आखिरकार बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा ने आज कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर ली। राज्यपाल के पास जाने से भी बात नहीं बनी तो कांग्रेस और जेडीएस ने मध्यरात्री में भारत की सर्वोच्च अदालत का दरवाज़ा खटखटाया। सर्वोच्च अदालत ने राज्यपाल के फैसले को बरकरार रखा और येदियुरप्पा को शपथ ग्रहण के लिए हरी झंडी दे दी। हालांकि, विपक्ष की याचिका पर आज सुबह सुनवाई की जाएगी लेकिन उससे पहले ही येदियुरप्पा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। कोई भी इससे विश्लेषण कर सकता है कि येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण के बाद लम्बे समय तक किसी और को मौका मिले इसकी संभावना बहुत ही कम है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों से जो सियासी घमासान शुरू हुआ था सर्वोच्च अदालत के फैसले ने कुछ समय के लिए उन सभी पर विराम जरुर लगा दिया है। दोनों ही पक्षों ने अपने तरीके से कानून का सहारा लिया और प्राथमिकता पर ध्यान दिया। वहीं, सर्वोच्च अदालत ने सभी दावों और नियमों के तहत राज्यपाल के फैसले को प्राथमिकता दी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि क्यों विपक्ष राज्यपाल के फैसले पर उंगली नहीं उठा सकता साथ ही क्यों अन्य राज्यों के राज्यपाल भी सही थे जब उन्होंने सबसे बड़ी पार्टी की बजाय गठबंधन दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था। आखिरकार, सभी सवालों पर फिलहाल के लिए विराम लग गया है कि सत्ता में जिस दल की सरकार है उसके पास बहुमत वाले विधायकों का समर्थन है या नहीं क्योंकि ज्यादातर मामलों में, राज्यपाल द्वारा स्थिति का मुल्यांकन ज्यादा अहम होता है।
कर्नाटक में बीजेपी पर राजनीतिक सौदेबाज़ी यानी ‘हॉर्स-ट्रेडिंग’ का आरोप लगाया गया जिसके बाद ये खबर काफी चर्चा में रही। स्पष्ट रूप से नवनिर्मित जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन के कई असंतुष्ट विधायक भारतीय जनता पार्टी के संपर्क में हैं और सभी खेल खेलने के लिए तैयार भी हैं। बुधवार को एचडी कुमारस्वामी वो व्यक्ति जिसे कांग्रेस मुख्यमंत्री बनाने के लिए सहमत है ने बीजेपी पर ‘प्रति विधायक 100 करोड़ की रकम’ देकर विधायक खरीदने का आरोप लगाया था। इसके बाद उन्होंने चुनौती देते हुए कहा था कि ‘बीजेपी छोड़ लोग हमारे पास आने को इच्छुक हैं। अगर वो एक को तोड़ेंगे तो हम दो तोड़ेंगे।’ हालांकि, एचडी कुमारस्वामी ने ये जिक्र नहीं किया कि बीजेपी ने अगर सौ करोड़ रुपये की पेशकश की है तो वो कितने की करेंगे।
हालांकि, ये जरुरी नहीं है कि हॉर्स-ट्रेडिंग का मतलब मुद्रा ही है। विधायक को उसकी जरूरत के अनुसार जैसे, मंत्रालय में जगह, घर आदि वोट के बदले पेश किया जाता है। इसका ताजा उदाहरण आपके सामने है जब बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए कुमारस्वामी को कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने के बदले मुख्यमंत्री पद की पेशकश की गयी थी। जानकारी के अनुसार बीजेपी ने कुमारस्वामी को उपमुख्यमंत्री बनाने की पेशकश की थी जिसे उन्होंने मना कर दिया था। कुमारस्वामी स्वयं दावा करते हैं कि उन्होंने बीजेपी की बजाय कांग्रेस को चुना क्योंकि कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है जबकि बीजेपी सांप्रदायिक है। हालांकि, हम यहां ये समझ सकते हैं कि बीजेपी ने कुमारस्वामी के सामने उपमुख्यमंत्री पद की पेशकश की थी जबकि कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश की। ऐसे में अपने ‘धर्मनिरपेक्ष विचारों को संरक्षित’ करते हुए कुमारस्वामी ने उसका साथ देना स्वीकार किया जिसने उनके सामने सबसे ज्यादा की बोली लगाई थी।
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि कैसे बीजेपी दो दिन में बहुमत के आंकड़ों को जुटा पाती है। बीजेपी को दो दिनों के अंदर अपना बहुमत साबित करने का मौका दिया गया है अन्यथा वो फ्लोर टेस्ट में फ़ैल हो सकती है। दो दिनों में सत्ता के लिए बहुमत जुटाने की इस परीक्षा की घड़ी में विपक्ष के असंतुष्ट विधायकों को साथ लाने की चुनौती बीजेपी के सामने अभी सबसे बड़ी है क्योंकि कांग्रेस अपने विधायकों को दबाने की पूरी कोशिश कर रही है। वहीं, बीजेपी को बहुमत साबित करने के लिए दिए गये समय के बाद से कांग्रेस के समर्थक थोड़े शांत नजर आ रहे हैं जबकि उन्हें ये बात समझ नहीं आ रही कि इससे बीजेपी को फायदा होगा। येदियुरप्पा अगर विधानसभा में बहुमत साबित कर फ्लोर टेस्ट में पास हो जाते हैं तो 6 महीने तक वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद को संभालेंगे। बीजेपी के लिए ज़्यादा अच्छा ये होगा कि जल्दी से ये सब ख़त्म करे बजाये इसके कि अपने समूह (खुद के विधायक और दलबदलू) को 2-3 हफ़्तों तक एक साथ पकड़ के बैठे रहे