पिछले एक साल में योगी आदित्यनाथ सबसे चर्चित रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री न सिर्फ राज्य में बल्कि पूरे देश में अपने संगठित अपराधियों के खिलाफ लड़ाई के लिए मशहूर हुए। योगी आदित्यनाथ के सुर्ख़ियों में आने के बाद उत्तर प्रदेश की पुलिस ने भी पूरे जोश से अपराधियों की धड़-पकड़ को तेज कर दिया है। पूर्व शासन की तुलना में प्रदेश की कानून व्यवस्था दुरुस्त हुई है।
आश्चर्य की बात है कि इसके बावजूद प्रदेश की वर्तमान व्यवस्था आलोचनाओं से मुक्त नहीं है। कुछ राजनीतिक वर्ग और मुख्यधारा की मीडिया मानवाधिकार के समर्थकों की आड़ में सवाल करती है कि आखिर क्यों प्रदेश सरकार दबंगों को स्थापित करने में लगी है ? मानवाधिकार की आड़ में ये सभी अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। वर्तमान सरकार को एंटी-क्राइम विधेयक पास करने में विपक्ष के खिलाफ कड़ा संघर्ष करना पड़ा था।
विधेयक का नाम था यूपी कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम बिल (यूपीसीओसीबी) 2017 जोकि महाराष्ट्र संगठित अपराध अधिनियम (मकोका) की तर्ज पर बनाया गया है। यह विधेयक पिछले साल 21 दिसम्बर को विधानसभा (निचले सदन) द्वारा पारित किया गया था।
हालांकि, राज्य में विधान परिषद में विपक्ष बहुमत में था जिस वजह से परिषद् के द्वारा इस विधेयक को पारित होने से रोक दिया गया था लेकिन विपक्ष द्वारा झूठे और आधारहीन आरोपों के बावजूद ऐसा लग रहा था कि योगी सरकार आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में हार नहीं मानेगी। विपक्षी दलों के कड़े विरोध के बावजूद विधेयक को एक बार फिर से विधानसभा में पेश कर एक दिन पहले ही पास कर दिया गया, विपक्ष ने विधेयक पर मंचन करते हुए आरोप लगाये थे कि यह पारित किया विधेयक क्रूरता से भरा है।
यह शर्म की बात है कि कैसे विपक्षी पार्टी जो अपने शासनकाल में राज्य में अपराध पर नियंत्रण पाने में विफल रही थीं वहीं वर्तमान सरकार के अपराध के खिलाफ लड़ाई को रोकने का हर संभव प्रयास कर रही है।
यूपी कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम बिल (यूपीसीओसीबी) को एक क्रूर विधेयक बताना शायद प्रदेश सरकार के अपराध के खिलाफ लड़ाई को रोकने की विपक्ष की विफल रणनीति थी। यूपी कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम बिल (यूपीसीओसीबी) का मकसद है विशेष न्यायालयों का गठन और विशेष अभियोजकों की नियुक्ति तथा संगठित अपराध के खिलाफ दर्ज मामलों की तुरंत सुनवाई और सख्त सजा का प्रावधान करना। यह सिर्फ उन संगठित अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए है जो अपराध को बढ़ावा देते हैं।
यूपी कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम बिल (यूपीसीओसीबी) का मुख्य उद्देश्य अवैध खनन माफिया, अपहरण करने वाले अपराधियों आदि पर शिकंजा कसना है। विधेयक में संगठित अपराध के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। देश में कई अदालतों द्वारा पारित फैसलों के बाद यह विधेयक पूरी तरह योग्य है जो खासकर कम समय में ही अपराधियों को बेहतर सजा देगा। बस जरुरत है तो इसका कानून के आधार पर उचित वर्गीकरण करने की। यह सिर्फ कठोर अपराधियों के खिलाफ ही कार्य करेगी न की आम जनता के खिलाफ। यही वजह है कि इस विधेयक में कुछ भी अनुचित, कठोरता या मनमानी जैसी कोई बात नहीं है।
अपने राजनीतिक फायदे के लिए विपक्ष द्वारा इस महत्वपूर्ण विधेयक को पारित होने से रोका जाना कोई नयी बात नहीं है लेकिन इस मामले में एक ख़ास बात है। इस विधेयक के पास होने से उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी ताकत का इस्तेमाल कर गुपचुप तरीके से लेन-देन की प्रक्रिया पर जरुर रोक लगेगी।
विपक्ष अपराधियों के खिलाफ लाये गए इस मजबूत विधेयक से परहेज इसलिए भी कर रहा है क्योंकि वह अपनी राजनीतिक क्षमता का गलत इस्तेमाल करते हैं। वह उत्तर प्रदेश को अपराध मुक्त नहीं करना चाहते।
शायद, विपक्ष अपराध मुक्त उत्तर प्रदेश की कल्पना से ही डरता है, यही वजह है कि विपक्ष ने इस विधेयक का कड़ा विरोध करना शुरू कर दिया जो आपराधिक गिरोह और राज्य में सक्रिय माफियाओं से लड़ने में जुटी एजेंसियों को बड़े तौर पर गति देने का वादा करता है।