कर्नाटक में मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के मंत्रालय के गठन में देरी हो रही है क्योंकि गठबंधन सहयोगी इसमें बाधा पहुंचा रहे हैं। सभी अपना मनपसंद पोर्टफोलिया चाहते थे जिसे लेकर दोनों ही पार्टियों में पोर्टफोलिया के आंवटन को लेकर खींचतान जारी थी। खासकर वित्त मंत्रालय इस विवाद का जड़ बन गया था। जहां कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व जेडीएस को वित्त मंत्रालय देने के लिए तैयार है तो वहीं कांग्रेस का राज्य नेतृत्व इस फैसले से खुश नहीं है वो महत्वपूर्ण मंत्रालयों को अपने पास रखना चाहते थे। एक कांग्रेस नेता ने नाम न बताने की शर्त पर हिंदुस्तान टाइम्स से कहा, “वे (केंद्रीय नेता) नहीं चाहते हैं कि पोर्टफोलियो का मुद्दा 2019 में संयुक्त विपक्ष को खतरे में डाल दे। उनका स्टैंड ये है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को एकजुट बनाये रखने के लिए कांग्रेस को लंबा सफर तय करना है।” उन्होंने आगे कहा, राज्य के नेताओं का मानना है कि कर्नाटक में वित्त पोर्टफोलिया बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि मुख्यमंत्री पद पर जेडीएस विराजमान है। इस मंत्रालय द्वारा सभी विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी जाती है। गठबंधन सहयोगियों को आश्वस्त करने के बजाय, उन्हें लगता है कि दिल्ली के नेताओं ने कुछ ज्यादा ही छुट दे दी है।” कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने अपने राज्य नेतृत्व की इच्छा के खिलाफ जाकर जेडीएस को सीएम पद देकर आत्मसमर्पण किया और अब बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए और समझौता कर रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को दरकिनार कर दिया और अब कांग्रेस ने मजबूत नेता डीके शिवकुमार को भी दरकिनार कर दिया है जिन्हें कांग्रेस को एकजुट रखने और कांग्रेस विधायकों को बीजेपी में शामिल होने से रोकने का श्रेय दिया जाता है। शिवकुमार को अपने बेहतरीन राजनीतिक चाल के लिए कोई इनाम नहीं दिया गया। मजबूत क्षेत्रीय नेताओं को अनदेखा करना कांग्रेस की आदत में शुमार है।
इस बीच जैसे ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विदेश रवाना हुए एचडी कुमारस्वामी ने कांग्रेस की मजबूरी का फायदा उठाते हुए अहम मंत्रालय अपने पास रखने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। सबसे पहले, ये देवगौड़ा थे, जिन्होंने दावा किया था कि उन्होंने कांग्रेस को मुख्यमंत्री पद की पेशकश की थी लेकिन कांग्रेस ने ही एच डी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने पर जोर दिया था।
इसके बाद, एचडी कुमारस्वामी ने कई बयान दिए हैं जो कांग्रेस पार्टी को एक तानाशाही बॉस के रूप में चित्रित कर रहा है जिसकी कृपा से कुमारस्वामी को राज्य की कमान मिली है। कुमारस्वामी ने गठबंधन की मजबूरी के चलते हाथ बंधे होने का इशारा भी किया। यहां उनके द्वारा दिए गये कुछ बयान हैं,
“मैं लोगों का नहीं, बल्कि कांग्रेस का ऋणी हूं। मैं आज कांग्रेस की कृपा पर हूं। मैं राज्य के 6।5 करोड़ लोगों के दबाव में नहीं हूं।”
“कांग्रेस नेताओं के विपरीत जो हेलिकॉप्टर से यात्रा करते हैं, मैं इकॉनमी क्लास में यात्रा करता हूं और राज्य के लिए पैसे बचाता हूं।”
“किसानों का कर्ज माफ़ तभी कर सकता हूं जब कांग्रेस सहमत होगी। मैं राहुल गांधी की दया पर यहां हूं।”
वहीँ पिता देवेगौडा कांग्रेस को पुण्य आत्मा भी बता चुके हैं!
अपने गठबंधन के सहयोगी को बुरा दिखाते हुए और राजनीतिक तौर पर पार्टी को क्षति पहुंचाते हुए ऐसा लगता है कि ये दबाव बनाने की रणनीति है ताकि कांग्रेस जेडीएस को वित्त पोर्टफोलिया देने के लिए मजबूर हो जाये। जेडीएस वित्त मंत्रालय अपने पास रखना चाहता है जिससे वो अपने घोषणापत्र के अनुसार किसानों के कर्ज को माफ़ कर सके और अन्य वादों को पूरा कर सकें जो उन्होंने चुनाव से पहले जनता से किया था। वन इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एचडी कुमारस्वामी ने वित्त मंत्रालय न मिलने पर इस्तीफा देने की धमकी दी थी। कुमारस्वामी ने कांग्रेस को झुकने के लिए नहीं कहा बल्कि एक कदम आगे चले और मंत्रालय देने के लिए मजबूर कर दिया।