कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने प्रेस गैलरी डिनर में अपनी भारत यात्रा को सबसे बड़ी गलती बताया। भारत की आम जनता के साथ मीडिया ने जस्टिन ट्रूडो द्वारा खालिस्तानी तत्वों को समर्थन देने और उनके नौटंकी के उद्देश्य से पहने गए पहनावे की कड़ी आलोचना की थी। जस्टिन ट्रूडो को बड़ा झटका तब लगा था जब उनके आगमन पर पीएम मोदी द्वारा उन्हें वो तवज्जो नहीं दी गयी थी जैसे कि अमूमन बाकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को दिया जाता है।
जस्टिन ट्रूडो के लिए ये शायद उनके पीआर के प्रयासों में से एक होगा, चाहे वो पूराने अलगाववादी आंदोलन के साथ लोगो के प्रति सहानुभूति दिखाकर उन्हें कनाडा ले जाने का प्रयास हो या भारतीयों को अपनी ताज महल की यात्रा के दौरान अपने पहनावे से लुभाने का दिखावटी प्रयास हो, उनके ये प्रयास बचकाने थे। भारत में उन्हें एक बार फिर से उनकी ताज महल की यात्रा के दौरान उन्हें उत्तर प्रदेश के सीएम योगी से वो तवज्जो नहीं मिली जैसे कि बाकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को देने का रिवाज रहा है।
विचित्र राजनीतिक छवि से लेकर ‘आतंकवादियों के लिए विशेष प्रेम तक’, जस्टिन ट्रूडो 21 वीं सदी के हर आधुनिक उदारवादी विशेषता से मेल खाते हैं। दुनिया के नेताओं में वे एक सामाजिक न्याय योद्धा जैसा दिखाई देते हैं लेकिन जब राष्ट्र को चलाने और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को बना कर रखने की बात आती है तो वे फिसड्डी ही दिखते हैं। हालाकि अमेरिका और ब्रिटेन की पूर्व यात्रा जस्टिन ट्रूडो के अच्छी रही थी क्योंकि उनके उदारवाद और सामाजिक न्याय के ब्रांड ने इन दोनों देशों के कई लोगों पर अपनी धाक जमाइ थी। अपने विदेश दौरे के दौरान और बाद में भी उन्हें अमेरिकी और ब्रिटिश प्रेस द्वारा काफी सकारात्मक रिपोर्ट मिली थी। भारत में उनकी यात्रा इसके बिलकुल विपरीत थी और देश के दुश्मन खालिस्तानियों का समर्थन करने के लिए उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत यात्रा के दौरान जो शर्मिंदगी झेली उसपर बात करने से बचने की बहुत कोशिश की। ट्रूडो ने भारत के यात्रा के दौरान मिले दर्द की तुलना घाव के दर्द से की और कहा, ‘मैं भारत की यात्रा पर गया ही नहीं, मुझे भारत की यात्रा याद नहीं।’
जस्टिन ट्रूडो ने भारत यात्रा के बुरे अनुभव को साझा करते हुए कहा कि “ये अंत की शुरुआत है”
पारेख के साथ हाथ मिलाते हुए अपनी एक तस्वीर को दिखाते हुए उन्होंने कहा, “ मैंने यहां इंफोसिस के सीईओ के साथ बैठक की थी। वो कंपनी जिसने इस यात्रा के दौरान कनाडा में नए निवेश की घोषणा की है।” उन्होंने आगे कहा, लेकिन, आप लोगों (पत्रकार) ने इसे कवर नहीं किया क्योंकि उस वक्त मैंने चमकीला कुर्ता-पाजामा नहीं, बल्कि सूट-टाई पहन रखा था। ये कितना बोरिंग था ना!”
यदि डोनाल्ड ट्रम्प जैसे किसी हस्ती ने ये बातें कहीं होती तो पूरा ट्विटर और साथ ही मुख्यधारा की मीडिया इसका मजाक उड़ाने के लिए तैयार रहते।
सबसे बड़ा विवाद तब सामने आया था जब मुंबई के एक डिनर कार्यक्रम में खालिस्तान समर्थक जसपाल अटवाल की तस्वीर कनाडा के प्रधानमंत्री की पत्नी सोफी ग्रेग्वा ट्रूडो साथ सामने आयी थी। ये तस्वीर भारत के कई न्यूज़पेपर की हैडलाइन बन गयी थी जिसने देश के दुश्मन का समर्थन करने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री की यात्रा पर सवाल खड़े कर दिए थे। हालांकि प्रेस गैलरी डिनर के दौरान ट्रूडो अटवाल वाले मुद्दे से आसानी से बच गए।
प्रेस गैलरी डिनर ट्रूडो के बड़ी पीआर गलतियों में से एक थी, ये भी कह सकते हैं की ये बीसवीं शताब्दी के सबसे शर्मनाक विदेशी दौरे में से एक थी, उसपर भी ट्रूडो अपनी गलतियों पर भद्दे मजाक और भांगड़ा कर के पर्दा डालने की कोशिश कर रहे थे। जस्टिन ट्रूडो के इस विचित्र व्यवहार का असर कनाडा पर भी पड़ा था जिसके परिमाणस्वरुप उनके अपने घर में ही उनकी रेटिंग गिर गयी थी। एक आडंबरी विश्व नेता की असलियत दुनिया के सामने लाने का श्रेय भारतियों को गर्व के साथ लेना चाहिए। भारत की यात्रा के दौरान और बाद हुए इस अपमान को ‘उभरते युवा नेताओं’ को देश और विदेश (समझे राहुल गांधी जी)दोनों जगहों पर एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए जो लोगों को जीतने के लिए अपने पीआर के तरीकों से ऐसे तुच्छ प्रयासों को अंजाम देते हैं। इसके अलावा ट्रूडो को देश के उन ‘इंटेलेक्चुअल’ के लिए उदाहरण के रूप में भी लिया जाना चाहिए जो दुश्मन का साथ देते हैं जिसके परिणाम उन्हें भुगतने पड़ सकते हैं। राइटलॉग के प्रधान सम्पादक अजित दत्ता द्वारा लिखा गया यह आर्टिकल कनाडा में वायरल हो गया था, लाखो कनाडियाई नागरिकों ने इस लेख को पढ़ा और सराहा था और साथ में जमकर ट्रूडो की आलोचना भी की थी, तो थोड़ा श्रेय तो हम भी ले सकते हैं :)