कश्मीर में गर्मियों के आगमन के साथ कुछ अवांछित आंगतुकों की घुसपैठ भी बढ़ जाती है। वर्ष 2018 की गर्मी भी कुछ अलग नहीं थी। बर्फ के पिघलने के साथ सीमापार पर बंदूकधारी आतंकियों की गतिविधि तेज हो जाती है। कश्मीरी युवाओं की मानसिकता को कट्टरपंथी बनाने के मकसद को पूरा करने के लिए ये आतंकी वर्षों से सीमा के नजदीक विकास और प्रगति कार्यों में बाधा डालते रहे हैं ताकि स्थानीय समर्थन पाने की कोशिश में कामयाब हो सकें। युवाओं को धन और शक्ति की झूठी कहानियां सुनाकर आकर्षित करना इनका लक्ष्य होता है ताकि वह उन्हें शिक्षा और व्यवसाय के माध्यम से मिलने वाले समृद्ध जीवन से अलग कर सकें। ये आतंकी दुनिया के सामने देश की छवि को बिगाड़ना चाहते हैं। वैसे इस कहानी में अभी तक कुछ नयापन नहीं है। यह कहानी सालों से एक ही तरीके से खुद को दोहरा रही है। इस वर्ष यह कहानी थोड़ी अलग लगती है, दक्षिण में शोपियां, अनंतनाग और दक्षिण कश्मीर के अन्य क्षेत्रों में इसकी अच्छी शुरुआत हुई है।
कश्मीर के शोपियां जिले में 4 मार्च को हुई घटना से शुरुआत करते हैं जहां 2 लश्कर-ए-तैयबा समेत 4 संदिग्ध नागरिकों की मौत हुई थी जिनपर आतंकियों के लिए काम करने का शक था, देखा जाए तो मार्च महीने में में घाटी में कई आतंकियों का खून बहा है। इसके बाद 12, 20 और 21 मार्च को कई आतंकियों को मौत के घाट उतारा गया था। ये कहानी का अंत नहीं था। यह मुठभेड़ और टकराव पूरे महीने लगातार जारी रहा, आतंकवादियों ने 29 मार्च को पुलिस कर्मियों और उनके परिवार के सदस्यों पर हमले किये, इस दौरान एक पुलिसकर्मी की पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गयी थी। आतंकियों को बन्दूक की भाषा समझ आती है और इन हमलों के बाद जरुरी हो गया था कि उन्हें उसी भाषा में मुंहतोड़ जवाब दिया जाए।
1 अप्रैल को दक्षिण कश्मीर में भारतीय सेना ने 3 अलग-अलग मुठभेड़ में उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया गया जिसमें 11 आतंकी मार गिराए गए जबकि एक को जिंदा पकड़ लिया। वे सभी स्थानीय ही थे। इनमें से 2 पिछले साल लेफ्टिनेंट उमर फैज की हत्या में शामिल थे। शोपियां के सुगण गांव के द्रगड़ इलाके में आतंकवादियों के खिलाफ मुठभेड़ में सीआरपीएफ, राष्ट्रीय राइफल्स और ज़ैनपोरा पुलिस ने मिलकर 11 में से 7 आतंकियों को मार गिराया।
दूसरी मुठभेड़ में शोपियां के कचदूरु इलाके में तीन आतंकियों को ढेर किया गया। वहीं, तीसरी और आखिरी मुठभेड़ अनंतनाग के दायलगाम में हुई जहां एक आतंकी को ढेर किया गया। ये मुठभेड़ साबित करते हैं कि घाटी में विद्रोह ख़त्म करने के केंद्र सरकार के फैसले पर भारतीय सशस्त्र बल पूरी उर्जा के साथ काम कर रहा है। हिजबुल मुजाहिदीन जैसे ताकतवर संगठन के तार अब समय के साथ कमजोर पड़ रहे हैं। कश्मीरी युवाओं में आतंक के खिलाफ विमुखता मजबूत हो रही है और सुरक्षा बल भी आतंक के खिलाफ स्ट्राइक के लिए तैयार हैं। घाटी में ऐसी घटनाओं से क्या बड़े बदलाव होंगे? क्या कभी विद्रोह खत्म होगा? क्या मानवता और ‘कश्मीरियत’ फिर से जी उठेगी या फिर घाटी में 215 आतंकवादियों की कथित उपस्थिति मुठभेड़ के साथ और बढ़ेंगे?
इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में जरुर मिल जायेंगे। खैर, भारतीय सेना और सरकार के प्रयास तो यही लगता है कि वे आतंक को जड़ से उखाड़ फेंक कश्मीर में पुनः शांति बहाल करेंगे, और यह तभी संभव है जब सभी मिलकर कार्य करें।