भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 23 मई को एक अनोखा शपथ ग्रहण संपन्न हुआ। जो पार्टी अपनी 100 से अधिक विधानसभा सीटें हार गयी उसने दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के सहारे अपने नेता को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। वहीं, राज्य में बहुमत से कुछ कदम दूर होने के कारण सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को अब विपक्ष की सेट पर बैठना पड़ा रहा है।
एचडी कुमारस्वामी ने बुधवार को कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली इस दौरान विपक्ष के पास अपनी एकता को जाहिर करने का बेहतर मौका था। मौके का फायदा उठाते हुए पूरा विपक्ष इस शपथ ग्रहण समारोह में साथ नजर आया और अपनी एकता का प्रदर्शन किया। सोनिया गांधी व उनके बेटे राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस और पूरा विपक्ष बीजेपी को हराने की अपनी महत्वाकांक्षा के लिए एकजुट था।
इन सभी के बीच, एचडी कुमारस्वामी के इस शपथ समारोह में सोनिया गांधी की पार्टी के साथ शाही गठबंधन से लेकर उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती समेत पूरा विपक्ष के नेता जैसे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल आदि मौजूद थे जिसने कुमारस्वामी के लिए उस क्षण को ख़ास बना दिया था।
हालांकि, इसमें जिस बात पर किसी का ध्यान नहीं गया वो था शाही नेताओं की इस भीड़ में एक प्रमुख चेहरा जिन्हें 2019 के आम चुनावों की लड़ाई के लिए विश्वसनीय चेहरों में से एक माना जाता है। ये और कोई नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं जोकि लगभग पूरे विपक्ष द्वारा नजरअंदाज कर दी गयीं जबकि उन्होंने स्वयं ही अपने आप को 2019 में बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में संयुक्त विपक्ष का प्रमुख चेहरा बताया था।
जब कुमारस्वामी शपथ ली तब पूरे विपक्ष को एक ग्रुप फोटो के लिए इकट्ठा किया गया। सोनिया गांधी से लेकर अजीत सिंह और सीताराम येचुरी जैसे नेताओं ने एकसाथ हवा में अपने हाथ खड़े किये और जीत की ख़ुशी जाहिर की। जबकि कर्नाटक राज्य में सरकार बनाने की असली हक़दार बीजेपी थी और विपक्ष केवल बीजेपी को कर्नाटक राज्य में सरकार बनाने से ही रोक पाया है।
2019 के लिए राष्ट्रीय मोर्चे के सीएम पद की प्रबल दावेदार होने के बावजूद ममता बनर्जी को आश्चर्यजनक रूप से दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल के साथ दरकिनार कर दिया गया। यहां तक कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह को उनसे बेहतर कवरेज दी गयी। कांग्रेस द्वारा ये ठंडा रवैया बहुत कुछ कहता है, खासकर ऐसे नेता के लिए जो बीजेपी विरोधी फ़ौज को तैयार करने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों को एकजुट करने में जुटी हैं।
ममता बनर्जी पर बंगाल में गुंडागर्दी को बढ़ावा देने और टीएमसी द्वारा प्रायोजित चुनावी हिंसा के लिए कानून को तोड़ने जैसे कई आरोप लगे हैं। फिर भी, उनके और अन्य उदार बुद्धिजीवियों के अनुसार, लोकतंत्र सिर्फ बीजेपी की सत्ता में होने की वजह से खतरे में है।
पश्चिम बंगाल में ममता के तानाशाही शासन की गहराईयों में न जाते हुए चलिए समझते कि वर्तमान की राजनीति में ममता बनर्जी कहां खड़ी हैं। फिलहाल कांग्रेस जो अभी राहुल गांधी के साथ चर्चा में बनी हुई है, उसके पास दो विकल्प है, पहला या तो वो राहुल गांधी के साथ ही रहने का विकल्प चुने जोकि हमेशा ही पार्टी के लिए घाटे का सौदा रहा है या फिर पार्टी दूसरी पार्टी के नेता को नेतृत्व करने का अवसर दे जैसा कि उन्होंने कर्नाटक में जेडीएस के कुमारस्वामी को सीएम का पद सौंप कर किया है। बंगाल पर पूर्ण अधिकार के साथ, ममता बनर्जी उन कुछ राजनेताओं में से एक हैं जो अपने साथ से यूपीए गठबंधन की किस्मत को बदल सकती हैं।
हालांकि, कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में दो चीजें एकदम साफ़ हैं। कांग्रेस कमजोर हुई है लेकिन पूरी तरह से बाहर नहीं हुई है और हो सकता है कि वो अपने गांधी नेता के नेतृत्व में 2019 के चुनावों के लिए आगे बढ़ जाए। दूसरा तथ्य ये है कि, कर्नाटक में अपनी चतुर राजनीति के तहत गठबंधन बनाने के बावजूद, कांग्रेस जानती है कि तृणमूल कांग्रेस समेत उसके तथाकथिक सहयोगी कभी भी अपना हाथ पीछे खींच सकते हैं लेकिन फिर भी कांग्रेस निश्चित रूप से ऐसा कुछ नहीं करना चाहेगी जो 2019 के चुनाव में उसकी आकांक्षाओं के लिए आत्मघाती साबित हो।
सीएम केजरीवाल के अलावा ममता बनर्जी के लिए पूरे समारोह का समय काफी कठिन था। इससे पहले उन्होंने एचडी देवगौड़ा से खराब ट्रैफिक व्यवस्था की शिकायत की जिस वजह से उन्हें विधान सौध तक पैदल चलना पड़ा था। जबकि अरविन्द केजरीवाल को भी इसी परेशानी से गुजरना पड़ा था लेकिन उन्होंने इस मामले में कुछ बोलने से मना कर दिया।
हां, शपथ समारोह ने पूरे ड्रामे की पोल खोलकर रख दी। ममता बनर्जी का ये विडियो सामने आया है जिसमें ममता एचडी देवगौड़ा से खराब ट्रैफिक व्यवस्था की शिकायत कर रही हैं। कांग्रेस ही 2019 तक अपनी पार्टी को मजबूत करना चाहती है लेकिन कांग्रेस में विश्वासघाती सहयोगियों के लिए कोई जगह नहीं है। जैसा की हम सभी जानते हैं कि ममता बनर्जी अपने साथ हुए इस अपमान को हलके में नहीं लेंगी। खैर, इन सबसे उपर 2019 में होने वाले आम चुनाव की राह इस तथाकथित गठबंधन और विश्वासघाती सहयोगियों के साथ और दिलचस्प होने वाला है।