हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी ऐसा मुद्दा है जिसपर सबसे ज्यादा बहस होती है। और ऐसा हो भी क्यों न, खासकर वहां जहां अरबों की आजादी वाले देश में जहां विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि वाले लोग रहते हों।देश के उत्तरी भाग के लोगों के लिए जो टिप्पणी अपमानजनक है, हो सकता है कि वो दक्षिणी हिस्से में रहने वाले लोगों के लिए आम बात हो या इसके विपरीत भी हो सकता है। जो एक चीज भारत और भारतीय लोगों ने कभी दिल पर नहीं लिया वो है हास्य। प्रैंकस्टर्स, कॉमेडियन और कलाकार लोगों का मजाक बनाने में माहिर होते हैं और इससे वे लोगों का मनोरंजन करते हैं। वे आम लोगों के साथ साथ बड़े बड़े दिग्गजों को भी नहीं छोड़ते हैं और हमारी रोज की आम जिंदगी को हंसी से सराबोर करने की पूरी कोशिश करते हैं।
परन्तु एक बहुत ही आश्चर्यचकित कर देने वाली घटना सामने आयी है, दरअसल, मूदबिदरीके रिटर्निंग ऑफिसर वी. प्रसन्ना ने श्री केतली दुर्गापरमेश्वरी प्रसिद्ता यक्षगान मंडली (समूह) को नोटिस जारी किया था, जिसके कलाकारों ने केरल में आयोजित एक समारोह में प्रदर्शन किया था। दरअसल, पूर्नेश आचार्य नामक एक कलाकार ने एक अप्रैल को पद्म, कन्नूर में प्रदर्शन के दौरान राहुल गांधी के डायलॉग की नकल की और कथित तौर पर कर्नाटक राज्य सरकार के नारे का इस्तेमाल किया था। इस पूर्वकथित घटना का एक वीडियो क्लिप फेसबुक और व्हाट्सएप पर वायरल हो गया जिसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर ने इसपर संज्ञान लेते हुए मंडल को नोटिस जारी कर दिया। इस कलाकार को मंगलवार को नोटिस मिलने के बाद मंडली द्वारा निलंबित कर दिया गया। श्री दुर्गापरेमश्वरी मंदिर कर्नाटक के राज्य सरकार के एंडोमेंट डिपार्टमेंट के अंतर्गत आता है। चुनाव आयोग के अधिकारीयों ने इस कदम का इस्तेमाल पूर्नेश को सरकारी कर्मचारियों के विस्तारित जाल के अंदर फंसाने के लिए किया। चुनाव आयोग के आचार संहिता के अनुसार चुनाव से पहले उनका यह कदम सही था। लेकिन क्या यह नैतिकता है ?
यक्षगान कर्नाटक का एक पारंपरिक थिएटर है जो रामायण, महाभारत और दूसरी हिंदू और जैन कथाओं को नृत्य और संगीत के द्वारा दिखाते हैं। ये कभी राजनीतिक और सामाजिक संबंधी चीजों को नहीं दिखाते। यहां तक कि पी.आचार्य जिस भूमिका को निभा रहे थे वो एक हास्यपूर्ण प्रकृतिदूत की भूमिका थी। इस मामले में चुनाव आयोग के अधिकारियों की सतर्कता की सराहना करते हुए हमें एक सवाल जरुर पूछना चाहिए कि क्या इस मामले में एक कलाकार जो दूसरों को हंसाने के लिए वेतन पाता हो उसे नोटिस जारी करना सही था ? कम वेतन और न के बराबर मिलने वाला लाभ जोकि इन कलाकारों को दिया जाता है वो इनके लिए पर्याप्त नहीं होते।
हम चुनाव आयोग के अधिकारीयों के दावों का खंडन नहीं करते, हालांकि, हम फिर भी उस कलाकार के साथ खड़ा होना चाहेंगे जो सिर्फ अपना कार्य कर रहा था। शायद लोगों को हंसाने के चकर में वो ज्यादा ही दूर निकल गया लेकिन क्या वह पहले ही इस तरह के नियमों से अवगत था? क्या वह जानता था कि जैसे ही चुनाव की तारीख तय होती है आचार सहिंता लागू हो जाती है? इस मामले में एक दूसरा समाधान तो समूह को एक साधारण चेतावनी और या उन्हें इस बारे में याद दिलाकर भी किया जा सकता था, अधिकारिक नोटिस के बजाय एक नर्म फटकार भी इसके लिए काफी थी। हालांकि, अन्य राज्यों की सरकार कलाकारों के समर्थन के लिए शायद एक कदम पीछे हट भी सकती है लेकिन इस मामले में कर्नाटक में सिद्धारमैया की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार से इस तरह की उम्मीद करना शायद बहुत ज्यादा हो जायेगा।