शिवसेना के मन में बीजेपी को लेकर कड़वाहट किसी से नहीं छुपी है। वर्ष 2015 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने अकेले चुनाव लड़ा था तब बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन राज्य में सत्ता कायम करने के लिए दोनों पार्टियां एक बार फिर से एक साथ आयी थीं। कहने को शिवसेना बीजेपी के साथ थी लेकिन बीजेपी को बड़ी मात्रा में मिली सीट से उसके मन में भारतीय जनता पार्टी के के लिए कड़वाहट भर चुकी थी।
उद्धव ठाकरे इस बात को आसानी से पचा नहीं पा रहे थे कि गठबंधन की सरकार में उनका प्रभाव अब पहले की तरह नहीं रहा इसलिए वो बार-बार एक बड़े सहयोगी की तरह राज्य में गठबंधन सरकार में हावी होने की पूरी कोशिश की है। वो बालासाहेब की तरह ही महाराष्ट्र की राजनीति में हावी होने की पूरी कोशिश करते रहे हैं लेकिन ऐसा करने में वो असफल रहे हैं क्योंकि बालासाहेब सिद्धांतों के पक्के थे वहीं, उद्धव ठाकरे पार्टी के मूल सिद्धांत से भटक गए हैं। वो अब लाभ की राजनीति में व्यस्त हो गए हैं यही वजह है शिव सेना का अस्तित्व अब पतन की ओर अग्रसर हो रहा है। उद्धव ठाकरे एक असफल वंशज नेता साबित हुए हैं। मोदी-शाह की जोड़ी से महाराष्ट्र में उनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई है और अब फडणवीस ने अपने राजनीतिक कौशल से राज्य में उनको अलग-थलग कर दिया है और बड़ी ही खूबसूरती से उन्होंने अपने सहयोगी दल को उसी की चाल में मात दे दी है। उद्धव ठाकरे ऐसे में हताश होने लगे हैं और यही वजह है कि एक कट्टरवादी हिंदू पार्टी होते हुए भी वो मुस्लिम आरक्षण की मांग कर रहे हैं तो कभी मौजूदा सरकार के कार्यों पर हमले कर रहे हैं।
एक राजनेता के तौर पर विफल रहे उद्धव ठाकरे ने एक बार नहीं बल्कि कई बार मोदी सरकार और बीजेपी पर हमले किये हैं। महाराष्ट्र में जीत के बाद बीजेपी ने राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने की दिशा में काम किया है जबकि शिवसेना के मन में बढ़ती बीजेपी के प्रति नफरत ने उसे पतन की ओर धकेला है। राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना की लोकप्रियता घट रही है।
सच कहा गया है कि, राजा की निष्ठा अनुशासन, नीतिबद्धता और दण्ड व्यवस्था जब संतुलित होती है तभी राजा का राज स्थिर बना रहता है अगर ऐसा नहीं होता राज्य को बिखरने में वक्त नहीं लगता है ऐसा ही कुछ शिवसेना के साथ भी हो रहा है। 2019 के आम चुनाव पास आ रहे हैं और उससे पहले ही खबरें आ रही हैं कि शिव सेना अब टूटने के कगार पर है।
अगर इन खबरों में सच्चाई है तो शिवसेना जो अपने बल पर चुनाव जीतने के सपने देख रही है उसे बड़ा धक्का लग सकता है। इसके बाद शिवसेना किसी के खिलाफ चुनाव लड़े चाहे बीजेपी हो या एनसीपी या कांग्रेस उसे हार का मुंह ही देखना पड़ेगा और इस तरह से शिवसेना के अहंकार को भी तगड़ा झटका लगेगा। वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी राज्य में अपनी जड़ों को मजबूत करने की दिशा में अपने प्रयास को जारी रखेगी और अपने कार्यों से जनता में अपनी लोकप्रियता को और बढ़ावा देगी। रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र दौरे के दौरान अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को महाराष्ट्र की सभी 48 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की बात कही है और इसके लिए बीजेपी जल्द ही अपने प्रभारियों का ऐलान करेगी। वैसे भी अगर बीजेपी अकेले चुनाव लड़ती है तो भी उसे कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि महाराष्ट्र चुनाव के बाद बीजेपी ने बृहन मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव में शिवसेना और एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन का सामना किया था और बेहतरीन प्रदर्शन भी किया था। इस चुनाव में शिवसेना 227 में से केवल 84 सीटों पर ही कब्जा कर पायी थी और बीजेपी ने 82 सीटों पर कब्जा किया था। इस प्रकार बीएमसी में भारतीय जनता पार्टी ने सेना का एकाधिकार समाप्त किया था। महाराष्ट्र में जबसे बीजेपी सत्ता में आयी है चाहे वो नगर निगम चुनाव हो या पंचायत चुनाव बीजेपी ने सभी में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। भारतीय जनता पार्टी ने नागपुर के वानाडोंगरी और पारशिवनी दोनों नगर निकाय के चुनाव में भी जीत दर्ज की। वनाडोंगरी में बीजेपी ने 21 सीटों में से 19 सीटें जीतीं और पारशिवनी नगर पंचायत में, भारतीय जनता पार्टी ने 17 सीटों में से 11 पर जीत दर्ज की थी।
वहीं, महाराष्ट्र राज्य में मराठा आंदोलन के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को जलगांव और मराठों के गढ़ सांगली में महानगरपालिका के चुनाव में अप्रत्याशित जीत मिली है। भारतीय जनता पार्टी ने जलगांव नगरपालिका की 75 सीटों में से 57 सीटों पर जीत दर्ज की और सांगली नगरपालिका चुनाव में 78 सीटों में से 41 सीटें हासिल की और ऐतिहासिक जीत दर्ज की। यहां भारतीय जनता पार्टी ने एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन को करारी शिकस्त दी। ये नतीजे दर्शाते हैं कि महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की जड़ें मजबूत हुई हैं और जब जमीनी स्तर पर काम और लोकप्रियता की बात आती है तो उसके प्रतिद्वंद्वी बहुत दूर नजर आते हैं।
ऐसे में राज्य में लगातार मिल रही हार से शिवसेना हताश है और पिछले 30 सालों से महाराष्ट्र की राजनीति में राज कर रही शिवसेना मोदी लहर के बाद से ही सिमटने लगी है क्योंकि महाराष्ट्र की जनता भी अब कामदार पार्टी को चुन रही है। शिवसेना बीजेपी की जीत से इतनी परेशान हो गयी है कि राजनीतिक लाभ के लिए अब तुष्टिकरण की राजनीति में भी लिप्त हो गयी। अब ऐसा लगता है कि शिव सेना के नेता भी पार्टी के अध्यक्ष की नीतियों से खुश नहीं है। बीजेपी के सहयोगी राम विलास पासवान का ट्वीट तो इसी ओर इशारा कर रहा रहा है। दरअसल, राम विलास पासवान ने अपने ट्वीट में कहा है कि, ‘ मैंने शिवसेना के सांसद से बात की उन्होंने कहा कि वो एससी/ एसटी एक्ट को लेकर मोदी सरकार के समर्थन में हैं। ‘
I have spoken to Shiv Sena MP (From Amaravati) Sh Anandrao Adsul who belongs to Scheduled Caste and he said that he completely agrees with me and the Govt.’s decision. He said that possibly Sh Uddhav Thackeray may not be having knowledge of this Act.
— Ram Vilas Paswan (@irvpaswan) August 5, 2018
इससे पहले, शिवसेना प्रमुख ने एससी/ एसटी एक्ट को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला था और इसे समाज के विभाजन की दिशा में केंद्र सरकार का एक ओर कदम बताया था।
LJP and Dalit Sena strongly condemn the statement of Shiv Sena President Sh Uddhav Thackeray in which he has described the decision of Modi Govt to strengthen the Dalit Act as a step towards division of society.
— Ram Vilas Paswan (@irvpaswan) August 5, 2018
राम विलास पासवान के ट्वीट से ये तो स्पष्ट है कि शिवसेना के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है ऐसे में ये आगामी चुनाव में शिव सेना के अकेले लड़ने के फैसले को झटका दे सकता है। अभी भी उद्धव ठाकरे ने अपने अहंकार को नहीं छोड़ा तो आने वाले दिनों में शिव सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।