पश्चिम बंगाल में रामनवमी के अवसर पर कुछ अराजक तत्वों ने हिंसा की घटना को अंजाम दिया है। दरअसल, रामनवमी के अवसर पर पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले में बीजेपी कार्यकर्ताओं की ओर से लगाए गए रामनवमी पंडाल पर कुछ बदमाशों ने हमला कर दिया। इस शर्मनाक घटना में 4 लोग घायल हो गए। पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है जबकि बीजेपी का कहना है कि यह हमला पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने किया है।हर बार की तरह इस बार भी पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के उत्सव ने टीएमसी और सीपीएम की रातों की नींद उड़ दी। बीजेपी पश्चिम बंगाल में एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जिसने राज्य में बंगाली हिंदुओं के मन में एक बेहतर राजनीति की उम्मीद को जागृत किया है। यही कारण है कि रामनवमी राजनीति का केंद्र बिन्दु बन गया और
इस अवसर पर सीपीएम ने त्यौहार की पूर्व संध्या पर एक रैली करने की योजना बनाई। बीजेपी ने भी रामनवमी के अवसर पर एक रैली का आयोजन किया था। हालांकि, ममता बनर्जी की सरकार ने हिंदुओं के उत्सव के मौके पर इन रैलीयों में रंगारंग जुलूस के लिए साफ़ मना कर दिया था। ममता बनर्जी हमेशा से ही तुष्टिकरण की राजनीति करती आयीं तो ऐसे में हिंदुओं के उत्सव के मौके पर वो राजनीति कैसे न करती। इसके साथ ही ममता ने रैलीयों में रंगारंग जुलूस के लिए मनाही पर कहा कि हम राम नवमी का जुलूस रखने वाले संगठनों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें शांतिपूर्ण होना होगा।
हालांकि, समझने वाली बात ये है कि जिन तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने रामनवमी के पंडाल में तोड़-फोड़ की भला वो कैसे पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक सौहार्द और शांति को बढ़ावा देंगे? अगर हम गौर करें तो पाएंगे कि रामनवमी के अवसर पर ममता सरकार द्वारा अवरोध उत्पन्न करना उनकी राजनीति का एक हिस्सा है। राज्य में मई के महीने में पंचायत चुनाव होने वाले हैं और ममता बनर्जी का राज्य के हिंदुओं के प्रति दोहरा रवैया उनके लिए खतरा बनता जा रहा है। हिंदुओं के पर्व के मौके पर अक्सर ही ममता बनर्जी सरकार ने तानशाही रवैया अपनाया है और हिंदुओं के उत्सव के मौके पर उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया है। उनके इस रवैये से बंगाली हिन्दुओं में उनकी लोकप्रियता तो कम हुई है और उनको लेकर हिन्दुओं में आक्रोश भी बढ़ा है।
सीपीएम पहले ही राज्य में अपने समर्थन का आधार खो चुकी है और यही वजह है कि बीजेपी को इन परिस्थितियों का लाभ मिल सकता है। ऐसे में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने रामनवमी के अवसर पर पंडाल लगाया तो राज्य की वर्तमान सरकार ने कुछ अराजक तत्वों की मदद से अराजकता फैलाई। दरअसल, ममता सरकार को समझ आ गया है कि उनकी सरकार द्वारा हिंदुओं को दबाने और राज्य में बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता कहीं उनकी सरकार के लिए खतरा न बन जाए। वैसे ये डर लाजमी भी है क्योंकि बीजेपी ने त्रिपुरा में कई सालों से शासित लेफ्ट के किले को ढहाते हुए सत्ता हासिल कर इतिहास रचा था। ऐसे में ममता बनर्जी के लिए बीजेपी खतरे की घंटी साबित हो सकती है। किसी भी राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वो राज्य के सभी नागरिकों को सम्मान आजादी दे और सभी को सम्मान हक़ लेकिन तृणमूल कांग्रेस की सरकार ने राज्य में भेदभाव का रवैया अपनाया। रामनवमी के अवसर पर हिंसा की घटना ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि ममता के राज्य में हिन्दू कितने असुरक्षित हैं। यदि हिंदू अपने मौलिक अधिकारों के तहत अपने पर्व को मनाता है तो पश्चिम बंगाल की सरकार उनपर खुलेआम हमले करवाती है और उन्हें त्यौहार मनाने से रोकती है। राज्य की सरकार दबंगों को सजा देने की बजाय हिंदुओं पर प्रतिबंध लगाना ज्यादा उचित समझती है।
ये पहली बार नहीं है जब पश्चिम बंगाल सरकार के कार्यकर्ताओं की दबंगई सामने आई है इससे पहले भी रामनवमी और मूर्ति विसर्जन के दौरान झड़प की खबरें आयीं हैं। पिछले साल ममता बनर्जी ने मोहर्रम के दिन मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी थी तब हाईकोर्ट को मूर्ति विसर्जन के मामले में दखल देना पड़ा था। अगर आप गौर करें तो बीजेपी कार्यकर्ताओं पर टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा हमला करने की यह घटना भी पहली बार नहीं है इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं सामने आयीं हैं। पिछले साल जनवरी में टीएमसी कार्यकर्ताओं ने बीजेपी दफ्तर पर हमला किया था लेकिन ममता बनर्जी ने पार्टी के दबंगों पर लगाम कसने की जगह बीजेपी को ही इसके लिए जिम्मेदार बताया था। टीएमसी का राज्य में अपनी सत्ता खोने का डर ही इसकी वजह है कि वो बीजेपी को निशाना बनाने का कोई अवसर नहीं छोड़ती है। राज्य सरकार द्वारा हिंदुओं के दमन ने हिन्दुओं में असंतोष की भावना को बढ़ावा दिया है ऐसे में बीजेपी पार्टी हिंदुओं में एक उम्मीद पैदा करती है और इस उम्मीद ने टीएमसी के मन में खतरे की घंटी बजा दी है।