आम आदमी पार्टी आंतरिक मतभेद से जूझ रही है। ये मतभेद कम होने का नाम नहीं ले रहे नतीजतन पार्टी से नाराज चल रहे नेता पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं। आम आदमी पार्टी के आंतरिक मतभेद के कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को एक सप्ताह के भीतर ही दूसरा झटका लगा है। पहले आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व पत्रकार आशुतोष ने पार्टी का साथ छोड़ दिया था और अब पेशे से पत्रकार रहे आशीष खेतान ने भी अब औपचारिक रूप से पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है। खबरों के मुताबिक आशीष खेतान नई दिल्ली लोकसभा सीट से दोबारा चुनाव लड़ना चाहते हैं, जबकि पार्टी किसी नए चेहरे को उतारना चाहती है इससे नाराज होकर आशीष खेतान ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है। आशीष खेतान वर्ष 2014 में नई दिल्ली लोकसभा से चुनाव लड़ चुके हैं और वो दुबारा इस चुनाव को लड़ना चाहते थे लेकिन केजरीवाल ऐसा नहीं चाहते। बता दें कि, आशीष खेतान दिल्ली डायलॉग कमीशन के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।
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इससे पहले भी पार्टी के कई बड़े नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की कमी की वजह से पार्टी के नेता एक-एक करके दूर हो रहे हैं। आम जनता की पार्टी और भ्रष्टाचार से देश को मुक्त करने के मकसद से अस्तित्व में आई पार्टी खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हो गयी। अपने मूल सिद्धांतों से पार्टी विमुख हो गयी जिसके बाद आशुतोष के साथ ही कई बड़े राजनेता पार्टी से दूर होने लगे। आशुतोष, शांति भूषण, मयंक गांधी, शाजिया इल्मी जैसे कई बड़े नेताओं ने आम आदमी पार्टी का साथ छोड़ दिया। सभी ने केजरीवाल की नीतियों पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए अपने इस्तीफे का कारण सामने रखा। किसी ने केजरीवाल पर ईमानदारी की राजनीति से पीछे हटने, कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल करके उन्हें छोड़ देने तो किसी ने केजरीवाल पर पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र नहीं बनाने का आरोप लगाया तो किसी ने पार्टी पर अपने सिद्धांतों से हटने का आरोप लगाया।
आशुतोष 2014 में एक टीवी न्यूज चैनल के मैनेजिंग एडिटर के पद से इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे लेकिन अभी पार्टी दिल्ली में अपना कार्यकाल पूरा भी नहीं कर पायी थी कि आशुतोष ने पार्टी का साथ छोड़ दिया। उन्होंने बुधवार (15 अगस्त) को ट्वीट कर लिखा कि, “हर सफर का अंत होता है। आम आदमी पार्टी के साथ मेरा शानदार और क्रांतिकारी सफर आज खत्म हुआ।” इससे पहले पत्रकार से नेता बनी शाजिया इल्मी ने केजरीवाल पर पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र नहीं बनाने का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।
भ्रष्टाचार विरोधी पार्टी के रूप में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी आम आदमी पार्टी की छवि दिखावटी साबित हुई। एक के बाद एक झटकों के बाद भी केजरीवाल के तानाशाही रवैये में कोई बदलाव आ रहा ऐसे में, ये पार्टी धीरे-धीरे भारतीय राजनीति के परिदृश्य में अप्रासंगिक हो जाएगी। जिस पार्टी के नेता ही अपनी पार्टी के कामों से खुश नहीं वो पार्टी कैसे शासन को सुचारू रूप से चलाएगी। केजरीवाल को अपनी स्वार्थ की राजनीति छोड़कर पार्टी को सही ट्रैक पर लाने के लिए काम करना चाहिए था लेकिन उन्हें अपने शाही शौक और स्वार्थ की राजनीति से फुर्सत कहां। इससे स्पष्ट है कि पार्टी में केजरीवाल अपनी मर्जी के आगे किसी की नहीं सुनते वो किसी भी निर्णय को लेने से पहले पार्टी के सदस्यों की राय की जगह अपनी मर्जी थोपते हैं। पार्टी में केजरीवाल का तानाशाही रवैया आम आदमी पार्टी को पतन की ओर धकेल रहा है।