भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ राजनीतिक रूप से प्रेरित महाभियोग प्रस्ताव को पास करने की कोशिश में लगी कांग्रेस पार्टी को चारों तरफ से आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। महाभियोग प्रस्ताव को तकनीकी और कानूनी आधार पर राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने ख़ारिज कर दिया। कांग्रेस ने बेसब्री से अपने लक्ष्य को साधने के लिए इस आधारहीन प्रस्ताव को शुरू किया था लेकिन उल्टा कांग्रेस को ही इस प्रस्ताव से नुकसान पहुंचा है। अब इस पार्टी के पास न सत्ता है न इतनी ताकत जिससे वो अपने मंसूबे में कामयाब हो सके, लेकिन सत्ता की भूखी पार्टी जनता का ध्यान अपनी ओर करने के लिए किसी भी हद्द तक जा सकती है। न्यायपालिका की छवि खराब करने और अनावश्यक रूप से मामले को राजनीतिक रूप देने का प्रयास कर रही कांग्रेस की हर स्तर पर आलोचना हो रही है।
इस बार भारत के लोकप्रिय न्यायवादी राम जेठमलानी और हरीश साल्वे ने इस महाभियोग का नेतृत्व कर रही कांग्रेस समेत सात दलों को आड़े हाथों लिया है।
अरनब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी पर बातचीत के दौरान दो बार केन्द्रीय मंत्री और राज्यसभा उप अध्यक्ष रह चुके देश के जानेमाने वकील राम जेठमलानी ने जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ चल रही राजनीति पर अपनी पूरी भड़ास निकाली। उन्होंने कांग्रेस द्वारा न्यायपालिका में अनावश्यक दखल देने पर एक के बाद एक प्रहार किये। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने ऐसा क्या गलत कर दिया है कि उनके खिलाफ महाभियोग चलाया जा रहा है। उनके मुताबिक, दीपक मिश्रा के चीफ जस्टिस बनने से पहले भी कथित घटनाएं हुई थीं जिन्हें विवाद का विषय बनाया गया था। ऐसा लगता है कि राम जेठमलानी उस वक्त तक दुखी थे जो चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के पद संभालने से पहले मामले की जांच के लिए बर्बाद किये गये थे। उन्होंने ये स्पष्ट कर दिया कि विपक्ष द्वारा लगाये गये आरोप निराधार थे और इसके पीछे सिर्फ राजनीतिक साजिश शामिल है।
राम जेठमलानी राहुल गांधी की ‘#सेव द कॉन्स्टिट्यूशन रैली’ और कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर लगाये गये आरोपों को हास्यास्पद बताया। राम जेठमलानी ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा, “वह (राहुल गांधी) हमारे इतिहास के बड़े मुद्दों पर बोलने के लिए अभी बहुत ही छोटे हैं और आपको उनके द्वारा कही गयी किसी भी बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए। वो इस तरह की टिप्पणी करने के योग्य नहीं है।” इससे जाहिर हो जाता है कि 90 वर्षीय न्यायमूर्ति ने कांग्रेस द्वारा स्थापित न्यायिक आजादी को बारीकी से देखा है। जेठमलानी ने इस महाभियोग के प्रस्ताव के पीछे की वास्तविकता को भांप लिया जो मात्र राजनीतिकरण का हिस्सा है। जबकि उनके द्वारा इस मामले के प्रति अस्वीकृति की गहराई में जायें तो प्रसिद्ध वकील ने बताया कि चूंकि इस अपमानजनक याचिका को पेश करने वाले सांसद खुद इस याचिका को लेकर आश्वस्त नहीं थे तो ये पूरा मामला सिर्फ संदेह और धारणा पर ही आधारित था। इस तरह के ‘संदेह सबूत के प्रमाण’ नहीं देते हैं। इसीलिए, संदेह से भरा ये प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया गया।
एक और प्रतिष्ठित न्यायमूर्ति हरीश साल्वे ने भी भारत के चीफ जस्टिस के पद पर राजनीतिकरण करने वाली कांग्रेस पर हमला बोला। जब 21 अप्रैल को महाभियोग प्रस्ताव शुरू किया गया था तब भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा तीन वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के अधिग्रहण मामले में समानता पायी। उस वक्त उन्होंने केशवानंद भारती मामले में अनुकूल फैसले का जिक्र नहीं किया। उन दिनों में न्यायाधीशों के प्रति कांग्रेस का दृष्टिकोण सम्मानजनक नहीं था और तब कांग्रेस इस हद्द तक गिर चुकी थी कि उसे अपने दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य को सामने रखने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को सामान्य सरकारी कर्मचारियों के रूप में देखते हुए, सरकार ने कहा था कि कुछ न्यायाधीश “सरकार की विचार प्रक्रिया” में शामिल नहीं हैं।
सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की करीबी सहयोगी और सोशल मीडिया प्रभारी दिव्या स्पंदना द्वारा चीफ जस्टिस पर ‘बेंच फिक्सिंग’ का शर्मनाक आरोप लगाया था जिसके बाद हरीश साल्वे ने इसपर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए सभी आरोपों को ख़ारिज कर दिया था। लगता है हरीश साल्वे चीफ जस्टिस के खिलाफ इस तरह के शर्मनाक और राजनीतिकरण वाले आरोपों से बहुत ज्यादा गुस्से में थे। असल में दिव्या स्पंदना ने मामले से संबंधित एक सूची साझा की थी जिसमें उनपर ‘बेंच फिक्सिंग’ का भी आरोप शामिल था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वह चीफ जस्टिस पर लगाये गये इन आरोपों का एक भी सबूत पेश करने में नाकाम रहीं। इस गैर-जिम्मेदार बयान पर हरीश साल्वे ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, उन्होंने इस तरह के मामले को कोर्ट की अवमानना बताया और कहा कि जो भी इस तरह के अपराध में शामिल हैं उनपर कार्रवाई होगी।
तथ्य ये है कि भारत के दो लोकप्रिय वकीलों और विशेषज्ञ ने महाभियोग प्रस्ताव मामले में अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी जिससे ये बात सामने आ गयी कि कांग्रेस किस तरह से न्याय व्यवस्था को नुकसान पहुँचाने के लिए कार्य करती है। कांग्रेस के महाभियोग के प्रस्ताव के पीछे का असली इरादा सिर्फ राजनीतिकरण था जो चीफ जस्टिस द्वारा लिए गये सही फैसलों का बदला लेना था। हालांकि, दोनों ही लोकप्रिय वकीलों ने कांग्रेस पार्टी की घृणित राजनीति को सामने रख दिया है। कांग्रेस चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न करले लेकिन इस घृणित राजनीति से जो छवि उसने अपने लिए बनाई है वो बदल नहीं पाएगी।