कांग्रेस पार्टी को पिछले कुछ सालों से वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने राज्यों और स्थानीय इकाइयों को चलाने के लिए फंड नहीं भेजे हैं और राज्य की इकाइयां अब अपने दैनिक खर्च को पूरा करने के लिए आम जनता से मिलने वाले पैसों पर निर्भर हैं। ब्लूमबर्ग क्विंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, जबसे मोदी सरकार ने चुनावी बांड के माध्यम से चुनावी वित्त पोषण के लिए नए तरीके को प्रस्तुत किया है तबसे राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस पार्टी को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। देश में राजनीतिक वित्त पोषण प्रणाली को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए बांड पेश किए गए थे। देश एक पारदर्शी प्रणाली की ओर बढ़ रहा है और ऐसे में कांग्रेस के सामने नकदी की कमी की समस्या उत्पन्न हो गयी है जो कांग्रेस की भ्रष्ट फंडिंग प्रणाली को उजागर करता है।
ब्लूमबर्ग क्विंट द्वारा पेश की गयी रिपोर्ट में दिव्या स्पंदना के नाम का भी उल्लेख किया गया है जो कांग्रेस की सोशल मीडिया डिपार्टमेंट की हेड हैं। दिव्या स्पंदना ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि पार्टी अभी वित्तीय संकट से जूझ रही है, उन्होंने कहा, “बीजेपी की तुलना में हमारे पास नकदी कम है क्योंकि पार्टी को इलेक्टोरल फंड के जरिए ज्यादा फंडिंग नहीं मिल रही है।” जनता की सहानुभूति के लिए ये कांग्रेस की चाल भी हो सकती है क्योंकि ‘पीड़ित’ कार्ड खेलने में पार्टी को महारथ हासिल है लेकिन अगर ये रिपोर्ट सच है तो पार्टी के लिए ये गंभीर समस्या का विषय है। अब पार्टी अपने शासित राज्यों से ज्यादा फंड जुटाने की कोशिश में लग जाएगी और शायद कर्नाटक में सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस की बढ़ती हताशा का कारण भी यही है। कांग्रेस अब कर्नाटक से और अधिक फंड जुटाने के लिए कोशिशें करेगी तो ऐसे में जाहिर है कि वो कर्नाटक में भ्रष्ट व्यापारियों और खनन माफियों को खुली छुट देगी। पार्टी के अधिक फंड की चाह में कर्नाटक अपने सभी संसाधनों को खो देगा और आम जनता को इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे। इसके अलावा कांग्रेस के पास दूसरा राज्य पंजाब है जहां से वो वित्तीय फंड जुटा सकती है ऐसे में पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह अपनी पार्टी में सबसे ताकतवर नेता बन जायेंगे। पंजाब के सीएम राज्य को चलाने के अपनी नीतियों को ज्यादा तवज्जों देते हैं वो गांधी परिवार द्वारा जारी निर्देशों का पालन नहीं करते हैं।
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च में खत्म हुए वित्तीय वर्ष 2017 के मुताबिक, बीजेपी की तुलना में कांग्रेस को महज एक चौथाई धन मिला है। बीजेपी ने इस अवधि के दौरान अपनी आय 10.34 अरब रुपये घोषित की थी, पिछले वर्ष के मुकाबले ये 81 फीसदी अधिक थी। एक अधिकारी ने बताया कि, पार्टी में पैसे की कमी का ये आलम है कि त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में चुनाव अभियान के दौरान पार्टी के शीर्ष नेता चुनाव प्रचार के लिए नहीं पहुंच पाए थे और जो पहुंचे थे पार्टी उनके चाय-पानी का खर्चा भी उठाने में मुश्किलों का सामना कर रही थी जिसका फायदा बीजेपी को हुआ लेकिन कांग्रेस पार्टी को यहां नुकसान हुआ।
पार्टी के सत्ता में न होने से पार्टी का तिजोरी खाली हो गयी है जिसका मतलब ये है कि पार्टी जब सत्ता में थी तब अवैध तरीकों से अपनी तिजोरी भर्ती थी। पार्टी पहले ही ढाई राज्यों (पंजाब, मिजोरम और पुडुचेरी) तक सीमित रह गयी है जबकि यही पार्टी 2013 में 15 राज्यों पर शासन करती थी। पिछले कुछ वर्षों में पार्टी की आय बहुत तेजी से घटी है क्योंकि न ही कॉर्पोरेट और न ही लोगों ने पार्टी में कोई बेहतर भविष्य देखा। जबसे राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बने हैं पार्टी की स्थिति और बुरी हो गयी है क्योंकि के. चंद्रशेखर राव जैसे नेता राहुल गांधी के साथ मंच साझा नहीं करना चाहते हैं। कांग्रेस पार्टी को कॉर्पोरेट फंडिंग नहीं दे रहा है क्योंकि उन्हें विश्वास है कि पार्टी का भारत में कोई भविष्य नहीं है। कांग्रेस की व्यापार विरोधी गतिविधियों जैसे जीएसटी, भूमि सुधार, श्रम सुधार के विरोध ने कॉर्पोरेट हाउस को प्रभावित किया है।
कांग्रेस के शासनकल के दौरान कॉमनवेल्थ घोटाला, 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला, सत्यम घोटाला इतने बड़े हैं कि हम उस दौर को ‘घोटाला राज’ कहें तो ज्यादा बेहतर है। कांग्रेस को इन घोटालों में अपना उचित हिस्सा जरुर मिला होगा। पार्टी का वित्तीय संकट अब इस हिस्से के उपयोग के लिए पार्टी को मजबूर कर सकता है। यदि कांग्रेस कॉर्पोरेट क्षेत्र को लेकर अपने दृष्टिकोण को नहीं बदलती है और लगातार बीजेपी सरकार के जीएसटी, भूमि सुधार जैसे आर्थिक सुधारों का विरोध करती रही तो आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि 2019 में मोदी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस की तिजोरी खाली हो चुकी है।