अविश्वास प्रस्ताव के फेल होने के बाद से कांग्रेस का मनबोल टूट चुका है ऐसे में पार्टी आम चुनावों को लेकर नईं रणनीति बनाने के लिए तैयारी कर रही है। इसी को लेकर कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की रविवार को हुई अहम बैठक में 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर चर्चा की गयी। इस बैठक के बाद कई महीनों से चली आ रही अटकलों पर विराम लगाते हुए आखिरकार कांग्रेस ने ये स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ही पार्टी के पीएम पद के उम्मीदवार होंगे। इसके अलावा कांग्रेस पार्टी ने ये भी स्पष्ट किया कि वो ‘समान विचारधारा’ वाली पार्टी को अपने साथ लेकर आएगी ताकि वो पीएम मोदी को सत्ता से बेदखल कर सके। वहीं, राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने के पीछे कांग्रेस पार्टी की जो भी वजह हो लेकिन इससे विपक्षी खेमा खुश नहीं है क्योंकि पीएम बनने का सपना कई विपक्षी पार्टी के नेता देख रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के इस प्रस्ताव को जेडीएस के अलावा किसी और पार्टी का समर्थन मिलते नहीं दिखाई दे रहा है।
जेडीएस राहुल गांधी के पीएम बनने के प्रस्ताव को समर्थन दे रही है लेकिन जेडीएस के पास इसके अलावा कोई और विकल्प भी नहीं है क्योंकि कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन की सरकार है। हालांकि, जेडीएस के समर्थन से भी कांग्रेस को 2019 आम चुनावों में ज्यादा फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि जेडीएस के बड़े समर्थक वोक्कालिगा समुदाय ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के लिए वोट दिया था और उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सभी को कुमारस्वामी से बड़ी उम्मीदें थीं। हालांकि, कुमारस्वामी ने उनके समर्थन का दुरुपयोग किया और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर कांग्रेस को वापस सत्ता में ले आये। जेडीएस के इस कदम से वोक्कालिगा का प्यार और समर्थन जल्द ही क्रोध और अपमान में बदल गया है जिससे जाहिर है कि वो 2019 के आम चुनावों में जेडीएस के समर्थन में अपना वोट नहीं करेंगे। इसके अलावा लिंगायत कर्नाटक राज्य का सबसे बड़ा समुदाय है जो कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति से खुश नहीं है जिस कारण कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने पहले ही राहुल गांधी की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया है और स्पष्ट कर दिया है कि वो 2019 का आम चुनाव अपने दम पर लड़ेंगी। ममता बनर्जी ने कई बार स्पष्ट किया है कि उन्हें महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व स्वीकार नहीं है, साथ ही वो राहुल गांधी के नेतृत्व में काम नहीं करना चाहती हैं। वहीं, सुप्रीमो मायावती का दावा है कि उनका पीएम बनना तय है। दूसरी तरफ राजद, सपा, डीएमके, एनसीपी और अन्य विपक्षी पार्टियों ने राहुल गांधी की उम्मीदवारी पर चुपी साध रखी है। हालांकि, राजद प्रवक्ता ज्योतिष शंकर चरण त्रिपाठी ने भी लोकसभा में राहुल गांधी के व्यवहार को लेकर उनपर हमला किया था। ऐसे में राजद में राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर संतुष्ट है या नहीं इसपर भी कुछ कहना मुश्किल है।
गौरतलब है कि, अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव को 2019 में होने वाले आम चुनावों में बीजेपी के खिलाफ तीसरे मोर्चे का मुख्य चेहरे के रूप में चित्रित किया था। जहां 2019 के आम चुनावों के लिए सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर पीएम मोदी के खिलाफ खड़े होने का दावा कर रहीं थी वहीं कोई भी राहुल गांधी के नाम पर सहमत नहीं है।
ऐसे में ये सवाल गंभीर हो जाता है कि विपक्ष में राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर उत्साह क्यों नहीं है? क्या उन्हें डर है कि इससे आम चुनावों में उनकी हार होना तय है? क्या उन्हें डर है कि राहुल गांधी पीएम मोदी के खिलाफ खड़े होने के लिए सही विकल्प नहीं है इसके बावजूद उन्हें उम्मीदवार बनाया जाना स्पष्ट रूप से गठबंधन की हार का कारण बनेगा? क्या वो राहुल गांधी को पीएम उम्मीदवार बनाने के पक्ष में नहीं हैं? अगर विपक्षी पार्टियां इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं हैं तो क्या वो 2019 के आम चुनाव में एकजुट होकर लड़ेंगी? विपक्षी पार्टियों की बेरुखी लाजमी है क्योंकि पिछले कई चुनावों में राहुल गांधी का प्रदर्शन खराब रहा है उनके नेतृत्व में कांग्रेस का आत्म विशवास अभी तक के अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है। ऐसे में सभी दल उन्हें महागठबंध का नेतृत्व करने वाले नेता के रूप में स्वीकार नहीं नहीं करना चाहते हैं।
एनडीए को इस तरह की मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा है। जब आपके पास एक मजबूत लोकप्रिय और बुद्धिमान नेता हो तो उसके नेतृत्व से पार्टी भी संतुष्ट होती है। हालांकि, कांग्रेस अभी भी जनता के मूड को नहीं समझ पायी है और शायद वो कभी समझ भी नहीं पाएगी। ऐसे में 2019 के आम चुनावों के लिए इसका क्या अर्थ है? क्या विपक्षी पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए एकजुट होने की बजाय अपने दम पर चुनाव लड़ेंगी? अविश्वास प्रस्ताव के विफल होने के बाद से ये स्पष्ट है कि कांग्रेस के लिए सब कुछ ठीक नहीं है। ये निश्चित रूप से विपक्ष से कांग्रेस को ऐसी प्रतिक्रिया मिली है जिसकी उन्होंने उम्मीद नहीं की होगी।