा है। जिसमें विपक्षी दल, एनडीए की दुखी गठबंधन सहयोगी पार्टी शिवसेना और एनडीए से अलग हो चुकीं पार्टी टीडीपी भी शामिल हैं। इसी बीच ममता बनर्जी ने बीजेपी के उन असंतुष्ट नेताओं से भी मुलाकात की जो अक्सर ही मोदी सरकार का विरोध करने की वजह से ख़बरों में बने रहते हैं।
ममता बनर्जी ने बुधवार रात यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी से मुलाकात की जिन्हें अपनी पार्टी के खिलाफ बगावत के लिए जाना जाता है।
अगर हम इन तीनों नेताओं को देखें तो पाएंगे कि तीनों में ही असंतोष की भावना एक समान है। अधिकतर राजनीति के पंडितों का मानना है कि यशवंत सिन्हा कभी टीम प्लेयर नहीं रहे हैं। यशवंत सिन्हा वीपी सिंह सरकार का हिस्सा थे लेकिन कैबिनेट रैंक नहीं मिलने से नाराज यशवंत सिन्हा ने शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा नहीं लिया था। सरकार में शामिल न किये जाने और पीछे हटने की वजह से मोदी सरकार के प्रति भी उनका दृष्टिकोण वही था। जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया था तब यशवंत सिन्हा ने आडवाणी का पक्ष लेते हुए गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी बैठक छोड़ दी थी। उनके पुत्र जयंत सिन्हा को मोदी सरकार में राज्य मंत्री बनाया जाने के बाद भी उनके विरोधी रवैय्ये में कोई कमी नहीं आयी। यशवंत सिन्हा का असली असंतोष तब सामने आया जब उनके ब्रिक्स बैंक के अध्यक्ष बनने की इच्छा पूरी नहीं हुई। अरुण जेटली ने उन्हें एक 80 वर्षीय नौकरी आवेदक के रूप में संदर्भित किया था। उन्होंने इसे अपने सम्मान पर चोंट समझा और फिर राष्ट्र मंच के नाम का मंच भी बनाया जो मोदी विरोधी नेताओं के लिए अपना गुस्सा व्यक्त करने का मंच बन गया।
बीजेपी मंत्रिमंडल के एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और मंत्री अरुण शौरी की कहानी भी ऐसी ही है। वास्तव में अरुण शौरी ने मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में स्वागत किया था। अरुण शौरी ने मोदी के प्रशासनिक कौशलता की प्रशंसा भी की थी, और कहा था कि शासन की प्रक्रिया में निर्णय लेने में मोदी के शीर्ष पर होने से लाभ होगा। कैबिनेट में उनको शामिल न किये जाने से नाराज अरुण शौरी ने अचानक से मोदी सरकार की आलोचना करनी शुरू कर दी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि, उनकी आलोचना प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ गहरी नफरत और व्यक्तिगत टिप्पणियों के रूप में नजर आने लगी थी। एक तरफ अरुण शौरी ने प्रधानमंत्री मोदी को तानाशाह बुलाया था और दूसरी तरफ उन्होंने टिप्पणी कर कहा था कि मोदी का पीएमओ इतिहास में सबसे कमजोर पीएमओ है! उन्होंने यह भी घोषित किया था कि नोटबंदी स्कीम एक घोटाला है, लेकिन उसी दौरान अरुण शौरी ने यह भी कहा था कि यह निर्णय एक तरह की जल्दबाजी का प्रतीक था। बिना किसी आधार के आलोचना करना मोदी सरकार के खिलाफ अरुण शौरी की नफरत को साफ़ जगजाहिर करता है और इसने उनकी छवि को भी धूमिल किया।
शत्रुघ्न सिन्हा हाल ही में राजद अध्यक्ष लालू यादव से जेल में मिले थे, जोकि उनकी पार्टी विरोधी गतिविधियों में से एक था। आडवाणी के समर्थक पूर्व फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा बीजेपी में मोदी-शाह के अध्यक्षता से खुश नहीं थे। हालांकि, बिहार में शत्रुघ्न सिन्हा को मुख्य उम्मीदवार के तौर पर जगह न मिलने की वजह से उनके अंदर गुस्सा था और मंत्रालय में पुरस्कार के रूप में कोई ख़ास जगह न मिलने की वजह से भी उनकी नाराजगी बढ़ी थी। शत्रुघ्न सिन्हा की सबसे बड़ी चिंता पटना साहिब निर्वाचन क्षेत्र को बरकरार रखना था। बीजेपी का टिकट न मिलने की बढ़ती संभावना के साथ पूर्व मंत्री का सीट जाने का डर बैठ गया और अब अरुण शौरी ने संकेत दिया है कि वह भाजपा को छोड़ना चाहते हैं।
गौर करने वाली बात है कि यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी तीनो ही पूर्व मंत्री रहे हैं, और पार्टी में उनके प्रति सम्मान की भावना थी। इसके बावजूद, उनकी लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियां और पद के लिए विवादित बयान ने उनके द्वारा अर्जित की गयी विरासत कम कर दिया है। उनकी हताशा में बढ़ोतरी हुई क्योंकि भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उनके प्रति चुपी और उदासीनता की भावना के साथ उन्हें दरकिनार कर दिया। इनमें से किसी को भी पार्टी से न बर्खास्त किया गया और न ही निकाला गया। बीजेपी की इस चाल से उनके द्वारा पार्टी पर किये जा रहे हमलों का कोई असर नहीं पड़ सका और उनकी गलतियों ने खुद को पीड़ित दिखाने की योजना को भी विफल कर दिया और उनके विफल प्रयासों को शहीद घोषित कर दिया गया।
क्या यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी का असर राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ेगा? सच कहें तो ममता बनर्जी से हाथ मिलाने से इन तीनों को ही कुछ हासिल नहीं होगा। कई पार्टियों को एकसाथ लाने के कठिन प्रयास में इन तीनों का अहंकार इस गठबंधन में और तड़का लगाएगा। दिलचस्प बात ये है कि तीनों नेताओं को ही इस बात की समझ है कि बीजेपी का विरोध करने के बाद भी वो अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा नहीं कर पाएंगे।
इस तीसरे मोर्चे के गठन में तीनो की उच्च पद की चाहत निश्चित रूप से और समस्या उत्पन्न करेगी। अवसरवादी कई विपक्षी पार्टियों का समूह मोदी सरकार पर कोई प्रभाव नहीं डाल पायेगी, इन तीनों नेताओं को इस मोर्चे में शामिल करने से नए गठन के समक्ष और समस्या ही खड़ी करेगी।
प्रस्तावित तीसरा मोर्चा किसी भी रूप में और शक्तिशाली नहीं बन पायेगा और इसमें और नेताओं के जुड़ने से यह और अधिक अस्थिर हो जायेगा। यह तीन दावेदार तीसरे मोर्चे के लिए संपत्ति से ज्यादा उनपर भार सिद्ध होंगे। भाजपा के दिग्गजों के साथ तीसरे मोर्चे को जल्द ही अपना मार्गदर्शी मंडल के रूप में संस्करण मिल जायेगा।