भारत में सत्ता की भूख और चुनावी जीत राजनीतिक पार्टियों की एकमात्र प्राथमिकता बन गयी है जिसने भारतीय जनता को वोट बैंकिंग का जरिया बनाकर रख दिया है। भारतीय लोकतंत्र के लिए वोट बैंक की राजनीति एक कटु सत्य है। चुनाव के दौरान अधिकतर राज्यों में राजनीतिक पार्टियों के बीच जाति, धर्म, जातीयता और अन्य सामाजिक समूहों के आधार पर विभाजन देखा गया है। किसी विशेष पार्टी की ओर किसी विशेष समुदाय का झुकाव या नाराजगी का इस्तेमाल सभी पार्टियां अपनी वोट बैंक की राजनीति के लिए करती हैं या यूं कहें कि समुदाय का मतदान को पार्टी के लिए या उसके खिलाफ एक उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। हाल ही में संपन्न हुए कर्नाटक चुनावों में इस तरह के समीकरण स्पष्ट रूप देखे गये थे। कर्नाटक चुनावों पर एक ख़ास समूह जिसने चुनाव के अंतिम परिणामों पर भारी असर डाला था वो वोक्कालिगा थे।
लिंगायत के बाद वोक्कालिगा कर्नाटक का दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है जो इनके राजनीतिक महत्व को दर्शाता है। वोक्कालिगा प्रमुख रूप से कृषि समुदाय है जो सिद्धारमैया के शासन के तहत लोकवादी और भयावह नीतियों का शिकार हुए हैं। सिद्धारमैया की विनाशकारी आर्थिक नीतियां राज्य भर में खासकर पुराने मैसूर क्षेत्र में कृषि संकट का कारण बन गयीं थीं। इस क्षेत्र में गंभीर सूखे ने वोक्कालिगा समुदाय की मुश्किलों को और बढ़ा दिया था, यही नहीं सिद्धारमैया सरकार ने मदद करने से भी इंकार कर दिया था। वोक्कालिगा किसान अपने प्राथमिक व्यवसाय से अपनी रोजमर्रा के जीवन के लिए धन अर्जित कर पाने में भी असमर्थ होने लगे थे जिस कारण वोक्कालिगा समुदाय के युवाओं को मजबूरन बैंगलोर में स्थानांतरित होना पड़ा था। बैंगलोर में किसानों को मजबूरन अपनी आजीविका चलाने के लिए कैब ड्राइवर और बार वेटर्स के रूप में काम करना पड़ा। वोक्कालिगा समुदाय के 20-35 वर्ष के युवा सिद्धारमैया सरकार से नाराज थे।
इसके अलावा, एक रिपोर्ट के अनुसार, ये बाद में प्रकाश में आया था कि सिद्धारमैया ने वोक्कालिगा को अलग कर उनके साथ भेदभाव किया। राज्य के वरिष्ठ वोक्कालिगा अधिकारियों को चुनाव के दौरान महत्वहीन पदों पर नियुक्त कर दिया जिसने पूरे समुदाय में नाराजगी और क्रोध को बढ़ा दिया। एच डी कुमारस्वामी ने इस मौके का फायदा उठाकर वोटबैंक की राजनीति की। बैंगलोर में रहने वाले वोक्कालिगा समुदाय के लोगों को कुमारन्ना से काफी उम्मीदें थीं। उन्हें उम्मीद थी कि कुमारस्वामी सरकार बनायेंगे और सिद्धारमैया के साथ-साथ कांग्रेस को सत्ता से बाहर निकाल देंगे। वो ये नहीं जानते थे कि उनके कुमारन्ना ने उन्हें राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया और परिणामों की घोषणा के बाद उनकी पीठ पर वार कर दुश्मनों से हाथ मिला लिया।
वोक्कालिगा समुदाय ने कांग्रेस के खिलाफ वोट देकर सिद्धारमैया की विरोधी नीतियों के प्रति क्रोध और नाराजगी व्यक्त की थी। सभी ने जेडीएस और यहां तक कि बीजेपी को वोट दिया जबकि जेडीएस मजबूत पार्टी नहीं थी। जेडीएस शीर्ष पद की दौड़ में नहीं था जिससे वोक्कालिगा के लोग दुखी थे। हालांकि, जब कुमारस्वामी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का फैसला किया तो सभी को बड़ा झटका लगा था।
वोक्कालिगा ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के लिए वोट दिया था और उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सभी को कुमारस्वामी से बड़ी उम्मीदें थीं। हालांकि, कुमारस्वामी ने उनके समर्थन का दुरुपयोग किया जिससे वो अपने विपक्षी पार्टी को सत्ता में ला सकें। कुमारस्वामी के लिए वोक्कालिगा का प्यार और समर्थन जल्द ही क्रोध और अपमान में बदल गया। बैंगलोर में वोक्कालिगा समूह 15 मई से कुमारस्वामी के खिलाफ काफी मुखर है और उन्हें उल्लू, सांप, जैकल जैसे विभिन्न नाम दिए। ऐसा लगता है कि वोक्कालिगा के लोग कुमारस्वामी को आसानी से नहीं छोड़ेंगे। उनके लिए और मुश्किलें खड़ी करेंगे।
Since the evening of 15 May, this group has been very vocal, calling Kumaranna a snake, jackal, 🦊, owl, "third-class nann maga" etc.
— 𝚂𝚊𝚗𝚍𝚎𝚎𝚙 𝙱𝚊𝚕𝚊𝚔𝚛𝚒𝚜𝚑𝚗𝚊 (@dharmadispatch) May 18, 2018
आज कुमारस्वामी और कांग्रेस जनता के जनादेश को बदलकर काफी खुश हैं और वो खुश हैं कि जनता के जनादेश को बदलकर वो गठबंधन की सरकार बना सकते हैं। राजनीतिक शक्ति के लिए ललायित कुमारस्वामी अभी तक ये नहीं समझ पा रहे हैं कि उन्होंने क्या किया है। कुछ समय के लाभ के लिए वो अपने उस समर्थन को भी खोने जा रहे हैं जिससे उनका राजनीतिक अस्तित्व जुड़ा है। 2019 के आम चुनावों के लिए समय बहुत कम बचा है और ऐसे में जेडीएस के लिए जवाब देना मुश्किल होगा कि उन्होंने कर्नाटक के लोगों खासकर वोक्कालिगा के लोगों को क्यों धोखा दिया। बीजेपी बहुमत साबित करने में विफल रही है, लेकिन आने वाले 2019 के चुनावों में बीजेपी जेडीएस और कांग्रेस का सफाया कर देगी। लिंगायत पहले ही बीजेपी के पक्ष में हैं और वोक्कालिगा कांग्रेस और जेडीएस दोनों से नाराज है ऐसे में कर्नाटक में होने वाले आम चुनावों में इससे बीजेपी को लाभ हो सकता है।